मैंने आईफोन क्यों लिया?
लोग पूछते हैं, “यार, तुमने आईफोन क्यों लिया भाई?” शायद सोच रहे होंगे, “इसकी औकात तो नहीं आईफोन की, स्साला शो-ऑफ कर रहा है।” मैं क्या करूं! मुझे कहा गया था कि मेरा कॉन्फिडेंस थोड़ा ढीला पड़ रहा है। इसका उपाय बताया गया – आईफोन खरीद लो!
अब, कोई मुझसे पूछता है कि आईफोन का सबसे अच्छा फीचर क्या है, तो मुझे बस यही नजर आता है –
स्वैग होता है, भाई!
जब से आईफोन लिया है, ऐसा लगता है जैसे खुद का एक अलग ही रुतबा हो गया है। मेरे से ज्यादा स्वैग तो आईफोन में है। जब कोई कॉल एंड्रॉइड से आती है, तो उसे ऐसे इग्नोर करता है, जैसे इसकी माँ ने बाजार में जाने से पहले हिदायत दी हो:
“आईफोन बेटा, जमाना खराब है। इन एंड्रॉयड लुच्चों पर बिल्कुल भरोसा मत करना। अगर ये कॉल भी करें, तो बस इग्नोर कर देना, मुंह मत लगाना।”
और अगर आईफोन होल्डर से कॉल आए, तो ऐसा उछलता है जैसे कह रहा हो:
“मालिक, उठा लो! अपना ही बंदा है। उसका फोटो, नाम सब स्क्रीन पर दिखेगा। अपने ही स्टाफ से है मालिक।”
अब जब आईफोन हाथ में है, तो हाथ पर हाथ धरे तो बैठा नहीं जा सकता। कई बार एयरपोर्ट घूम लिया, बड़े-बड़े मॉल देख लिए, हाई-फाई स्पा सेंटरों, कैफे, पॉश कॉलोनियों और होटलों में चक्कर लगा लिए। जैसे पालतू कुत्तों को घुमाने ले जाते हैं, वैसे ही आईफोन को भी घुमाना पड़ता है। भई, इसकी आवोहवा तंदुरुस्त रहनी चाहिए।
आईफोन ने एक अलग ही स्तर का कॉन्फिडेंस ला दिया है। बोले तो, जिस दिन आईफोन लिया, उस दिन से सारी टी-शर्ट्स और शॉर्ट्स, जिनमें फ्रंट पॉकेट नहीं थी, एक कोने में फेंक दीं। अब वही शर्ट पहनी जाती है, जिसमें आईफोन जेब से झांकता नजर आए। जिसके तीन कैमरे के लेंस बाहर निकले रहें।

फिर भी, कुछ लोग हैं जो आईफोन की पहचान नहीं कर पाते। उसे रियलमी समझ लेते हैं। मुझे उनके भ्रम को दूर करने के लिए मोबाइल निकालकर दो-चार झूठ-मूठ की कॉल लगानी पड़ती है। कवर भी ट्रांसपेरेंट ले लिया, ताकि लोगो हर वक्त लोगों को दिख सकें।
पहले हम वनप्लस वाले थे। उस समय एप्पल को गालियां देने में सबसे आगे रहते थे। अब, जब से आईफोन लिया है, अपने विचार भी बदल लिए हैं।
“जो चीज़ हाथ में हो, उसकी बुराई क्यों करना?”
वैसे भी भाई, ईएमआई पर लिया है। इस साल घर की मरम्मत का आइडिया श्रीमती जी ने दिया था, उसे अगली साल के लिए स्थगित कर दिया।
इंश्योरेंस वाले आए।
श्रीमान जी को बड़े-बड़े प्लान बताए। हमारे मरने के फायदे गिनाए। श्रीमती जी ने भी ध्यान से सुना। असल में, उन्हें मुझसे ज्यादा मेरे आईफोन के गुम जाने का डर था। इसीलिए, उन्होंने तुरंत आईफोन का इंश्योरेंस भी करवा दिया।
सच पूछो तो, किसी के यहाँ जाकर उनके टेबल पर आईफोन रख देने का जो ठाठ होता है, कसम से, ऐसा लगता है जैसे सर से राजा का मुकुट उतारकर सामने रख दिया हो। ध्यान रखता हूँ कि मोबाइल उल्टा ही रखा रहे, ताकि लोगो साफ़ साफ़ दिख जाए ।
आईफोन का चार्जर मांगने का भी अलग ही मज़ा है। “भाईसाहब, आईफोन का चार्जर मिलेगा?” इतना सुनते ही सामने वाला बगलें झाँकने लगता है। वे लोग, जो हमें हिकारत भरी नजरों से देखते थे, अब हम उन्हें ऐसे देखने लगते हैं जैसे पूछ रहे हों, “स्सालों, तुमने इस पृथ्वी पर जन्म ही क्यों लिया?”
आईफोन में भी लेटेस्ट मॉडल होना चाहिए। कोई पूछे, “भाई, क्या बात है, आईफोन लग रहा है?” और हम कहें, “हाँ भाई, लेटेस्ट मॉडल 16 प्रो।” लेकिन वज्रपात तब होता है जब कोई कहता है, “भाई, 17 प्रो आ गया है बाजार में।”
दिल में टीस उठती है। काश, हम भी एप्पल स्टोर के बाहर लंबी लाइन में खड़े होकर, रातभर जागकर, पहला आईफोन लेने की जुगाड़ में रहते। लेकिन इंडिया में रहते हुए ये सपना अधूरा ही है। यहाँ तो हमारे शहर में आईफोन का लेटेस्ट मॉडल आते-आते पुराना हो जाता है।
कोई पूछे, “आईफोन क्यों लिया?” तो हम बड़ी शान से कहते हैं, “भाई, सेफ्टी फीचर्स अच्छे हैं। हमारा अकाउंट सिक्योर रहता है, कोई हैक नहीं कर सकता।” लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे अकाउंट को हैक करने में किसी की दिलचस्पी ही नहीं होगी। अगर गलती से कर भी लिया तो 20 रुपये का बैलेंस देखकर उल्टा हमें 1000-2000 भीख में भेज देंगे।
कुछ ग्रुप्स में तो हम जानबूझकर आईफोन होने का एहसास दिला देते हैं। जैसे कोई पोस्ट डालता है तो बोल देते हैं, “भाई, पोस्ट पूरी नहीं दिख रही। आप एंड्रॉइड वालों को पता नहीं है, हम बता देते हैं—आईफोन का स्वैग है, जितना दिखाना है उतना ही दिखाएगा।” अगर हिंदी टेक्स्ट में हमारी वर्तनी गलत हो जाए तो कह देते हैं, “एप्पल है न… हिंदी को अंग्रेजों की तरह ही लिखता और बोलता है। हिंदी व्याकरण में मिस्टेक होना लाजमी है।”
सामने वाले को तुरंत समझ आ जाता है कि हम किस क्लास के इंसान हैं।
आईफोन ने मेरी क्लास बदल दी।
शरीर नहीं बदल पाया, और तो और मेरा शहर भी नहीं बदल पाया। अभी भी एंड्रॉइड वालों के शहर में ही रह रहा हूँ। अगर शहर का नाम पहले बता दूँ तो फोन छुपाता फिरूँ और अगर फोन का ब्रांड पहले बता दूँ तो शहर का नाम छुपाता फिरूं … वरना लगेगा कि दोनों में से एक तो सफ़ेद झूठ है।
पहला आईफोन, पहली कार, और पहली दुल्हन…
आदमी हर बार संभालकर चलाता है।
बस यही हाल है मेरा भी।
आपको भी अब तक समझ आ ही गया होगा कि ये पोस्ट हमने आई फ़ोन से ही लिखी है। खुदा झूठ न बुलवाए।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
मेरी व्यंग्यात्मक पुस्तकें खरीदने के लिए लिंक पर क्लिक करें – “Girne Mein Kya Harz Hai” और “Roses and Thorns”
Notion Press –Roses and Thorns
संपर्क: [email protected]
YouTube Channel: Dr Mukesh Aseemit – Vyangya Vatika
📲 WhatsApp Channel – डॉ मुकेश असीमित 🔔
📘 Facebook Page – Dr Mukesh Aseemit 👍
📸 Instagram Page – Mukesh Garg | The Focus Unlimited 🌟
💼 LinkedIn – Dr Mukesh Garg 🧑⚕️
🐦 X (Twitter) – Dr Mukesh Aseemit 🗣️