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Tag: साहित्यकार

एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी—सीधी पीठ वाली, बिना पहियों के—जिस पर प्रेमचंद जैसे लेखक बैठकर विचारों की मशाल जलाते थे, और आज के लेखकों की रिवॉल्विंग, आरामदेह कुर्सियों के विपरीत खड़ी है।

मुंशी प्रेमचंद जी की कुर्सी-व्यंग्य रचना

मुंशी प्रेमचंद की ऐतिहासिक कुर्सी अब एक प्रतीक है—सच्चे लेखन, मूल्यों और विचारों की अडिगता का। पर आज का लेखक इस कुर्सी की स्थिरता नहीं,…

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एक साहित्यकार ट्रॉफी पकड़े संकोच में मुस्कुराते हुए, पीछे अलमारी में चमचमाता पुरुष्कार रखा है, सामने बब्बन चाचा तिरछी नजरों से पूछते—कहाँ से जुगाड़ किया?"

पुरुष्कार का दर्शन शास्त्र

पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है,…

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