कंजूस मक्खीचूस-हास्य व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' November 10, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments कंजूस लोग धन को संग्रह करते हैं, उपभोग नहीं। मगर यह भी कहना होगा कि ये लुटेरों और सूदखोरों से फिर भी भले हैं—क्योंकि कम… Spread the love
जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा डॉ मुकेश 'असीमित' October 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके… Spread the love
शुभ लाभ-फटूकड़ियां – 2025 Prahalad Shrimali October 16, 2025 हास्य रचनाएं 0 Comments दीपावली की यह व्यंग्यात्मक ‘फटूकड़ियां 2025’ केवल रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, राजनीति, न्याय और समाज की मानसिकता पर तीखा हास्य है। लेखक… Spread the love
मध्यमवर्गीय शादियाँ : परंपरा, शोभा और तकनीक का तड़का डॉ मुकेश 'असीमित' October 10, 2025 हास्य रचनाएं 0 Comments हमारे इलाक़े की मध्यमवर्गीय शादियाँ किसी भूले-बिसरे लोकगीत के रीमिक्स जैसी होती हैं — धुन परंपरा की, बोल नए ज़माने के। रिश्ता तय होने की… Spread the love
“आज़ादी के दिन का अधूरा सपना”-लघु कथा Wasim Alam August 16, 2025 लघु कथा 4 Comments “15 अगस्त के उत्सव में झंडे लहरा रहे थे, गीत बज रहे थे, लेकिन गांधी मैदान के किनारे नंगे पाँव बच्चे लकड़ी समेट रहे थे।… Spread the love
आवारा कुत्तों का लोकतंत्र-व्यंग्य रचना Vivek Ranjan Shreevastav August 16, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “शहर की गलियों में लोकतंत्र आवारा कुत्ते के रूप में बैठा है। अदालत आदेश देती है, नगर निगम ठेका निकालता है, मोहल्ला समिति बहस करती… Spread the love
दोस्त बदल गए हैं यार-कविता रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 4, 2025 हिंदी कविता 2 Comments समय की धारा में बहते हुए रिश्तों का यह मार्मिक चित्रण है — जहाँ कभी हँसी-ठिठोली, सपनों की साझेदारी और चाय की चौपाल थी, वहाँ… Spread the love
आश्वासन की खेती-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' July 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments लोकतंत्र आश्वासनों पर टिका है, जहाँ हर पार्टी का घोषणा-पत्र वादों का कठपुतली शो होता है। जनता वोट रूपी टिकट से यह खेल देखती है,… Spread the love
व्यंग्य चिंतन में मुंगेरीलाल Prahalad Shrimali July 13, 2025 व्यंग रचनाएं 1 Comment मुंगेरीलाल केवल एक चरित्र नहीं, हर आम आदमी की अंतरात्मा है जो कठिन यथार्थ के बीच भी सुनहरे सपने देखता है। वह न पाखंडी है,… Spread the love
देव सो रहे हैं और आम आदमी पिट रहा है….? व्यंग्य Sunil Jain Rahee July 8, 2025 व्यंग रचनाएं 5 Comments जब देव सोते हैं तो देश की नींव भी ऊंघने लगती है। जनता, बाबू, साहब और चपरासी सब अपनी-अपनी तरह से नींद का महिमामंडन करते… Spread the love