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Tag: सरस्वती

“एक अमूर्त-अलौकिक चित्र जिसमें केंद्र में दीप्तिमान यज्ञ-कुंड है। उससे सुनहरी ध्वनि-तरंगें निकलकर नदियों, हवा और आकाश में घुल जाती हैं। बादलों में बिजली इंद्र का संकेत देती है, लौ में अग्नि का रूप है, चमकती धारा सोम का बोध कराती है, क्षितिज पर सूर्य और गुलाबी उषा झलकते हैं। संपूर्ण दृश्य तांबे-सोने, इंडिगो और टील रंगों में, सूक्ष्म वेदिक मण्डल आकृतियों और सितारों के साथ।”

“ऋग्वेद: ज्ञान के आदिम सागर की यात्रा”

भाग 1 कल्पना कीजिए वह समय, जब हाथ में कलम नहीं, कंधों पर कथा थी; जब ज्ञान कागज़ पर नहीं, स्मृति की नसों में दौड़ता…

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