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एक अमूर्त सुरियलिस्टिक चित्र जिसमें एक धुँधली औरत का आँचल बहते जल जैसा दिखता है, जिस पर एक बच्चा सिर रखे सोया है। उसकी पलकों से आँसू मोतियों की तरह गिरकर समय के पहिए में बदल रहे हैं। पृष्ठभूमि में धुंधले बादल और टूटता हुआ चाँद।

समय का पहिया चलता है-कविता रचना

माँ की यादों में भीगती पलकों से उठती सिसकियाँ अब कभी थमती नहीं। अनकही बातों की भीड़ में हर करवट बेचैनी बनकर जागती है। आँचल…

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“व्यंग्य चित्र: मंच पर लेखक को ओढ़ाई जा रही शॉल, पास में सोहन पापड़ी और श्रीफल। आयोजक कैमरे से फोटो खींचते हुए, पीछे शॉल का ‘Recycle Zone’। यह दृश्य साहित्यिक आयोजनों में शॉल और सोहन पापड़ी की अंतहीन यात्रा पर कटाक्ष करता है।”

लेखक, शॉल और सोहन पापड़ी-व्यंग्य रचना

लेखक और शॉल का रिश्ता उतना ही अटूट है जितना संसद और हंगामे का। शॉल ओढ़े बिना लेखक अधूरा, और सोहन पापड़ी के डिब्बे के…

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मिनिमलिस्ट पोस्टर जिसमें दीये की लौ से बनता हुआ देवनागरी अक्षर “ह” है; लौ से निकली पतली सर्किट-लाइने एक छोटे ग्लोब को घेर रही हैं—हिंदी, तकनीक और विश्व सेतु का संकेत।

हिंदी हैं हम हिंदोस्ता हमारा

हिंदी दिवस कोई स्मृति-लेन नहीं, आत्मगौरव का वार्षिक एमओयू है—जिसमें हम तय करें कि अदालत, विज्ञान, स्टार्टअप और दफ्तर की फाइल तक हिंदी का सलीका…

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Illustration of a banyan tree symbolizing Hindi’s role in culture, justice, education, media, and trade, with roots in Sanskrit and branches connecting other Indian languages, set in a digital era background.

राजभाषा, ज्ञान-व्यवस्था और डिजिटल युग में हिंदी की आगे की राह

हिंदी का भविष्य केवल भावनाओं से तय नहीं होगा, बल्कि छह खानों में इसकी ताक़त और चुनौतियाँ दिखती हैं—संस्कृति, व्यापार, न्याय, शिक्षा, मीडिया और सद्भाव।…

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Illustration of the evolution of Indian languages from Sanskrit to Hindi, surrounded by other Indian scripts, symbolizing unity, cultural diversity, and the humanity of language.

हिंदी: उद्भव, विकास और “भाषा” की मनुष्यता

भाषा केवल संचार का औज़ार नहीं, बल्कि मनुष्यता की आत्मा है। संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश और फिर हिंदी तक की यात्रा हमारे सांस्कृतिक विकास की…

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Illustration showing the struggle between English prestige and Hindi identity, with a child speaking both languages, symbolizing India’s need for cultural and linguistic self-confidence.

वैचारिक आज़ादी और हिंदी की अस्मिता

1947 की आज़ादी ने हमें शासन से मुक्त किया, पर मानसिक गुलामी अब भी जारी है। अंग्रेज़ी बोलना प्रतिष्ठा, हिंदी बोलना हीनता क्यों माना जाए?…

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लाइन-इलस्ट्रेशन: मंच के पास सूटधारी आयोजक “हिंदी दिवस” बैनर के सामने शाल-ताम्रपत्र और नारियल लिए खड़ा है; डॉक्टर-लेखक के हाथ में निमंत्रण कार्ड; एक बुज़ुर्ग ‘हिंदी माता’ पट्टी-बँधी टांग के सहारे लंगड़ाते हुए, धूल जमीं हिंदी पुस्तकों की गठरी पकड़े; पृष्ठभूमि में डोनेशन बॉक्स और भीड़। व्यंग्यपूर्ण, 16:9, टेक्स्ट-स्पेस छोड़ा हुआ।

हिंदी दिवस-माइक, माला और मातृभाषा

ओपीडी में लेखक-डॉक्टर को एक चालाक रिश्तेदार ‘हिंदी दिवस’ पर मुख्य अतिथि का न्योता थमा देता है—मंशा डोनेशन बटोरने की। तैयारियों के बीच सड़क पर…

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खद्दरधारी हिंदी गुरुजी मैग्निफाइंग ग्लास से डॉक्टर-लेखक की फेसबुक पोस्ट में बिंदी-अनुस्वार टटोलते हुए—लाइन आर्ट कार्टून कैरिकेचर, 16:9।

मैं और मेरी हिंदी-व्यंग्य रचना

मैं, अंग्रेज़ी दवा लिखने वाला डॉक्टर, अब हिंदी में लिखने लगा तो शहर के ‘हिंदी प्रहरी’ गुरुजी मेरी हर पोस्ट में बिंदी-अनुस्वार ढूंढते फिरते हैं।…

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कार्टून कैरिकेचर (16:9): श्राद्ध-पक्ष का आँगन। पत्तल पर खीर रखी है, पास में परिवार तर्पण करता दिख रहा है। ससुराल की मुंडेर पर सूट-बूट पहना “जमाई” कौवे की मुद्रा में कांव-कांव करता बैठा है। एक तरफ अब्दुल चाचा पिंजरे में दो कौवे लिए “कांव सेवा ₹101” का बोर्ड पकड़े नोट गिन रहे हैं। दृश्य व्यंग्य, चमकीले फ्लैट रंग, मोटी आउटलाइन।

जमाई राजा—कलियुग के कौवे 

श्राद्ध पक्ष में कौवों की कमी ने परम्पराओं को भी स्टार्टअप बना दिया। अब्दुल चाचा दो कौवे पालकर खीर चखवाने का 101 रुपये वाला ‘डिलीवरी…

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