हादसों का इन्तजार है
इन दिनों राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में सड़क हादसों से आम जन अंदर तक हिल गया। उन बेचारों का क्या कसूर जो नियमों का पालन करते हुए सड़क का उपयोग कर रहे थे कि कोई वाहन उनकों रौंद जाये। उनका घर बर्बाद हो जाय या जिन्दगी भर के लिए अपाहिज हो जाय। यदि एक्सीडेंट में कमाऊं पूत मारा जाता है तो सारा घर सड़क पर आ जाता है उसके साथ कई सामाजिक बुराइयां पैदा हो जाती है जिसका अनुमान भी हम नही लगा सकते। याद रहे रोड़ एक्सीडेंट की वजह से हमारी जीडीपी लगभग दो प्रतिशत कम हो रही है। हम समग्र रुप से गरीब हो रहे है।
वैसे साधारण व्यक्ति का पुलिस थाने से कोई वास्ता नहीं होता। सब अपना-अपना सरल जीवन जीते है। यदि आप सर्वे करेंगे तो ज्ञात होगा कि अस्सी प्रतिशत लोगों ने अपने जीवन में थाने को नही देखा है लेकिन ट्रेफिक पुलिस से सबका वास्ता पड़ता है। चाहे आप पैदल चलते हो या वाहन के मालिक हो।
पर हालात यहां तक है कि पुलिस विभाग की ओर से ट्रेफिक पुलिस के कार्य को गौण समझा जाता है। उसके कार्य प्राथमिकता स्तर पर नही निभाये जाते।
आज के अखबारों में छपी न्यूज के अनुसार मुख्यमंत्री से लेकर अंतिम पायदान के अधिकारी तक सड़क हादसों पर रोक केलिए चिन्ता व्यक्त कर रहे हैं। कह रहे है कि शराब पीकर चलाने वालों के ड्रायविंग लायसेंस रद्द होंगे। जैसे पहले शराब पीकर वाहन चलाने की पहले अनुमति थी। यहां पूछ्ना आवश्यक है कि पहले कितने शराबियों के लायसेंस रद्द हुए? जनता के समक्ष आंकड़े हाजिर होने चाहिए।
मूलतः सभी जानते हैं कि हमारे यहां वाहन चलाने केलिए बस केवल वाहन चाहिए लाइसेंस तो बिना ट्रेनिंग, बिना सही जानकारी के भी आराम से दलालों के जरिए मिल जाता है। और तो और बच्चे टू-व्हीलर से लेकर कार मोटर सब कुछ चला देते हैं और घर वाले प्रोत्साहित भी करते हैं। हर स्कूल के आगे सैंकड़ों बच्चें अपना ऑटो वाहन पार्क करते हैं पर यह किसी को नजर नहीं आता। प्रभारी सभी अंधे हो गये है। किसी बड़े हादसे के इंतजार की अपेक्षा है।
इसी तरह बाल वाहिनियों के हालात हैं। जब कुछ मासूम बालक बालिकाएं अपने प्राण त्याग करेगी तब मुख्यमंत्री से लेकर नीचे तक के अधिकारी मगरमच्छी आंसू बहा श्रृद्धांजलि अर्पित करेंगे और कुछ हवाई प्रतिज्ञाएं लेंगे।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बाल वाहिनियों की मानिटिरिंग करना स्कूल के आचार्य- प्राचार्य की जिम्मेदारी है। हर बच्चा जो जिस स्कूल में पढ़ता है जबतक वह वापिस सुरक्षित घर नही पहुंचता तबतक स्कूल प्रशासन रेसपोन्सिंबल है। आपने देखा होगा कि हर वाहिनी चाहें वह ऑटो रिक्शा है या बस या मिनी बस, बच्चों को बकरों की तरह भर के लाती है। जिम्मेदार ट्रेफिक पुलिस आंखें मीचे खड़ी रहती है। हां – हादसे ने केबाद दो चार निरीह पुलिस कर्मियों को सस्पेंड जरुर कर दिया जायेगा ताकि अखबार वाले चिल्लाना बन्द कर दें। यह सार्वजनिक सत्य है।
ट्रेफिक पुलिस से आमजन का एक ही सवाल है कि आपने बिना ड्रायविंग लाइसेंस वाले कितने चालकों को पकड़ कर उनके माता-पिता पर चालान किया व वाहन ज़ब्ती की। कितनी बाल वाहिनियों पर पेनेल्टी लगाई। अब तो हर जगह कैमरे लगे हैं। इनका उपयोग होना चाहिए। ये सीधे सवाल है?
जब-तक शासन-प्रशासन चुस्त-दुरुस्त नही होगा, नेताओं की अनधिकृत सिफारिशें होगी, हादसे होते रहेंगे, हम मरते रहेंगे। हमारे यहां कहते भी हैं रांडे रोती रहेंगी और पांवणें जीमते रहेंगे।
जनहित में लिखी कुछ बातें हैं। मनन करें।
डा राम कुमार जोशी
बाड़मेर
