डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 8, 2025
Book Review
4
"तुम मेरे अज़ीज़ हो" सिर्फ प्रेम का नहीं, आत्म-संवाद, स्मृति और मौन की यात्रा है। पंकज त्रिवेदी की सरल भाषा में छिपे गहन भाव, प्रेम को एक दार्शनिक और अनुभूतिपरक अनुभव में बदल देते हैं। यह संग्रह पढ़ने नहीं, भीतर महसूस करने के लिए है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 7, 2025
Hindi poems
0
सामाजिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करती ये कविता ‘वाह भाई वाह’ हमें उन विसंगतियों का एहसास कराती है जहाँ ज़िंदगी त्रासदी बन चुकी है, फिर भी आमजन तमाशबीन बना बैठा है। गड्ढों, महंगाई, रिश्तों की दूरी और शिक्षा की मार के बीच भी मुस्कुराता देश – ‘वाह भाई वाह’!
Vidya Dubey
Jul 7, 2025
Hindi poems
1
विद्या पोखरियाल की यह कविता "पत्थर हूं मैं" जीवन की विसंगतियों को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। यह पत्थर कभी पूजित है, कभी ठुकराया गया। मंदिर, नदी, पहाड़ और रास्ते — हर स्थल पर उसका एक अलग अस्तित्व है। यह साधारण होते हुए भी असाधारण है।
Sanjaya Agrawal 'Mradul'
Jul 6, 2025
व्यंग रचनाएं
1
यह रचना आज के 'व्हाट्सएप्प ज्ञानियों' पर करारा व्यंग्य है, जो ब्रह्म मुहूर्त में ही टॉयलेट से लेकर तहज़ीब तक ज्ञान बाँटने निकल पड़ते हैं। फॉरवर्ड्स, वीडियो लिंक, भक्ति संदेश और कविताओं से समाज की चेतना बढ़ाने का ज़िम्मा इन्हीं सज्जनों पर है — चाहे फ़ोन हैंग हो जाए या दिमाग।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 6, 2025
व्यंग रचनाएं
1
इस व्यंग्य चित्रण में एक हाई-फाई कॉलोनी की किट्टी पार्टी में एक अधिकारी की पत्नी, बाढ़ प्रभावित गांवों की त्रासदी को पर्यटन अनुभव की तरह प्रस्तुत करती है। महिलाएं फोटो देखकर वाह-वाह करती हैं — किसी के डूबते मवेशी, किसी माँ का छत पर रोता चेहरा भी ‘सीन’ बन जाता है। यह रचना सामाजिक संवेदनहीनता और आधुनिक तमाशाई मानसिकता पर करारा कटाक्ष है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 6, 2025
व्यंग रचनाएं
1
बाढ़ सिर्फ पानी नहीं लाती, संवेदनहीनता की परतें भी उघाड़ती है। "बाढ़ पर्यटन" एक ऐसी ही कड़वी सच्चाई को उजागर करती है जहाँ किट्टी पार्टी की महिलाएं बाढ़ को तमाशा मान बैठती हैं। अफसरशाही, मीडिया, सोशल मीडिया फॉलोअर्स और सजी-धजी संवेदनहीनता — सब मिलकर बना रहे हैं एक अमानवीय हास्यप्रद दृश्य। हँसी की आड़ में छुपी करुणा की चीख यहाँ साफ सुनाई देती है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 5, 2025
Book Review
1
‘गिरने में क्या हर्ज़ है’ एक बहुआयामी व्यंग्य संग्रह है जिसमें डॉ. मुकेश असीमित ने समाज, राजनीति, शिक्षा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों की विसंगतियों को पैनी दृष्टि और चुटीले अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। आत्मव्यंग्य, रूपकों और भाषिक कलाकारी से भरपूर यह संग्रह न केवल गुदगुदाता है, बल्कि गंभीर प्रश्न भी खड़े करता है। यह संग्रह व्यंग्य विधा में एक साहसी शुरुआत है।
Vivek Ranjan Shreevastav
Jul 5, 2025
व्यंग रचनाएं
2
आज की डिजिटल दुनिया में अधजल गगरी का छलकना नए ट्रेंड का प्रतीक बन गया है। सोशल मीडिया पर ज्ञान कम और आत्मविश्वास ज़्यादा दिखाई देता है। व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी, ट्विटर वॉरियर्स और इंस्टाग्राम फिलॉसफर — सभी अधूरे ज्ञान से ज़ोरदार शोर करते हैं, जबकि असल ज्ञानी मौन रहते हैं।
Vidya Dubey
Jul 5, 2025
Hindi poems
6
यह कविता स्त्री के संघर्ष, सहनशीलता और उसकी शक्तियों का गान है। माँ, बहन, पत्नी, प्रेमिका, देवी — हर भूमिका में वह समाज की नींव है। वह कमजोर नहीं, संसार की रचयिता है। उसकी जात सिर्फ 'औरत' नहीं, एक सम्पूर्ण सृष्टि है। यही उसका आत्मघोष है: हां मैं एक औरत हूं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jul 4, 2025
व्यंग रचनाएं
2
हर मोहल्ले में एक ‘भविष्यवक्ता अंकल’ होते हैं—जो हर शुभ कार्य में अमंगल ढूँढने को व्याकुल रहते हैं। उनकी ज़ुबान पर एक ही ब्रह्मवाक्य रहता है—“लिख के ले लो!” ये आत्ममुग्ध, आशंकित और नकारात्मकता के सर्टिफाइड वितरक होते हैं, जो खुशखबरी को अपशकुन मानते हैं।