डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 26, 2025
Blogs
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“सिनेमाघर कभी मनोरंजन का देवालय था, जहाँ चाय-कुल्फी की आवाजें, तंबाकू की पिचकारियाँ, आगे की सीटों की रुई निकालने की परंपरा और इंटरवल का महाभारत—सब मिलकर एक सामूहिक उत्सव बनाते थे। वह जमाना गया, जब फिल्में हमें हमारी रियलिटी से कुछ पल उड़ा ले जाती थीं।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 26, 2025
People
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“धर्मेंद्र सिर्फ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहात की माटी, रोमांस की रूह और इंसानियत की नरम धूप थे। खेतों की खुशबू, फिल्मों की चमक और सादगी की छाया में बसा यह शख़्स एक ऐसा सितारा था जो हर दिल में जिंदा रहेगा।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 26, 2025
Blogs
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“इस देश में लाइनें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए आदमी ने मोबाइल को जीवन-संगिनी बना लिया है। टिकट विंडो की कतार हो या दिवाली की सेल—हर जगह कंपनियाँ आपको चॉकलेट, केक, EMI, लोन, ओवरड्राफ्ट और भविष्य-कथन तक परोसने के लिए बेताब हैं। आदमी लाइन में खड़ा है… लेकिन उसकी दुनिया मोबाइल की स्क्रीन में बह रही है।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 26, 2025
Important days
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26 नवंबर सिर्फ कैलेंडर की तारीख़ नहीं, भारत की लोकतांत्रिक आत्मा की धड़कन है। संविधान दिवस हमें याद दिलाता है कि यह दस्तावेज़ क़ानूनों की किताब भर नहीं, बल्कि हमारे अधिकारों, कर्तव्यों, गरिमा और एकता की जीवित प्रतिज्ञा है, जिसे हमें हर दिन जीना है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 25, 2025
Cinema Review
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धर्मेंद्र सिर्फ़ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहाती मासूमियत, पंजाबी दिलेरी और रोमांटिक चमक का चलता-फिरता रूपक थे। वीरू की टंकी, खेतों की पगडंडियाँ, शोले की गूंज और फ़िल्मी किस्से—सब आज उनकी स्मृति बनकर रह गए हैं। पर कलाकार कभी नहीं मरते, धर्मेंद्र भी नहीं। वे हर मुस्कान में लौट आएँगे।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 25, 2025
Foreign Affair
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युद्ध का इतिहास दरअसल मनुष्य नहीं, तकनीक की कहानी है। नरमार की भोथरी गदा से लेकर ड्रोन, AI, सैटेलाइट और हाइपरसोनिक मिसाइलों तक—हर दौर में विजेता वही बना जिसने दूर से, सस्ते में और सुरक्षित प्रहार करने की कला सीख ली। युद्धभूमि बदल चुकी है, हम अब भी पुराने सपनों में अटके हैं।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 24, 2025
व्यंग रचनाएं
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“आप लिखते हैं तो लोग आपको क्रांतिकारी समझ लेते हैं—खुद रिमोट बदलने से डरते हैं पर क्रांति की बंदूक आपके कंधे पर रखकर चलाना चाहते हैं। यह व्यंग्य उन लोगों का चश्मा है जो चाहते हैं—बगावत आपकी हो, जोखिम आपका हो… और तमाशा उनका।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 24, 2025
व्यंग रचनाएं
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“कान-भरैयों की दुनिया बड़ी विचित्र है—ये आधा सुनते, चौथाई समझते और बाकी अपनी कल्पना की दही में फेंटकर ऐसी तड़कती-भड़कती कहानी बना देते हैं कि बेचारा सुनने वाला सोचता रह जाए—‘मैंने तो नमस्कार कहा था, इसमें षड्यंत्र कहाँ से आ गया?’ यह व्यंग्य उन्हीं महापुरुषों का महाग्रंथ है।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Nov 23, 2025
Cinema Review
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“होमबाउंड एक ऐसी फ़िल्म है जो दो दोस्तों की लॉकडाउन यात्रा के बहाने भारतीय समाज की गहरी परतों—जाति, धर्म, बेरोज़गारी और व्यवस्था—को छूती है। बेहतरीन अभिनय के बावजूद फिल्म कई जगह ऑस्कर-फ्रेंडली एजेंडा और सजावटी दुखों में उलझती दिखती है। पढ़िए एक ईमानदार, रोचक और व्यंग्यात्मक समीक्षा।”
Ram Kumar Joshi
Nov 23, 2025
व्यंग रचनाएं
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सरकारी अस्पताल से बाहर निकलता छेदी लाल सिर्फ़ दवा की कमी से नहीं, टूटी परंपराओं और बदलती नीतियों से भी परेशान है। संधाणा के दिनों से लेकर आरजीएचएस की च्यवनप्राश छूट तक, और अब आयुर्वेदिक दवाओं के कटते नामों से लेकर एलोपैथिक सूची के फैलते आकार तक—उसकी शिकायत में जनता का असली दर्द झलकता है। व्यंग्य का सीधा सवाल यही है कि जब “स्वदेशी” के नाम पर वोट माँगे गए थे, तो देसी दवाओं का गला किस टेबल पर घोंटा जा रहा है?