Login    |    Register
Menu Close
एक अमूर्त चित्र जिसमें एक धुंधली आकृति आईने में देख रही है, चेहरा स्पष्ट नहीं, पर मुस्कान विद्रूप है; पीछे टीवी स्क्रीन पर "Breaking News", और एक कैलेंडर की उलटी तारीखें दर्शाई गई हैं।

मैं झूठ की तलाश में हूँ-कविता रचना

यह कविता एक खोज है उस झूठ की, जिसे हमने सच मान लिया—जिसे प्रार्थनाओं, राष्ट्रगान, टीवी बहसों और भावनाओं में पवित्रता की तरह सजाया गया।…

Spread the love
भारतीय संसद भवन की पृष्ठभूमि में खाली कुर्सी, जिस पर "उपराष्ट्रपति" लिखा हो — संवैधानिक रिक्तता और लोकतांत्रिक अस्थिरता का प्रतीक।

“उपराष्ट्रपति का इस्तीफ़ा – लोकतंत्र की चुप्पी में एक तेज़ दस्तक” 

उपराष्ट्रपति का इस्तीफा सिर्फ एक पद त्याग नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के संतुलन में आए गहरे असंतोष का संकेत है। यह घटना नीतिगत असहमति, राजनीतिक…

Spread the love
भारत में सूखते जलाशय, सूखे पड़े खेत, और जल की खोज में जूझते लोग – जल संकट की भयावहता को दर्शाता एक दृश्य।

जल संकट : टिकाऊ प्रबंधन की अनिवार्यता

भारत में जल संकट गहराता जा रहा है। 18% जनसंख्या के बावजूद भारत के पास मात्र 4% जल संसाधन हैं। जलवायु परिवर्तन, अति-दोहन और नीतिगत…

Spread the love
एक ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूह की बैठक में भाग लेती हुई, जहाँ सहकारी आंदोलन की जानकारी दी जा रही है। पृष्ठभूमि में "IYC 2025" का बैनर लगा है।

भारत में सहकारिता का सशक्तिकरण और 2025 अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष

संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2025 को ‘अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष’ घोषित किया जाना भारत के सहकारी आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक अवसर है। “सहकार से समृद्धि” की…

Spread the love
लायंस क्लब सार्थक के वन-विहार कार्यक्रम के दौरान झरने के पास हँसी-ठिठोली करते हुए सदस्यगण; झरना, पकौड़ी, अंत्याक्षरी, और बस डांस की मस्ती से भरी पिकनिक।

स्मरणों की सरिता में एक दिन – लायंस क्लब सार्थक का अविस्मरणीय यात्रा-वृत्तांत

लायंस क्लब सार्थक की ‘सीता माता धाम’ वन-विहार यात्रा केवल एक पिकनिक नहीं, बल्कि एक जीवन्त अनुभव था—हास्य, रोमांच, संग-साथ और जलविहार से भरपूर। झरने…

Spread the love
एक आधे-हरे, आधे-कंक्रीट जंगल वाले धरातल पर खड़ा एक व्यक्ति दोनों हाथों में संतुलन साधते हुए एक ओर पौधा और दूसरी ओर फैक्ट्री मॉडल लिए है, जो हरित विकास की दोधारी राह को दर्शाता है।

हरियाली और विकास : क्या दोनों एक साथ संभव हैं?-समसामयिक लेख

भारत में हरियाली और विकास की बहस पुरानी है। अक्सर आर्थिक तरक्की के नाम पर पर्यावरण की अनदेखी होती रही है। पर यह टकराव अनिवार्य…

Spread the love
राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य दर्शाता हुआ एक रेखाचित्र जिसमें अलग-अलग लोगों के जूते ज़मीन पर गहरे निशान छोड़ते दिखाई दे रहे हैं, कुछ जूते टूटे-फूटे हैं, कुछ चमकदार हैं, और कुछ दिशाहीन घूम रहे हैं।

कामयाबी के पदचिन्ह-व्यंग्य रचना

हर कोई अपने पदचिन्ह छोड़ जाना चाहता है, लेकिन अब ये निशान कदमों से नहीं, जूतों से पहचाने जाते हैं। महापुरुषों के घिसे जूतों में…

Spread the love
बारिश से लबालब भरे एक गड्ढे में पसरे कुत्ते और पीछे खुदाई में जुटी JCB मशीन, चारों ओर कीचड़ और टूटी सड़कें।

खुदा ही खुदा है-हास्य व्यंग्य रचना

गड्डापुर शहर में विकास की परिभाषा गड्ढों से तय होती है। यहाँ खुदाई केवल निर्माण कार्य नहीं, आस्था, राजनीति और प्रशासन की साझा विरासत है।…

Spread the love
A simple line drawing of a child resting in a mother’s lap under the shade of a tree, evoking nostalgia and maternal warmth.

स्मृतियों की छाँव में माँ-संस्मरण

ChatGPT said: “स्मृतियों की छाँव में माँ” एक फेसबुक पोस्ट ने माँ की ममता से भरे बचपन की स्मृतियाँ फिर से जगा दीं। वो सुबह-सुबह…

Spread the love