हँसी के बाद उतरती चुप्पी: व्यंग्य का असली तापमान डॉ मुकेश 'असीमित' December 2, 2025 आलोचना ,समीक्षा 0 Comments “व्यंग्य हँसाने की कला नहीं, हँसी के भीतर छुपी बेचैनी को जगाने की कला है। वह पल जब मुस्कान के बाद एक सेकंड की चुप्पी… Spread the love
मोबाइल और लाइन का लोकतंत्र : एक व्यंग्यात्मक संस्मरण डॉ मुकेश 'असीमित' November 26, 2025 Blogs 0 Comments “इस देश में लाइनें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए आदमी ने मोबाइल को जीवन-संगिनी बना लिया है। टिकट विंडो की कतार हो या दिवाली की… Spread the love
जूता पुराण : शो-टाइम से शू-टाइम तक डॉ मुकेश 'असीमित' October 11, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments इन दिनों जूते बोल रहे हैं — संसद से लेकर सेमिनार तक, हर मंच पर चप्पलें संवाद कर रही हैं। कभी प्रेमचंद के फटे जूतों… Spread the love