हर ‘पुरस्कार’ को नमस्कार है…
“पुरस्कार भी अब देसी घी की तरह — हज़म नहीं होते!”
पुरस्कार – नाम ही ऐसा है, जैसे पुरुषत्व की विजयघोषणा हो। सुनते ही लगता है मानो पितृसत्ता का तमगा पहन लिया हो। अब तो महिलाएं भी कहने लगी हैं – “ये पुरस्कार क्यों? कुछ तो ‘महिलाकार’ जैसा होना चाहिए!”
सही पूछें तो कई साहित्यकारों को पुरुष्कार की फांक लेते ही साहित्यिक मर्दानगी के लक्षण प्रकट होने लगते हैं!
बिना पुरस्कार के देखो न साहित्यकार की हालत — बिल्कुल नामर्दी के शिकार मरीज़ की तरह, जो अपनी मर्ज़ का इलाज ढूंढते हुए इधर-उधर काशी, कलकत्ता, कराची — हर चांदसी, देसी और नकली आयुर्वेदिक दवाखाने की खाक छान चुका है । मिल ही जाएंगे ऐसे लोग… हाँ, आजकल इसका इलाज शर्तिया गारंटी के साथ पुरस्कार की चटनी-चूर्ण से होने लगा है! जगह-जगह लग गए हैं पुरुष्कार के ऐसे ही लंगर ,खुल गए हैं ऐसे ही चांदसी दवा-खाने। जैसे ही कोई कह दे कि “फलां संस्था पुरस्कार दे रही है”, साहित्यकार जी की पेन की स्याही झाग छोड़ने लगती है।
जैसे कोई गुप्त रोग छुपाकर फिरते हैं, वैसे ही पुरस्कार की इस लालसा को भी छुपाना पड़ता है। यार, एक अनार, एक पुरस्कार और बीमार हज़ार! अब पता लग जाए कि ये भी उसी लाइन में लगे हुए हैं, तो आदमी पुरस्कार के लिए पहले दूसरों को लाइन से हटाए — तभी तो कोई बात बने। खुद का नाम लाने के लिए दूसरों का नाम काटना मजबूरी सी हो जाती है।
पता नहीं कहाँ से इन पुरस्कार बाँटने-चाटने वालों को पता लग गया कि मैं भी कुछ इसी प्रकार के गुप्त रोग से परेशान हूँ। “क्या हाल बना रखा है गर्ग साहब आपने! लिखते-लिखते अपनी हालत इतनी पतली कर ली है, तो कुछ लेते क्यों नहीं? हमारी माने मित्र तो इस बार अपने मोहल्ले की पुरस्कार समिति में आपका नाम प्रपोज करने की सोच रहे हैं। हर साल आप डोनेशन देते ही हैं… अब इतना तो बनता है न समिति का! आपकी किताब भी निकल गई है — उसी के नाम पर दे देंगे। लेकिन आप उजागर मत कीजिएगा। आपको पता है ही कि कितने लोग पीछे पड़े हुए हैं हमारे… न जाने कहाँ-कहाँ से सिफारिशें लग रही हैं। वो पुलिस विभाग के अधिकारी — उन्होंने भी कोई एक बचपन में कविता लिखी थी, उसे भेज दी है। लेकिन चिंता न कीजिए, हमने इस बार पुरस्कारों की संख्या डबल कर दी है।”
आ गया है पुरस्कार… सज गया है अलमारी में। श्रीमती जी की नज़रों से बच-बचाकर रोज़ उसे झाड़-पोंछकर निहार भी लेता हूँ। सौंदर्य दर्शन की परिभाषाएं बदल गई हैं। अब यह पुरस्कार जो बिना बुलाए मेहमान की तरह, बिना उम्मीद के झोली में आ गिरा — सबसे पहले शक होता है… अपने पर नहीं, दुनिया पर! यार, कौन मानेगा! सब शक करेंगे कि हमने ज़रूर कुछ जुगाड़ से कबाड़ लिया है।
बधाई देने आए हैं पड़ोस के बब्बन चाचा, लेकिन मिज़ाज से साफ़ उखड़े हुए नज़र आ रहे हैं —
“अरे वाह! कहाँ से जुगाड़ किया?”
ऐसे कही जाने वाली निगाहों से जैसे हम पुरस्कार नहीं, पद्मश्री लूट लाए हों।
हमें खुद भी यकायक यकीन नहीं हो रहा — पुरस्कार भी आजकल नकली देसी घी की तरह पेट में हज़म नहीं होते! बधाई लेना भी नहीं आता, चेहरे पर निर्लज्जता के भाव नहीं ला पाते। कितनी भी कोशिश करूं, चेहरे से ‘हें-हें’ टपकने लगती है।
मैं पुरस्कारों से दूर भी इसलिए रहना चाहता हूँ कि सबसे बड़ी परेशानी ‘धन्यवाद भाषण’ तैयार करना होती है।
किस-किस को धन्यवाद दूँ, कैसे निपटाऊँ — समझ नहीं आता। भाषण देते वक़्त एक नज़र पुरस्कार हाथ में पकड़े आयोजकों पर और दूसरी नामों की सूची पर — कहीं कोई नाम छूट न जाए और इधर पुरस्कार हाथ से न छूट जाए! “देअर मेनी स्लिप्स बिटवीन कप एंड लिप्स” (There are many slips between cup and lips) वाला हाल हो जाता है।

बिना मांगें मिला पुरस्कार और बिन बोले घूरता समाज—लिखने की बीमारी अब संदेह का इलाज माँगती है।
लो जी, मिल गया तो अब आगे का हाल भी सुनते जाइए… श्रीमती जी को हिदायत दे दी है — “दूध वाली थैली फ़्रीज़ में रख देना, चाय-चीनी का डिब्बा बाहर निकाल देना… और हाँ, बाबा के खीरमोहन भी। समाचार लेने वाले आएँगे ही।”
पता नहीं, बधाई देने आ रहे हैं या मेरा हालचाल पूछने — कि अब कैसा लग रहा है? तबीयत में कुछ सुधार है या नहीं? कहाँ से लिया इलाज? कितना खर्च हुआ? वगैरह-वगैरह!
“आपने ये लिखने की बीमारी क्यों पाल ली, डॉक साहब?” अब लेते रहिए इलाज! लेना ही पड़ेगा… पीछे पड़ जाएँगे वो सब ‘पुरस्कारीय दवा’ के दस शर्तिया दावे लेकर ! उनका पुरुषकारे दवा-खान भी हम जैसे लोग ही तो चला पाएँगे!
“अरे, आपने हमसे क्यों नहीं कहा? आपको ऐसी जगह से इलाज दिलवाते… शर्तिया आपकी बीमारी का इलाज — वो भी सस्ते में…”
अब समझ में नहीं आ रहा है — बीमारी छुपाएँ या बीमारी का इलाज! आप ही बताइए…!
लेखक परिचय:
डॉ. मुकेश ‘असीमित’, ( हड्डी रोग विशेषज्ञ, व्यंग्यकार और लेखक)
मेरी चर्चित पुस्तकें पढ़ें:
Girne Mein Kya Harz Hai – Buy on Amazon
Here is the Amazon link to your book “गिरने में क्या हर्ज़ है”:
Roses and Thorns – Buy on Notion Press,Amazon and on Flipkart
{Notion Press } https://notionpress.com/in/read/roses…
• [Amazon India] https://amzn.in/d/avaOcg6
• [Flipkart] https://www.flipkart.com/roses-thorns…
अपनी रचनाएं प्रकाशित कराना चाहते हैं?
हमें भेजें: [email protected]
WhatsApp करें: +91-8619811757
आप स्वयं भी हमारी ब्लॉग साइट “Baat Apne Desh Ki” पर लेखक खाता बना सकते हैं।
जुड़े रहें:
Facebook: Dr Mukesh Aseemit
Instagram: @thefocusunlimited
रचना कैसी लगी? कॉमेंट करके बताएं, अगली रचना में फिर मिलेंगे!
संपर्क:
ईमेल: [email protected]
व्हाट्सएप: +91-8619811757