डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 19, 2025
व्यंग रचनाएं
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यह लोकतंत्र दरअसल एक कोल्हू है जिसमें बैल बनकर हम आमजन जोते जा रहे हैं। मालिक—नेता और अफसर—आराम से ऊँची कुर्सियों पर बैठकर तेल चूस रहे हैं। जनता की आँखों पर रंग, धर्म और जाति की पट्टियाँ बाँध दी गई हैं ताकि वह देख ही न सके कि असल में किसके लिए घूम रही है। तेल की मलाई मालिकों के हिस्से में जाती है, जनता को मिलती है सिर्फ़ सूखी खली और भ्रमित श्रेय।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 18, 2025
Blogs
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दोस्ती अमृत है, मगर उधार की चिपचिपाहट इसे छाछ बना देती है। वही दोस्त जो आपकी माँ का हाल पूछता था, अचानक आपकी क्रेडिट कार्ड लिमिट साफ़ कर देता है। रिकवरी के लिए आप गुड मॉर्निंग भेजते हैं और जवाब का इंतज़ार वैसा ही करते हैं जैसे पहले क्रश के ‘हम्म्म’ का। और जब वह अंडरग्राउंड हो जाए, तो समझिए आपकी दोस्ती अब एक व्हाट्सऐप ग्रुप की भावनात्मक कर्ज़ बैठक बन चुकी है।”
Mahadev Prashad Premi
Sep 17, 2025
Book Review
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यह संग्रह पाठकों को समर्पित है—उन सभी साहित्यप्रेमियों को, जो कविता को केवल मनोरंजन का साधन न मानकर जीवन-सत्य का आईना समझते हैं। प्रस्तुत संकलन “महादेव प्रसाद ‘प्रेमी’ की कुण्डलियाँ” उस परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें छंद की गेयता और लय के माध्यम से नीति, हास्य, व्यंग्य और सामाजिक यथार्थ का सहज चित्रण हुआ […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 17, 2025
Culture
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नवरात्र केवल देवी उपासना का अवसर नहीं, बल्कि आत्मबल और चेतना जागरण का पर्व है। नौ रातें हमें याद दिलाती हैं कि शक्ति हमारे भीतर ही है—साहस, करुणा, विवेक और धैर्य के रूप में। प्राचीन ग्रंथों की तरह यह पर्व भी अमर संदेश देता है—अपने भीतर के अंधकार को पहचानो और उसे परास्त कर दिव्यता की ओर बढ़ो। यही नवरात्र का शाश्वत सत्य है।
Vidya Dubey
Sep 16, 2025
हिंदी कविता
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माँ की यादों में भीगती पलकों से उठती सिसकियाँ अब कभी थमती नहीं। अनकही बातों की भीड़ में हर करवट बेचैनी बनकर जागती है। आँचल की नमी, गोदी का सुकून और अधूरी बातें—सब समय के पहिए में छूट गए। अब बस माँ का इंतज़ार ही शेष है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 16, 2025
व्यंग रचनाएं
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लेखक और शॉल का रिश्ता उतना ही अटूट है जितना संसद और हंगामे का। शॉल ओढ़े बिना लेखक अधूरा, और सोहन पापड़ी के डिब्बे के बिना समारोह अधूरा। यह सम्मान की रीसायकल संस्कृति है—जहाँ शॉल अलमारी से निकलकर अगले कार्यक्रम में, और सोहन पापड़ी बारात तक पहुँच जाती है। लेखक झुकता है—पहले शॉल के बोझ से, फिर आयोजकों की विचारधारा की ओर।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 15, 2025
हिंदी कविता
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एक धनाढ्य व्यक्ति, जिसने माँ के लिए महल जैसा घर बनाया था, आज बेसुध विलाप कर रहा है। माँ की हल्की करवट पर जाग जाने वाली वही माँ, महल की ऊँची दीवारों में पुकारते-पुकारते खो गई। उसकी पीड़ा यही थी—“काश ये दीवारें बोल उठतीं।” यह कहानी महज़ शोक नहीं, आधुनिक सुविधाओं में खोई मानवीय संवेदनाओं और मौन की त्रासदी का सजीव प्रतीक है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 14, 2025
हिंदी लेख
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हिंदी दिवस कोई स्मृति-लेन नहीं, आत्मगौरव का वार्षिक एमओयू है—जिसमें हम तय करें कि अदालत, विज्ञान, स्टार्टअप और दफ्तर की फाइल तक हिंदी का सलीका पहुँचे। भाषा मैनेज की जा सकती है, नियंत्रित नहीं; वह बारात है—जहाँ रोकोगे, वहीं ऊँची ‘हुर्र’ निकलेगी। एआई के युग में भी संवेदना की मुद्रा इंसान ही छापता है; इसलिए हिंदी को रोज़मर्रा, रोज़गार और रोज़दिल में उतारना होगा। यही उसका असली दिवस, कंठ का।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 14, 2025
शोध लेख
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हिंदी का भविष्य केवल भावनाओं से तय नहीं होगा, बल्कि छह खानों में इसकी ताक़त और चुनौतियाँ दिखती हैं—संस्कृति, व्यापार, न्याय, शिक्षा, मीडिया और सद्भाव। बोलचाल और मनोरंजन में हिंदी मज़बूत है, पर न्याय-व्यवस्था और उच्च शिक्षा में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व चुनौती बना हुआ है। समाधान है मातृभाषा-आधारित शिक्षा, द्विभाषिक पुल, देवनागरी-प्रथम मानक और अंतरभाषिक सम्मान। हिंदी तभी लोकतांत्रिक धड़कन बनेगी जब आत्म-सम्मान और समावेशन साथ चलेंगे।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Sep 14, 2025
शोध लेख
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भाषा केवल संचार का औज़ार नहीं, बल्कि मनुष्यता की आत्मा है। संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश और फिर हिंदी तक की यात्रा हमारे सांस्कृतिक विकास की कहानी है। हिंदी आज विश्व की शीर्ष भाषाओं में है, लेकिन उसकी असली ताक़त आत्मविश्वास और समावेश में है—जहाँ वह तमिल, तेलुगु, बांग्ला, उर्दू जैसी भारतीय भाषाओं के साथ पुल बनाए। टकराव नहीं, संवाद ही हिंदी का भविष्य है।