दीवारों का कैनवास और-दीवारें फिर बोल उठी -हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 31, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “दीवारों का कैनवास और-दीवारें फिर बोल उठी बचपन में ले चलता हूँ… क्या करूँ, सारी मीठी यादें तो बचपन के पिटारे में ही रह गईं।… Spread the love
संस्था का स्वयंवर: ‘योग्यता’ नहीं, ‘जुगाड़’ की वरमाला! डॉ मुकेश 'असीमित' July 30, 2025 व्यंग रचनाएं 6 Comments संस्था अब कोई विचारशील मंच नहीं, एक शर्मीली दुल्हन बन चुकी है, जिसका स्वयंवर हर दो साल बाद होता है। यहां वरमाला योग्यताओं पर नहीं,… Spread the love
खुदा ही खुदा है-हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' July 20, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments गड्डापुर शहर में विकास की परिभाषा गड्ढों से तय होती है। यहाँ खुदाई केवल निर्माण कार्य नहीं, आस्था, राजनीति और प्रशासन की साझा विरासत है।… Spread the love