Sanjaya Jain
Jun 29, 2025
Poems
0
यह आत्मपरिचयात्मक कविता एक लेखक के अंतरमन की झलक देती है — जहाँ लेखनी के गुण-दोष, धनहीनता में भी मन की समृद्धि, और समाज को जाग्रत करने की शक्ति निहित है। यह भावनाओं, चेतना और सभ्यता को एक नए रूप में ढालने का आह्वान करती है।
Uttam Kumar
Jun 29, 2025
Poems
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द्रोपदी की पुकार, कृष्ण की कृपा और महारथियों की चुप्पी — यह कविता महाभारत की उस घड़ी का चित्रण है जहाँ न्याय मौन हो गया, और एक स्त्री की पीड़ा ने देवता को पुकारा। चीरहरण नहीं रुका, पर चीर बढ़ता गया — और मौन महारथियों की हार दिखी।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 29, 2025
Poems
1
एक डॉक्टर की आत्मा में दबी हुई करुण पुकार — जो हर दिन दूसरों के लिए जीवन की लड़ाई लड़ता है, पर खुद की वेदना अनकही रह जाती है। ऑपरेशन की छुरी थामे वो दिल थामे रहता है, जीवन और मृत्यु के द्वंद्व में उलझा, पर स्वयं के दर्द का कोई उपचार नहीं।
Neha Jain
Jun 29, 2025
Poems
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पुरी का जगन्नाथ धाम, आस्था और अध्यात्म का अद्भुत संगम है। रथयात्रा के उत्सव में धड़कता है प्रभु का हृदय, जो भक्तों से मिलने स्वयं निकलते हैं। रथ, ढोल-नगाड़े, भक्तों का प्रेम – सब मिलकर इस दृश्य को अलौकिक बना देते हैं। यहाँ आकर आत्मा भी ‘जय जगन्नाथ’ गाने लगती है।
Wasim Alam
Jun 29, 2025
कहानी
4
पटना से गाँव लौटते वक्त एक छोटे स्टेशन पर मिला वह नन्हा पानी बेचता लड़का — थकी हुई आँखें, टूटी चप्पलें और एक मासूम हँसी। उसकी बोतल में पानी था, पर आँखों में प्यास। वह हँसी आज भी याद है, जिसने सिखाया कि इंसानियत भी प्यास बुझाती है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 28, 2025
Cinema Review
1
पंचायत सीज़न 4 फुलेरा की उसी मिट्टी से शुरू होता है, जिसमें पहले हँसी और सादगी उगती थी — लेकिन इस बार राजनीति की परतें ज़्यादा गाढ़ी हैं। सचिव जी की सीएटी में सफलता, रिंकी का प्रेम प्रस्ताव, और प्रधान जी की हार – सब मिलकर इसे इमोशन, ड्रामा और स्थानीय राजनीति का दिलचस्प मिश्रण बनाते हैं। कहानी में थोड़ी खिंचावट ज़रूर है, लेकिन अंतिम दो एपिसोड्स में जो भावनात्मक टर्न है, वो पूरी सीरीज़ को देखने लायक बना देता है।
“गाँव वही है, कहानी गहरी हो गई है।”
Babita Kumawat
Jun 28, 2025
Blogs
3
अकांक्षा और राकेश जी ने साझा किया कि वैवाहिक जीवन में अहम नहीं, मित्रता होनी चाहिए। संवाद, माफ़ी और साथ बिताया गया समय ही एक रिश्ते को आदर्श बनाता है। जहाँ दोस्ती होती है, वहाँ टकराव की जगह समझदारी होती है — और यही 'आइडल कपल' की असली पहचान है।
Dr Shailesh Shukla
Jun 28, 2025
Blogs
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यह लेख भारतीय संविधान सभा में राष्ट्रभाषा पर हुए विमर्श की जटिलता को रूपायित करती है — जहाँ हिंदी को एकता का प्रतीक मानने वालों और भाषाई विविधता के पक्षधर विचारों में संघर्ष स्पष्ट है। यह भाषाई नीति, पहचान और संवैधानिक समझ का प्रतीकात्मक चित्रण है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 27, 2025
Blogs
7
डॉक्टर साहब की जिंदगी पेन की कैप पर अटक गई है। कभी स्टाफ फेंक देता है, कभी चूहा चुरा लेता है! कैपविहीन पेन की स्याही उनकी जेब पर हमला बोल देती है। यह मज़ेदार व्यंग्य बताता है — असली ताक़त अब कैप में है, पेन में नहीं!
Veerendra Narayan jha
Jun 26, 2025
Poems
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उनके होंठ बस होंठ नहीं, सत्ता के हथियार हैं — हवा में तैरते छल्लों जैसे, जो कभी बयान बनते हैं, कभी धमकी। दिल और दिमाग के ताले में बंद आत्मा, जब बोलने लगे बिना सोचे, तो सीज़फायर से स्ट्राइक तक का फ़ैसला भी होंठ ही करते हैं।