“कन्याओं का स्लॉट सिस्टम: अब देवी भी अपॉइंटमेंट से आती हैं!”
नवरात्र शुरू होते ही कॉलोनियों में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई है। मोहल्ले की आंटियों की सुबह अब मंदिर में नहीं, कन्या खोज अभियान में बीतती है। सात कन्याएं चाहिए, नौ तो बेहतर, और ग्यारह मिल जाएं तो देवी प्रसन्न… पर सवाल यह है कि मिलें कहां? पिछली बार की तरह इस बार भी कमबख्त काम वाली बाई नहीं आई। दो कन्याएं हैं उसके… बोला भी था कि उन्हें साथ लेती आना, मगर उसने साफ मना कर दिया—
“बहिनजी, स्कूल जाती हैं वो। उन्हें स्कूल छोड़कर ही तो आती हूँ काम करने! आप जो देना है, मुझे दे दो… कपड़े-लत्ते, दक्षिणा… मुझे ही देवी मान लो!”
भक्तिमयी भावना चूल्हे में गई — अब श्रद्धा से पहले ‘सर्टिफिकेट ऑफ एलिजिबिलिटी’ चाहिए।
“उन्हें छोड़कर ही तो आती हूँ आपके यहां काम करने… उनका स्कूल नहीं छुड़वा सकती…
आप जो देना है, मुझे दे दो न… कपड़े-लत्ते… दक्षिणा…”
“नहीं, उनके पैर भी तो छूने हैं… तभी पुण्य लाभ मिलेगा।”
“भाभीजी, आपकी सोसाइटी में कोई सात-आठ साल की कन्या है क्या?”
“थी तो… पर अब बड़ी हो गई, चौथी क्लास में है — अब वो ‘कंजक’ कैटेगरी से निकल गई है।”
स्थिति इतनी नाजुक हो गई कि कॉलोनी के एक पूर्व नीट रिपीटर युवा ने “कन्याकाल सेवा समिति” बना डाली। उद्देश्य: प्रामाणिक कन्याओं की एडवांस बुकिंग, जिसके लिए बाकायदा वेबसाइट बनी: www.kanjakkart.com
फॉर्म भरिए, स्लॉट चुनिए, ‘पैर धुलवाने’ और ‘टीका स्वीकार करने’ की सहमति पर टिक कीजिये , और हलवे के साथ दक्षिणा का ऑनलाइन भुगतान कीजिए।
संस्था की अध्यक्ष कांताबेन जी, जो पहले मटकी फोड़ प्रतियोगिता की रेफरी थीं, अब इस डिजिटल आस्था की पुरोधा बन गई हैं।
“हम परंपरा को आधुनिकता से जोड़ रहे हैं। देखिए जी, आधुनिक ज़माना है। देवी भी अब हाईटेक हो गई हैं। अब बिना बुकिंग के देवी भी वॉक-इन नहीं होतीं,” उन्होंने बताया।
“और कन्याएं भी अब व्यस्त हैं — कुछ स्कूल में, कुछ डांस क्लास में, और बाकी इंस्टाग्राम पर!”
सेठ गिरधरलाल, बड़े ही धर्मप्रेमी। यूँ तो एक वंशवृद्धि वाला बेटा पैदा किए जाने के चक्कर में घर में ही चार बेटियाँ पैदा कर लीं… कई कर्मकांडी ज्योतिषाचार्यों से गहन विवेचना की तो बताया गया कि नवरात्रों में कन्याओं के लिए विशेष पूजा रखेंगे तो घर में पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी… इसलिए, करते आ रहे हैं पिछले चार साल से यह पूजा… और हर साल उन्हें बेटा तो नहीं मिला, पर घर में ही नव कंजकों की पूर्ति का सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने भी देखो, गोल्ड पैकेज लिया — 11 कन्याएं, 20 मिनट का स्लॉट, पैर धोने का लाइसेंस, और नो सेल्फी क्लॉज।
“भाईसाहब, पूजा करनी है और इंस्टा पर लाइव भी जाना है… अब कन्याएं मिलेंगी नहीं, तो ट्रेंड कैसे करेंगे? माता की भक्ति बिना लाइक्स के अधूरी मानी जाएगी!”
समिति ने ‘टॉप रेटेड कन्याओं’ की एक सूची भी निकाली — हर कन्या के साथ स्टार रेटिंग।
कोई ‘फ्लावर थीम’ में, कोई ‘मैचिंग चूड़ियां’ पहने…
भाभी बुकिंग मिस कर गईं, अब वेटिंग लिस्ट में थीं। उन्होंने समिति से अनुरोध किया—
“कम से कम दो कन्याएं भेज दो, पूड़ी और हलवा तैयार हैं!”
लेकिन कांताबेन अपने बिज़नेस मॉडल में विश्वास रखती थीं—
“सॉरी भाभीजी! धंधा अपनी जगह, उसूल अपनी जगह — फर्स्ट कम, फर्स्ट सर्व!”
कन्याओं ने भी अब यूनियन बना ली।
“कम से कम ₹100 दक्षिणा, और गिफ्ट में स्मॉल पैक नहीं, बड़ी वाली डेरी मिल्क!”
एक आठ वर्षीय कन्या ने अपने पापा से कहा,
“देखो पापा, अब मैं उन्हीं के यहाँ जाऊंगी जहाँ चॉकलेट, ब्राउनी और फोर-जी वाई-फाई हो। देवी को नेटवर्क की भी ज़रूरत होती है!”
सारी कॉलोनियों में अब एक अजीब दौड़ शुरू हो चुकी है — कहीं आस्था है, कहीं एप्लिकेशन। जमाने की हवा लग गई बोले तो … नवरात्रा अब देवी के ‘आगमन’ से ज़्यादा लॉजिस्टिक ऑडिट बन गया है — जहाँ माता रानी की कृपा क्यूआर कोड से बुक होती है, और कन्याएं ‘डायरेक्ट दर्शन’ नहीं, अपॉइंटमेंट पर आने लग रही हैं।
संभव है, बहुत जल्द “कन्यापूजन प्रो” नाम का ऐप आ जाए — जहाँ लाइव ट्रैकिंग भी होगी:
“आपकी कन्या मात्र तीन घर दूर है… कृपया घी गरम करें, इंस्टा रील चालू रखें और हलवे की प्लेट का एंगल सही करें!”
मंदिर में अब घंटे नहीं, गूगल कैलेंडर नोटिफिकेशन बजने लगेंगे।
और कन्याएं… अब भाव से नहीं, बायोडेटा, स्लॉट और कंपनसेशन पैकेज के साथ आने लगेंगी।
🙏 जय माता दी!

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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