बुरा जो देखन मैं चला-व्यंग्य रचना Vivek Ranjan Shreevastav September 24, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments आज का समाज मुखौटों के महाकुंभ में उलझा है—जहाँ असली चेहरा धूल खाते आईने में छिपा रह गया और नकली मुस्कान वाले मुखौटे बिकाऊ वस्तु… Spread the love
एक पत्थर की कहानी -कविता रचना Vidya Dubey July 7, 2025 हिंदी कविता 1 Comment विद्या पोखरियाल की यह कविता “पत्थर हूं मैं” जीवन की विसंगतियों को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। यह पत्थर कभी पूजित है,… Spread the love
मैं बच्चा हूँ, ट्रॉफी नहीं-कविता -डॉ मुकेश असीमित डॉ मुकेश 'असीमित' June 30, 2025 हिंदी कविता 1 Comment यह कविता एक बच्चे की अंतरात्मा की पुकार है—जो केवल अपने लिए जीना चाहता है, किसी की महत्वाकांक्षा की ट्रॉफी बनकर नहीं। वह अपने सपनों… Spread the love