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लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व-व्यंग्य रचना

"व्यंग्यात्मक रेखाचित्र – भ्रष्टाचार को साँप-चेहरे वाले व्यक्ति के रूप में, रिश्वत को ₹2000 के नोटों की साड़ी पहने नागिन के रूप में दिखाया गया है, जो राखी बाँध रही है, और नेता नकदी के लिफ़ाफ़े लिए खड़े हैं, मंच पर ‘लोकतंत्र रक्षा बंधन पर्व’ लिखा है।"

लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व

हमारे यहाँ हर त्योहार किसी न किसी पौराणिक गाथा, किंवदंती या इतिहास की घटनाओं से अवश्य जुड़ा होता है। राखी के त्योहार के बारे में भी कई कहानियाँ प्रचलित हैं। उनमें से एक, जो आपने सुनी होगी, वह है राणा सांगा की विधवा बहन कर्णावती द्वारा हुमायूँ को भेजी गई राखी।

उत्तर-स्वातंत्र्य काल में एक ऐसी घटना, जो भूलवश इतिहास में दर्ज नहीं हो सकी और न ही हो सकती, क्योंकि यह कभी इतिहास की बात थी ही नहीं। यह अभी भी समानांतर रूप से घटित हो रही है और हर साल होती रहेगी। जब तक राखी का त्योहार इस धरती पर रहेगा, तब तक यह लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व मनाया जाता रहेगा।

भाई-बहन के रिश्ते की डोर में बंधे भ्रष्टाचार के पालकों और रिश्वत के बीच भाइयों-बहनों का असली प्यार जो देखने को मिला, वह कहीं और नहीं मिला। भ्रष्टाचार के पालकों ने जब से अपनी सबसे लाडली, नाजों से पाली बहन रिश्वत के हाथों अपनी कलाई में राखी बंधवाई है, तब से रिश्वत की अस्मिता पर मजाल है कि कोई आँख उठाकर भी देख सके! इसकी शुरुआत कैसे हुई, इसका भी एक मजेदार किस्सा है।

शुरुआत हुई जब उत्तर-स्वातंत्र्य काल में भ्रष्टाचार अपने शीतकालीन प्रवास से बाहर आया। इसका जन्म तो बहुत पहले प्राचीन भारत में ही हो चुका था, लेकिन इसे इक्का-दुक्का लोग ही कभी-कभार दूध पिलाते थे। तब यह एक छोटा-सा, प्यारा-सा साँप था। आजादी के बाद देश में सत्ताधारी जीव हुए, जिन्होंने विचित्र शौक पाल रखे थे। एक शौक था साँप पालने का। इन लोगों को यह कुलबुलाता, दीन-हीन-सा अनाथ साँप नजर आया और वे इसे अपनी आस्तीन में पालने लगे। धीरे-धीरे यह बड़ा होने लगा और इसने अपना वंश बढ़ाया। भ्रष्टाचार का यह साँप शक्ल से काला, कलूटा और भद्दा दिखता था, इसलिए इसे आस्तीन में छिपाकर रखा जाता था। लेकिन भ्रष्टाचार भी चालाक था। उसे अपने मालिकों पर अपनी मालिकियत जमानी थी। उसने एक चाल चली। अपनी बहन रिश्वत, जो बहुत ही खूबसूरत, कमसिन-सी साँप थी, को साथ रखा। इस रिश्वत के मोहपाश में सभी इस कदर बंधे कि सब इसके साथ लिव-इन रिलेशन में रहने लगे। धीरे-धीरे रिश्वत बड़ी हुई, सयानी हुई। जब रिश्वत सयानी हुई, तो जमाने की नजर उस पर पड़ी। कुछ जलनखोर, जो कुर्सी न मिलने से नाखुश थे, सत्ता के इस तरह रिश्वत की रंगरेलियाँ मनाने को सहन नहीं कर सके। रिश्वत की अस्मिता पर ईमानदारी के कोड़े बरसाए जाने लगे। सीबीआई और ईडी वाले जहाँ भी रिश्वत दिखती, उसे खुले आम बेइज्जत करने लगे, लूटने लगे। इधर आरटीआई वालों और स्टिंग ऑपरेशन वालों ने भी रिश्वतखोरों की नाक में दम कर दिया।

रिश्वत के साथ रंगरेलियाँ मनाते लोग रंगे हाथों पकड़े जाने लगे। सीडी बनीं, स्टिंग ऑपरेशन से इस खेल को सोशल मीडिया पर उछाला गया। रिश्वत अपनी फूटी किस्मत पर रोने लगी। एक समय था जब रिश्वत को देखकर लोगों की लार टपकती थी। अधिकारी, पुलिस विभाग, सरकारी महकमे, सभी रिश्वत की खूब खातिरदारी करते थे। रिश्वत बड़े-बड़े बंगलों की ठंडी एसी हवा में इनके आलीशान बैंक अकाउंट में सजने-सँवरने लगी थी। लोग सरकारी नौकरी में, जहाँ रिश्वत की इज्जत होती, उसे ही अपनी लड़की के लिए वर तलाशने लगे। हर जगह रिश्वत की पूछ थी।

लेकिन अब रिश्वत के जलवों में चंद्रग्रहण-सा लग गया। सबसे ज्यादा दुखी भ्रष्टाचार था। उसे लगा कि ये मेरे पालनहार कभी भी मुझे छिटका सकते हैं! भ्रष्टाचार के जन्मदाता ने तो न जाने कब से इसे अनाथ छोड़ दिया था। लोकतंत्र के पालकों ने इसे पालने का जिम्मा लिया और इसे खूब पाल-पोसकर बड़ा किया। अपनी बहन रिश्वत की इस दुर्दशा पर भ्रष्टाचार खून के आँसू रो रहा था। जब रिश्वत को कोई नहीं पूछेगा, तो मेरा तो अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा! रक्षा बंधन का दिन नजदीक आ रहा था। भ्रष्टाचार को अपनी सूनी कलाई याद आई। रिश्वत, उसकी बहन, याचना भरी नजरों से उसकी ओर देख रही थी, “भाई, मेरी रक्षा करो।” भ्रष्टाचार को अचानक एक विचार आया। वह बोला, “बहन, इस राखी को सिर्फ मैं ही नहीं, मेरे सभी पालनहारों से भी तुझसे बंधवाऊँगा। तेरा भाई तेरी सदा रक्षा करेगा।”

इधर पालनहार भी अपने और रिश्वत के अवैध संबंधों के इस तरह सार्वजनिक खुलासे से खिन्न और परेशान थे। भ्रष्टाचार ने परेशान पालकों से एक दिन बात की और बोला, “आप चिंता न करें, मेरे पास एक आइडिया है। आप सभी मुनादी करवा दो कि इस बार लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इसमें सत्ता हो या विपक्ष, सभी को आमंत्रित किया जाएगा। इन आरटीआई वालों, सीबीआई, ईडी, और न्यूज़पेपर वालों को विशेष आमंत्रण भेजो। ‘भय बिन होय न प्रीत गुसाईं,’ इसलिए सबसे पहले इन विरोधियों को डराओ-धमकाओ, फिर इन्हें इस पर्व के लिए आमंत्रित करना। इनके खुद के कारनामों के रिकॉर्ड खंगालो। इनकी सात पीढ़ियों में भी अगर किसी ने रिश्वत के साथ रात बिताई हो, उसके प्रमाण इन्हें दिखाओ। तब ये लाइन पर आएंगे!”

फिर क्या था, हर महकमे को अलर्ट कर दिया गया। तबादले की धमकी, प्रमोशन रोकने की धमकी मिलने लगी। पार्टियों को आपस में मिलवाया गया। भाई-भतीजावाद और लालफीताशाही को सरकारी कामकाज के स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर में शामिल कर लिया गया।

रक्षा बंधन का त्योहार नजदीक था। लोकतंत्र रक्षा बंधन पर्व की तैयारियाँ जोर-शोर से होने लगीं। इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम घोषित करवाया गया। बाकायदा इस कार्यक्रम के लिए फंड अलॉट कराया गया।
भ्रष्ट पालकों ने अपने-अपने रिश्तेदारों और सगे-संबंधियों को आयोजन के टेंडर दिलवाए। इतने सालों से रिश्वत से बिछोह के गम में सूखे पड़े लॉकर और बैंक अकाउंट आयोजन के आवंटित बजट से धीरे-धीरे भरने लगे। पालकों को कुछ राहत की उम्मीद नजर आने लगी। सभी को आमंत्रित किया गया था—सत्ता, विपक्ष, सभी लोकतंत्र प्रहरी, सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी महकमों के आला अधिकारी उस मीटिंग में शामिल हुए। कुछ दायीं करवट लेकर बैठे, कुछ बायीं, लेकिन सभी की निगाहें सामने मंच पर थीं। प्रवेश सिर्फ़ उन्हें मिला जो रिश्वत के पुराने यार थे। कुछ जो अभी नए-नए मैदान में आए और यारी करने को लालायित थे, वे इस महोत्सव को लाइव देखना चाहते थे। उनसे एक निर्धारित फीस लेकर यूजर आईडी और पासवर्ड दिए गए। आम जनता को इस उत्सव से वंचित रखा गया।

मुख्य पंडाल सजा हुआ था। आज भ्रष्टाचार, जो इस पूरे कार्यक्रम का आयोजक था, उसे ही मुख्य अतिथि बनाया गया। उसकी पास वाली कुर्सी पर रिश्वत बैठी थी, विशेष रूप से भारतीय मुद्रा के दो हजार के नोटों से बनी साड़ी में सजी-धजी। भ्रष्टाचार, मुख्य अतिथि के रूप में अपने भाषण में कह रहा था, “जिस तरह से तुम रिश्वत को सरेआम बेइज्जत कर रहे हो, इससे लोकतंत्र की इज्जत खतरे में पड़ रही है। तुम ही लोगों ने कितने जतन से इसे पाला-पोसा है, बड़ा किया है। मैंने बड़ी आशा के साथ इसे तुम्हारे हवाले किया था कि तुम इसे संभालोगे। आज यह खास त्योहार है। साल भर में एक दिन तुम्हें अपने आपको बेगुनाह साबित करने का दिन। साल भर तुम मेरी बहन के साथ ऐयाशी करो, रंगरेलियाँ मनाओ, सब चलेगा। लेकिन कम से कम आज के दिन एक बार इससे राखी बंधवा लो। बाहर पब्लिक में अपने हाथ में बंधी राखियाँ दिखा सकते हो। यह दावा कर सकते हो कि रिश्वत के साथ अनैतिक संबंधों की खबर झूठी है! आम जनता को ही बताना है। विपक्षी पार्टी के लोगों को भी यहाँ विशेष आमंत्रण मिला है। रिश्वत इस लोकतंत्र का सबसे बड़ा उपहार है, जो मैंने तुम सभी को बिना भेदभाव के दिया है। इस बहन की रक्षा करना तुम्हारा सबका कर्तव्य है।” यह सुनकर सभी ने तालियाँ बजाईं।

लेकिन इधर विपक्षी खेमे में थोड़ा शोरगुल शुरू हुआ। भ्रष्टाचार ने वक्त की नजाकत को पहचानकर कहा, “देखो, सरकारें बदलेंगी। आज जो कुर्सी पर है, कल दूसरी तरफ बैठेगा। लेकिन रिश्वत कायम रहेगी। इसे सम्मान करना सीखो। तुम्हारे और तुम्हारी सात पीढ़ियों के कारनामों की सूची एक-दूसरे के हाथों में तोते की जान की तरह है। अगर अपनी तोते की जान बचानी है, तो दूसरे की जान भी बख्शो।”

“अब हर साल राखी के दिन यहाँ ‘लोकतंत्र का रक्षा पर्व’ मनाया जाएगा। रिश्वत एक दिन के लिए तुम्हारी बहन बनेगी। यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है। इसके हाथों राखी बंधवाओ, बदले में सभी बढ़िया सा नेग दो, लिफाफा मुझे ही पकड़ाओ। रिश्वत खुद कुछ नहीं चाहती, बस यह तो आने-जाने वाली है। आज तुम्हारी जेब में, कल किसी और की।”

यह आधुनिक युग की लक्ष्मी है, इसे मान दो, बहन का प्यार दो। सभी रिश्वत के द्वारा राखी बंधवाने को उत्साहित हो रहे थे। अपनी-अपनी जेब से लिफाफे निकालकर उनमें नकद रखे जा रहे थे। ऊपर नाम लिखने की जरूरत नहीं थी। भ्रष्टाचार ने मना किया था, “सिर्फ़ नकद, अकाउंट ट्रांसफर और क्यूआर कोड पेमेंट की कोई गुंजाइश नहीं है।”

डॉ. मुकेश असीमित—साहित्यिक अभिरुचि, हास्य-व्यंग्य लेखन, फोटोग्राफी और चिकित्सा सेवा में समर्पित एक संवेदनशील व्यक्तित्व।
डॉ. मुकेश असीमित
✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक

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