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Tag: indian-society

“एक कार्टून-व्यंग्यात्मक दृश्य, जिसमें एक लेखक चश्मा नीचे खिसकाए समाज को तिरछी नज़र से देख रहा है। उसके आसपास बिखरी घटनाएँ—नेता का बयान, अस्पताल का बिल, सोशल मीडिया पोस्ट, भूखा बच्चा, भीड़ का उफान—सबको वह ‘व्यंग्य की एक्स-रे’ मशीन से जाँचता दिख रहा है। हँसी और चुप्पी को तौलती तराज़ू, और पृष्ठभूमि में एक विशाल प्रश्नचिन्ह—मानो समाज खुद से पूछ रहा हो, ‘सच में, हम ऐसे हैं?’।”

हँसी के बाद उतरती चुप्पी: व्यंग्य का असली तापमान

“व्यंग्य हँसाने की कला नहीं, हँसी के भीतर छुपी बेचैनी को जगाने की कला है। वह पल जब मुस्कान के बाद एक सेकंड की चुप्पी…

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“रेलवे टिकट विंडो की लंबी लाइन में खड़ा एक मध्यमवय व्यक्ति, मोबाइल स्क्रीन में डूबा हुआ, चारों ओर चॉकलेट-केक-सेल के विज्ञापनों की नोटिफिकेशन बौछार, पृष्ठभूमि में धीमा चलता गर्म पंखा, चिड़चिड़े यात्री, और एक जर्दा-चबाते दलाल की कोहनी से परेशान—सब मिलकर भारतीय लाइन-तंत्र की व्यंग्यात्मक अराजकता दिखाते हुए।”

मोबाइल और लाइन का लोकतंत्र : एक व्यंग्यात्मक संस्मरण

“इस देश में लाइनें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए आदमी ने मोबाइल को जीवन-संगिनी बना लिया है। टिकट विंडो की कतार हो या दिवाली की…

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संसद में उड़ता हुआ जूता, मंत्री के भाषण के दौरान मीडिया कैमरे से कवर करते हुए — व्यंग्यात्मक कार्टून दृश्य।

जूता पुराण : शो-टाइम से शू-टाइम तक

इन दिनों जूते बोल रहे हैं — संसद से लेकर सेमिनार तक, हर मंच पर चप्पलें संवाद कर रही हैं। कभी प्रेमचंद के फटे जूतों…

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