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टिकट विंडो की लाइन : व्यंग रचना -डॉ मुकेश गर्ग

"रेलवे की लाइनों में जीवन के उतार-चढ़ाव की गाथा: प्रौद्योगिकी और व्यवहार की चुनौतियों के बीच, सामाजिक चेहरा और व्यक्तिगत जद्दोजहद का आईना।"

“रेलवे की लाइनों में जीवन के उतार-चढ़ाव की गाथा: प्रौद्योगिकी और व्यवहार की चुनौतियों के बीच, सामाजिक चेहरा और व्यक्तिगत जद्दोजहद का आईना।”

रेलवे के टिकट विंडो की लाइन में लगा हुआ हूँ, रेल यात्रियों के बढ़ते दबाव से परेशान होकर और अमृत योजना के बजट का कुछ अंश खर्च करके टिकट विंडो का चौड़ीकरन हो चुका है ,मसलन एक की जगह चार खिडकिया बना दी गयी है , चारों में लम्बी लाइन लगी हुई है। जब मैं लाइन में लगा था, तो सबसे छोटी लाइन में लगा था, लेकिन जैसे ही लाइन में लगा, पता लगा बगल वाली लाइन जल्दी जल्दी खिसकने लग गई है। मेरी लाइन बहुत स्लो चल रही है, कछुए की सी चाल। साइड में से खिड़की पर नजर मारी तो एक बुजुर्ग से महाशय नजर आए जो शायद रिटायरमेंट के कगार पर थे और इस बदली तकनीकी उपग्रडेशन के अभ्यस्त नहीं थे। बार बार अपना चश्मा हटाकर नजरें गड़ाकर की बोर्ड पर एक एक बटन दबा रहे थे, और स्क्रीन पर उसका अपेक्षित परिणाम देख कर उनके चेहरे की झुर्रियाँ भी खिलखिला रही थी। शायद रेल बिभाग ने कई सालों से रुकी भर्तियों के फलस्वरूप इनको मरते दम तक टिकट खिड़की को संभालने का जिम्मा दे दिया है, और आखिरी सांस इसी खिड़की पर छोड़ने का संकल्प ये महाशय ले चुके है |

एक जर्दे तम्बाकू का बीड़ा मुह में दबाये और एक दूसरा मिश्रण हथेलियों में दबाये,जाहिर है उसके मुह में इस गुटखा सप्लाई को बाधित नहीं होने देने के लिए दूसरा मिश्रण तैयार हो रहा था , एक अधेड़ सा पतला सा आदमी मेरे पास आकर कोहनी मेरे बगल में चुभाता हुआ मुझे अश्लील सा इशारा करता है , कौनसी टीरेन है साहब,कहो तो जुगाड़ करवा दूँ ,अन्दर तक एप्रोच है,टिकेट जल्दी हो जाएगा ,कहा भीड़ में धक्का मुक्की खारेले साहब , बस १०० रु एक्स्ट्रा लगेगा,मैंने उसके इस अश्लील प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक मना कर दिया था | आग लगे इस मोबाइल को! उसने मेरे हाथ में मोबाइल देखा और एक भद्दी सी गाली अपनी जर्दा रस से भरी दबी जुबान से मुझे और मेरे मोबाइल को देकर वहा से खिसक लिया,मोबाइल ही तो है ,आजकल इन लाइनों के इंतजार के कठिन समय को पार करने में आपका साथी, और मैं ही नहीं लगभग सभी लाइनों के लगभग सभी यात्री इस मोबाइल की दुनिया में खोए हुए अपनी बारी का धैर्यपूर्वक इंतजार कर रहे थे। कुछ जो आगे आगे लगे थे वो जरूर कुछ गर्मागर्म बहस में एंगेज्ड थे। शायद एक महाशय जिनकी ट्रेन छूटती जा रही थी इसलिए लाइन से निकल कर जबरन खिड़की पर आ गए थे, और खिड़की में बने होल में जिसमे मुश्किल से एक हाथ जा सकता है उसमें अपना हाथ ठूंस दिया था। दूसरा जो यात्री जिसका टिकट बन गया था वो अपना हाथ निकालने की कोशिश कर रहा था और इस सिलसिले में दोनों के हाथ फंस चुके थे। बहस इसी बात की थी कि कौन अपना हाथ पहले निकाले। बुजुर्ग टिकट विंडो महाशय ने सीटी बजाई दो पुलिसीये अपनी मोटी तोंद को हिलाते हुए आ चुके थे, अपनी डंडे को हवा में हिलाते हुए,ठेट स्थानीय मात्रभाषा में माँ बहिन के एकीकरण स्वरुप कुछ वाक्यों को अपनी भाषा में पिरोते हुए , टेढ़ी मेढ़ी हो रही लाइन को थोड़ा सीधा किया और खिड़की पर पहुँच चुके थे। दरअसल दोनों यात्रियों के हाथ खिड़की के छेद में फंस गए थे, दफ्तरों में भी बड़ी अजीब ब्यबस्था करनी पड़ती है ,विंडो होल छोटा ताकि टिकट वितरक की गर्दन तक किसी का हाथ नहीं पहुँच सके ,पुलिस वाले ने दोनों को कमर से पकड़ कर ,कुछ दुसरे यात्रियों की मदद से खींच कर बड़ी मुश्किल से उनके हाथों को बाहर निकाला। इस दौरान एक यात्री के हाथ में कसकर पकड़ी हुई भारतीय मुद्रा फट गई थी और इस कारण वो कुछ ज्यादा ही तमतमा गया। उसकी गालियाँ अब पूरे देश के सरकारी तंत्र, रेलवे, नेताओं, मिनिस्टर सभी को लपेटने लगी और बड़ी मुश्किल से उसके परिजन उसको चुप कराते हुए उसे निढाल सी अवस्था में युध में घायल सिपाही की तरह ले जा रहे थे। मैं मोबाइल में डूबा हुआ, संदेशों की बौछार को पढ़ रहा था। मोबाइल पर सेल की बौछार लगी हुई है, दिवाली आने में एक महीना है लेकिन कंपनियां इस बार दिवाली पर मुझे नए कपड़ों में देखना चाहती हैं। मुझे ही नहीं, मेरे बच्चों और बीवियों के लिए खास तैयारी कंपनियों ने कर रखी है। “इस दिवाली कुछ मीठा हो जाए” के नाम पर इस बार गिफ्ट कूपन और मिठाई के नाम पर सूखी चॉकलेटों के आकर्षक पैक तैयार हो गए हैं, जिन्हें पकड़े सुकुमारी का ऐड पोस्ट मेरे व्हाट्सएप्प पर चमक रहा है। हुआ यूँ कि एक बार डेस्कटॉप पर बैठे बैठे मुझे ये सुकुमारी का ऐड पोस्ट दिखा, एक अच्छा सा ऑफर सुकुमारी दे रही थी, ऑफर किस चीज़ का था ये मैं जल्दीबाजी में देखना भूल गया लेकिन सुकुमारी के इस अनुनय विनय को टाल नहीं सका और मैंने मेरा मोबाइल नंबर सब्सक्रिप्शन में डाल दिया । तभी से कंपनियां इस सुकुमारी के हाथों कभी चॉकलेट, कभी केक, कभी बिस्किट और न जाने क्या क्या मुझे इस दिवाली पर खिलाने को तुली हुई है। कंपनियां चाहती हैं कि आप हमेशा अपने मोबाइल से चिपके रहो क्योंकि कई कंपनियां कभी भी धमाकेदार सेल ऑफर ला सकती हैं, लिमिटेड स्टॉक्स के साथ। और अगर आप इस सेल का फायदा उठाना चाहते हैं तो सोते जागते, कहते हंसते बस अपना मोबाइल ऑन रखो। इस भरोसे में ना रहें कि आपका दोस्त आपको सेल के बारे में बताए ,वो बताना भी चाहता है तो नहीं बतायेगा क्युकी उसकी बीबी ने उसे हिदायत दे रखी है, सेल का पता किसी और को नहीं लगने और खुद ही सेल का लुत्फ़ उठाने की जो गुदगुदी होती है ,उसे सिर्फ पत्नियां ही समझ सकती है !

नई जेनरेशन को इस सेल ऑफर, डिस्काउंट ऑफर के भंवरजाल में कंपनियों ने एंगेज कर के इसे एक दिशा प्रदान की है, नहीं तो आज का भटका हुआ नौजवान फिर कोई उलटे सीधे काम करता, गालियाँ देता, माँ बाप को कोसता। इसलिए वो चुपचाप अपने मोबाइल में खोया, इन सेल ऑफ़रों के क्लिक होने का इंतजार करता रहता है। कई ऑनलाइन गेम्स, लॉटरी, जुआ,सट्टा सभी आजकल ऑनलाइन घर बैठे उपलब्ध है , इस पीढ़ी का विशेष खयाल रखा गया है, उन्हें हरदम ऑक्युपाइड करने का और उनकी युवा एनर्जी जोश को एक दिशा देने का।कंपनियां भी कितना खयाल रखती हैं, मेरा रिचार्ज 10 दिन बाद खत्म होने वाला है इसकी सूचना रोज़ दी जा रही है। साथ में इस बार रिचार्ज के साथ कुछ लुभावने ऑफर भी दिए जा रहे हैं। कुछ बैंक वाले मुझे लोन देने पर तुले हुए हैं, उनका रोज़ अलग अलग नंबर से कॉल भी आ रहा है चूंकि वो मेरे रोज़ कॉल किए गए नंबर के ब्लाक किये जाने के अभ्यस्त है, उन्हें पता है ऐसा करने वाला मैं अकेला नहीं हूँ। क्रेडिट कार्ड के ऑफर के ढेर सारे मैसेज फ्लैश हो रहे हैं, कई फाइनेंस कंपनियां मुझे इंटरेस्ट फ्री ओडी लिमिट देने को तैयार हैं, कई मुझे कार ऑफर कर रही हैं, वो भी छोटी EMI पर। संदेशों की इस बौछार से अभिभूत मेरा मन तन सब भीग गया है, और इसके ऊपर गर्मी में रेलवे का ऊपर अपनी धीमी चाल से चलते पंखे की गरम हवा भी ठंडा अहसास दे रही है। मोबाइल के युग ने आदमी को अकेला कर दिया या अकेलापन ने आदमी को मोबाइल से जोड़ दिया, फर्क करना मुश्किल हो रहा है। कंपनियां सब जानती हैं, मेरी कार की लोन की किस्त, कार सर्विस की डेट का मैसेज भी 4 दिन पहले फोन कॉल और मैसेज से आ जाता है, उनका सर्विस सेंटर मेरी कार की सर्विस के लिए पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रहा है, एक कार जो मैंने सबसे पहले खरीदी थी, उसके भी सर्विस के लिए अभी तक कॉल आते हैं उन्हें बार बार बताना पड़ता है कि वो कार बेचे हुए मुझे 4 साल हो गए हैं लेकिन कंपनियां अभी भी सर्विस करना चाहती हैं और मेरी बात पर उन्हें कतई विश्वास नहीं है। मेरे भविष्य की कुंडली की भी चिंता है भविष्य वाचने वाले कई भविष्यवेत्ताओं को वो सुबह सुबह मेरी कुंडली में बैठे ग्रहों की स्थिति मुझे अवगत करा रहे हैं, व्हाट्सएप्प पर भी संदेशों की बौछार है, प्रवचनकर्ताओं के ब्रम्ज्ञान को सुबह सुबह मॉर्निंग कोट के नाम पर परोसा जा रहा है, मेरा मस्तिष्क इस ज्ञान से ओवरलोडेड हो गया है लेकिन फिर भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की लाइफ लाइन ,हर जगह लगी लाइनों में अपना टाइम व्यतीत करने का मुझे मोबाइल से बढ़िया कोई जरिया नहीं लगता।

रचनाकार -डॉ मुकेश गर्ग

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