हारे हुए प्रत्याशी की हाल-ए-सूरत-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments चुनाव हारने के बाद नेताजी के चेहरे की मुस्कान स्थायी उदासी में बदल गई। कार्यकर्ता सांत्वनाकार बन चुके हैं, बासी बर्फी पर मक्खियाँ भिनभिना रही… Spread the love
कामयाबी के पदचिन्ह-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' July 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments हर कोई अपने पदचिन्ह छोड़ जाना चाहता है, लेकिन अब ये निशान कदमों से नहीं, जूतों से पहचाने जाते हैं। महापुरुषों के घिसे जूतों में… Spread the love
गिरने में क्या हर्ज़ है-किताब समीक्षा-प्रभात गोश्वामी डॉ मुकेश 'असीमित' July 15, 2025 Book Review 2 Comments डॉ. मुकेश असीमित का व्यंग्य संग्रह ‘गिरने में क्या हर्ज़ है’ न केवल भाषा की रवानगी दिखाता है, बल्कि विसंगतियों की गहरी पड़ताल भी करता… Spread the love
मेरी बे-टिकट रेल यात्रा-यात्रा संस्मरण डॉ मुकेश 'असीमित' July 14, 2025 संस्मरण 2 Comments हॉस्टल की ‘थ्रिल भरी’ दुनिया से निकली एक रोमांचक रेल यात्रा की कहानी, जहाँ एक मेडिकल छात्र पुरानी आदतों के नशे में बिना टिकट कोटा… Spread the love
गुरु गुड ही रहे चेला चीनी हो गए-हास्य-व्यंग्य डॉ मुकेश 'असीमित' July 10, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments गुरु अब ज्ञान के प्रतीक नहीं, शॉर्टकट और टिप्स देने वाले बाज़ारू ब्रांड बन चुके हैं। चेला बनना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि हर चेला… Spread the love
अधगल गगरी छलकत जाए-हास्य-व्यंग्य Vivek Ranjan Shreevastav July 5, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments आज की डिजिटल दुनिया में अधजल गगरी का छलकना नए ट्रेंड का प्रतीक बन गया है। सोशल मीडिया पर ज्ञान कम और आत्मविश्वास ज़्यादा दिखाई… Spread the love
मदर्स डे –एक दिन की चांदनी फिर अँधेरी… डॉ मुकेश 'असीमित' May 11, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments एक तीखा हास्य-व्यंग्य जो दिखावे के मदर्स डे और असल माँ के संघर्षों के बीच की खाई को उजागर करता है। सोशल मीडिया की चमक… Spread the love