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Tag: व्यंग्य कविता

“एक आधुनिक संत लग्ज़री कार के पास खड़ा है, भगवा वस्त्रों में, गले में रुद्राक्ष और हाथ में मोबाइल, पीछे भक्तों की भीड़ और मंदिर। व्यंग्यात्मक कला में चित्रित संत संस्कृति की विडंबना।”

आधुनिक संत-व्यंग्य कविता

बैरागी बन म्है फिरा, धरिया झूठा वेश जगत करै म्होरी चाकरी, क्है म्हानें दरवेश क्है म्हानें दरवेश, बड़ा ठिकाणा ठाया गाड़ी घोड़ा बांध, जीव रा…

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