Login    |    Register
Menu Close

कोयला -हिंदी कविता- रचियता महादेव प्रेमी

Koyala Hindi poem

 मनुष्य जीवन की उन्नति संगति से ही होती है। संगति से उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। संगति ही उसे नया जन्म देता है। जैसे, कचरे में चल रही चींटी यदि गुलाब के फूल तक पहुंच जाए तो वह देवताओं के मुकुट तक भी पहुंच जाती है। ऐसे ही महापुरुषों के संग से नीच व्यक्ति भी उत्तम गति को पा लेता है।कोयला भी उजला हो जाता है जब अच्छी तरह से जलकर उसमे सफेदी आ जाती है। लकिन मुर्ख का सुधरना उसी प्रकार नहीं होता जैसे ऊसर खेत में बीज नहीं उगते।
लेखक महादेव प्रेमी अपनी कविता शीर्षक “कोयला ” के जरिये संगती के महत्व पर एक बहुत ही सटीक व्याख्या करत रहे है

‘ कोयला ‘

कविरा संगति साधु की,
ओ गन्धी की वास,

जो कुछ गंधी दे नहीं,
तो भी वास सुवास,

तो भी वास सुवास,
कोयले जैसी होती है,

जैसी करोगे संगत,
वैसी दिखलायगी रंगत,

जैसे कोयला गर्म होता है,
हाथ को जला देता है,

और ठंडा होता है,
हाथ काला कर देता है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *