कोल्हू का लोकतंत्र-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' September 19, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments यह लोकतंत्र दरअसल एक कोल्हू है जिसमें बैल बनकर हम आमजन जोते जा रहे हैं। मालिक—नेता और अफसर—आराम से ऊँची कुर्सियों पर बैठकर तेल चूस… Spread the love
मैं झूठ की तलाश में हूँ-कविता रचना डॉ मुकेश 'असीमित' July 25, 2025 हिंदी कविता 4 Comments यह कविता एक खोज है उस झूठ की, जिसे हमने सच मान लिया—जिसे प्रार्थनाओं, राष्ट्रगान, टीवी बहसों और भावनाओं में पवित्रता की तरह सजाया गया।… Spread the love