नेता जी का इंटरव्यू – हम झूटन के बाप
कैमरा ऑन था। माइक की लाल बत्ती ऐसे चमक रही थी जैसे किसी देवी-देवता की आरती का दीपक, और उसके ठीक सामने नेता जी—पूरी गंभीरता, पूरा आत्मविश्वास, और सच्चाई से सुरक्षित दूरी बनाए खड़े हैं । पीछे जनता उम्मीद की मूर्तियाँ बनकर खड़ी थी—और बीच में लोकतंत्र का असली हीरो—कैमरे का फ्रेम।
पत्रकार ने बिना भूमिका बाँधे पहला ही तीर छोड़ दिया—
“नेता जी, पिछले चुनाव में आपने हर गली में सीसी रोड बनाने का वादा किया था। अब तक क्यों नहीं बनी?”
नेता जी के चेहरे पर हल्की मुस्कान उभरी—एकदम सरकारी टेंडर की तरह—बिना परिणाम के भी चमकदार सी !
“अरे बनी है! योजना बनी, फाइल बनी, मंजूरी बनी, टेंडर जारी… अब बस जनता के सब्र की क्वालिटी चेक हो रही है।”
यानी सड़क कागज़ पर इठलाती घूम रही है और जमीन पर सिर्फ बयानबाज़ी का स्पेशल कोटिंग चमक रहा है।
पत्रकार निराश नहीं था, लोकतंत्र की मजबूरी भी यही है। उसने दूसरा सवाल ठोंक दिया—
“अस्पतालों की हालत खराब है, डॉक्टर नदारद हैं… क्या कहेंगे?”
नेता जी का चेहरा और खिल गया—
“देखिए, हमारी सरकार चाहती है जनता स्वस्थ रहे। और जब अस्पताल में डॉक्टर ही नहीं होंगे, तो बीमार कौन पड़ेगा? समस्या जड़ से खत्म!”
आप जानते ही हैं ,बीमारियाँ खत्म नहीं होंगी, बीमार पड़ने की संभावना खत्म कर दी जाएगी—ये लाजवाब सुधारवादी सोच है ! तालियाँ बज उठी
पत्रकार ने तड़ से अगला सवाल दागा—
“बेरोज़गारी चरम पर है, युवा परेशान हैं। आपका प्लान क्या है?”
अब तो नेता जी ऐसे दमके जैसे अभी-अभी नई केंद्रीय योजना लॉन्च की हो—
“हम युवाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। कोई पकौड़ा स्टार्टअप कर रहा है, कोई इंस्टाग्राम पर आध्यात्मिक रील की यूनिकॉन कंपनी चला रहा है, और जो बिल्कुल खाली हैं… वे हमारी पार्टी का डिजिटल वार रूम संभाल रहे हैं।”
देखिये हमारा मानना है कि नौकरी भले ही मिले या न मिले , रोज़गार का एंगल बदल दो—जहाँ देखो सब ‘एम्प्लॉयड’ दिखाई देंगे, बस हर कोई पस्त ही सही लेकिन व्यस्त दिखे ।
पत्रकार पसीना पोंछकर चौथा वार करता है—
“भ्रष्टाचार खत्म करने का दावा किया था, अब क्या स्थिति है?”
नेता जी गंभीर हो गए—एकदम ‘देश के नाम संदेश’ वाला भाव।
“देखिए, भ्रष्टाचार अब स्मार्ट हो चुका है। हमने रिश्वत को डिजिटल कर दिया है। ऐप बना दिया है। अब ऑनलाइन पेमेंट—पारदर्शिता बनी रहती है। न रसीद खोने का डर, न बिचौलिए के भागने की टेंशन!”
अब भ्रष्टाचार नहीं, ई-भ्रष्टाचार—UPI ‘टिंग!’ और फाइल तुरंत पास। डिजिटल इंडिया का असली नमूना यही है!
पत्रकार ने आख़िरी तीर लगाया—
“नेता जी, जनता आपसे खुश है?”
नेता जी ने आँख मारकर कहा—
“देखिए, जनता हमसे नहीं, हमारे कामों से खुश होनी चाहिए। हम तो आते-जाते रहते हैं। खुशियाँ हमने अपने बंगले में सुरक्षित रखी हैं—चुनाव नज़दीक आने दें, तराशकर परोसेंगे।
हाँ, ये ध्यान रहे—अगर अभी दे दी तो विपक्ष दावा कर देगा कि ‘ये खुशियाँ उनकी पुश्तैनी संपत्ति हैं’। इसलिए जनता की खुशियाँ फिलहाल स्टॉक में हैं।”
कैमरा बंद हुआ। नेता जी ने अंगोछा झाड़ा, माइक की पिन निकाली, और पत्रकार से फुसफुसाकर बोले—
“अगली बार सवाल पहले भेज देना… जवाब तैयार करना भी मेरा लोकतांत्रिक अधिकार है।”
इंटरव्यू यहीं खत्म हो गया।
पर चिंता मत कीजिए—नेता जी का नया एपिसोड जल्द आ रहा है—
“विदेश दौरा: स्वदेश में समस्याएँ, विदेश में सेल्फियाँ।”
बस जनता रिमोट दबाए रखे, और नेता जी हर बार एक ही चेतावनी के साथ लौटेंगे—
“लाइट, कैमरा… और सच्चाई से विनम्र दूरी बनाए रखें।”

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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