सर्किट हाउस के पोर्च में एक लक्जरी कार रुकी। दो भारी भरकम शरीर वाले उतरने के प्रयास में हल्के से लड़ खड़ा भी गये। सहारा देकर वीआइपी कक्षों तक पहुचाया गया। आंखों का हल्का ललाई युक्त सरुर सारी कहानी कह गया।
प्रदेश में अपनी ही पार्टी का राज हो तो सर्किट हाउस, डाक बंगले को पार्टी कार्यालय बनाने में किसी को भी आपत्ति नही होती है। विपक्ष अमूमन या तो मुर्दार होता है या बिकाऊ। प्रशासन को क्या पडी़ जो बोले। कोऊ नृप हमहिं का हानि की तर्ज पर अफसर तो बिचारे वैसे ही सहमें से दिन काटते है।
सफेद कुर्ते पायजामे में लोकल कार्यकर्ता आगे पीछे घूमते इन महानुभावों की सेवा के लिए आतुर खड़े थे। खादी की सफेद ड्रेस व सफेद टोपी की प्रेरणा से ही तो आज़ादी का आन्दोलन ने तेजी पकड़ी थी। गांधीजी ने भले ही टोपी नही पहनी पर आज यही गांधी टोपी राज प्राप्ति का सुदृढ़ माध्यम बन गया है। कार्यकर्ताओं के लिए यहाँ होड़ सी लगी पड़ी थी कि ये आगन्तुक वीआईपी मुंह धोये तो टॉवेल से इनका मुंह पोंछे। पता नही किस पर इनकी इनायत हो जाये और जिस पर हो गयी उसके तो वारे न्यारे हो जाते है। पुराने कार्यकर्ता ऐसे ही तो चांदी बटोरते थे। राशन से लेकर दारू के ठेके दिलवाना इनके साधारण से इशारे का काम है।
देश की नामी गिरामी पार्टी के केन्द्रीय अधिकारी किसी वीआईपी से कम नही होते। एसेम्बली के चुनावों में कुछ महीनें शेष रह गये थे। राज्यों से ही तो पार्टी का पोषण होता है। क्षत्रप अपना है तो सब अपने है।
एम एल ए टिकटों का बंटवारा इन्हीं महानुभावों की सिफारिशों पर होता है। पहले सर्वे, फिर नामों का चयन, पैनल और अंत में टिकट आवंटन की पैरवी आदि तक के महत्वपूर्ण कार्य इनके हाथों से ही संपन्न होते है।
नेताओं के चमचों ने पोर्च के बाहर नारे लगाने शुरू कर दिये तो पांडे जी ने बाहर आकर सबको शान्त किया और अगली सुबह आने का आमंत्रण देते हुए विसर्जन का हुक्म जारी किया। फिर भी कुछ ढीढ किस्म के सेवाभावी डटे ही रहे। अभी तक उन्हें माला पहनाने का मौका ही नही मिला था और सेल्फियां व फोटो भी तो बाकी थे। उनके आने का मुख्य उद्देश्य भी यही था। आखिर उन्हें अनुमति मिल ही गयी।
सभी ने एक साथ कमरे में घुस कर तिवारी जी व पांडे जी को मालायें पहनायी। जिनके फोटो ठीक नही आये थे तो उन्होंने उतरी हुई मालाओं को इधर उधर से कबाड़ कर पहनाते हुए फिर फोटो खिचवायें। तिवारी जी व पांडे जी को इसमें कोई आपत्ति नही थी। किसी जमाने में वे भी ऐसा ही किया करते थे। इसके साथ ही रटे रटाये नारों से सर्किट हाउस गुंजा दिया। यदि अपनी सरकार बन गयी तो अदने अधिकारियों पर धौस जमाने के लिए ऐसी सेल्फियां पर्याप्त होती है।
कुछ वरिष्ठ व समझदार कार्यकर्ता इन नेताओं के लिए कीमती पेय पदार्थों के इन्तजाम में लगे हुए थे, उन्हें पता था कि किस ठेके पर कौन सा व कितना महंगा माल मिलता है?
इधर उम्मीदवारी वाले युवा नेता ने तिवारीजी के कान में धीरे से कहा कि कुछ महिला कार्यकर्ता भी आई हुई है तो तिवारी जी के चेहरे पर अलग सी चमक आ गई और लड़खड़ाती जुबान से अस्पष्ट शब्दों में कहा कि कार्यकर्ता तो ठीक है पर कुछ करने के लिए काम की है या वैसे ही। इस पर सभी ने बड़ा जोर से ठहाका लगाया। पांडे जी ने कहा कि ज्यादा नही दो चार आ जाये। सबसे मिलते मगर यह सरकारी बिल्डिंग है, जगह जगह कैमरे लगे होते है, बेकार में बतंगड़ हो जायेगा। अखबार वाले राई का पहाड़ बनाने में माहिर होते है। कल रात में किसी शानदार होटल में जानदार प्रोग्राम रखो, जरूर मिलेंगे, आये ही इसीलिए है। युवा नेता समझ गया। इशारा होते ही महिलायें भी ताबड़तोड़ गति से कक्ष में घुसी और जो महिलायें तिवारीजी से थोड़ी दूर खडी़ फोटो खिचवा रही थी ,उन्हें अपने पास सटा कर एक अपना व दूसरा महिला के हाथ से विक्टरी का सिम्बल बना फोटो खिचवा कर सबको संतुष्ट किया। लगभग सभी महिलाऐं प्रसन्न होकर रवाना हुई पर कुछेक आपस में एक दूसरे पर लांछन लगा मन की भड़ास निकालने में पीछे भी नही रही।
अगली सुबह फिर जमावड़ा बढता गया। गाड़ियों में भर भर के लोग लाये गये। रोटी रोजी का सवाल था। प्रजातंत्र में शक्ति परीक्षण का मौका चूकते ही राजनीति के पाताल लोक में भी कोई स्थान मिलेगा इसकी भी गारंटी नही होती।
राजनीति में हाशिये पर आने के बाद भगवान जी के द्वारा इस लोक से उठाने पर तीसरे के उठावणे में घर के लोग भी मौजूद रहे तो समझो कि मरते इज्जत बनी रही। करमो की गति न्यारी ही होती है।
इधर सर्किट हाउस के मैदान में आई बहुत सी गाड़ीयों के नंबर प्लेटों पर सरपंच, प्रधान आदि लिखा था। एक गाड़ी के नंबर प्लेट पर अंको के बजाय छात्र संघ प्रेसीडेन्ट लिखा था जैसे राष्ट्रपति जी की गाड़ी पर लिखा होता है। अपने अपने नेताओं के पक्ष में नारे बाजी भी खूब हुई। थोडे़ बहुत लात घूँसे भी चले। गुस्से से गर्मी पैदा होती है और वातावरण में तेजी से विसरित हो जाती है पर मैदान होने के कारण आग नही लगा पायी। बड़े बुजुर्ग अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही ठंडे हो चुके थे।
आखिरकार पुलिस वालों को हस्तक्षेप कर, उन्हें अलग करना पड़ा। सरकार अपनी हो तो ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज नही की जाती। पुलिस वाले इससे वाकिफ़ होते है। घर का ही तो मामला है। धूल झाड़ी और मामला रफा दफा।
सबसे पहले बुजुर्ग नेता को आमंत्रित किया गया। सच्चे गांधी वादी,धोती-कुर्ता पहनें, जेब से टोपी निकाल सलीके से सिर को टोपी से ढक कर अंदर गये। उनके सम्मान में चैयरमेन तिवारी जी के सिवाय सभी खड़े हो गये। उनके बैठने पर सब बैठे। रिपोर्ट कार्ड ऊंचे स्वर में पढा गया। पेशे से वकील, दो बार एम एल ए, एम पी, स्वतंत्रता सेनानी, पार्टी के जिला फाऊंडर सदस्य और भी पता नही क्या क्या दावेदारी के लिए भरे गये फार्म में लिखा था! एक स्थान पर जेल जाने का विवरण भी दर्ज था।
तिवारी जी ने बुजुर्ग नेता से एक ही सवाल पूछा कि महाराज! सब ठीक है, धन की व्यवस्था कैसे होगी?
तो दो टूक जवाब मिला कि पहले भी किया है और जीते है। अब भी कर लेंगे। आप जैसे प्रभावी लोग पार्टी में है तो हमें धन की चिंता करने की जरूरत ही कहाँ है? तिवारी जी ने अधखुली आंखों से पांडे जी की ओर देखा और बोले कि हम तो कल रात से ही आपका इन्तजार कर रहे थे। खैर! कोई बात नही, हाथ मिला, नमस्कार कर बुजुर्ग नेता को बाहर जाने का इशारा कर दिया।
दूसरे नंबर पर युवा तुर्क नेता अंदर आये, हाथ में टंगी थैली को बीच टेबल पर रखा और सामने रखी कुर्सी पर बैठ गये। तिवारी जी के इशारे पर कुण्डली पढी गई। पंच ,सरपंच, नगरपालिका मुखिया, पढाई मैट्रिक एपियर,
ठेकेदारी के साथ सरकारी अनाज की गाँवों तक ढुलाई, बस और कुछ नही।
इतने में एक सफेद टोपी धारी कार्यकर्ता बर्फ़ व गिलासें ले आया ताकि माहौल शीतल व शांत बना रहे। कांधे पर टंगे थैले से विचित्र सी बोतल निकाल आदर के साथ पेय प्रस्तुत किया। सबके चेहरों पर मुस्कान के साथ रौनक भी आ गयी। चैयरमैन साहब ने गिलास उठा घूंट भरते कहा कि अब तक किस दुनिया में रह रहे थे श्रीमान्! पिछले चुनावों में भी हम आये थे वो दौरा बड़ा शुष्क रहा था। युवा नेता ने बड़ी मायूसी से जवाब दिया “पता नही साहब हमारे ये बुजुर्ग नेता कब तक जीवित रहेंगे? कुर्सी का मोह जकड़े हुए है। न तो मरे न ही मांचा ( खटिया) छोड़े। शमशान में इनके लिए लकड़ियाँ डाल दी गई है पर इलेक्शन आते ही इनके शरीर में नया खून बनने लगता है। हम नौजवानों के तो हमेशा आड़े ही रहे। इलेक्शन तो पांच साल बाद आते है तब तक मैं भी बूढा हो जाऊंगा पर इनके रहते हम युवाओं का नंबर कभी नही आयेगा। आगे आप ही जानो। थोड़ा रुककर युवा नेता फिर बोले-
“खुद को स्वतंत्रता सेनानी कहते है। अरे ये महाशय 1925 में पैदा हुए तब अंगरेजी राज था। हम भी अगर उस समय पैदा होते तो जेल भी जाते और कोड़े भी खाते। इसमें कौनसी बड़ी बात है! हम आजाद भारत की संतान है तो इसमें हमारा क्या दोष। पुरानी बातों से कब तक खायेंगे?” फिर सोचते हुए बोले-
साहब जी, अब पहले वाली बातें नही रही। जनता हुशियार हो गई है कि हर बार इन्हें ही जिता दे? सारा युवा मेरे साथ है। फिर रुकते हुए से बोले -“सर जी, अपनी तो थ्योरी साफ है- चार पैसे फेंको और थोक बंद वोट लो और सुन लो साहब, अगर आप पड़ोस की विधानसभा टिकट फलान सिंह को दे दो तो उसका भी सारा खर्चा मैं दे दूंगा। हमारे और उनकी जात वालों से पैक्ट है। गाड़ी, घोड़े ,बैनर ,दारू वारू का सब इन्तजाम हो जायेगा। बस एक बार मुख्यमंत्री जी का दौरा करवा दीजियेगा। लोहे की लकीर खींच कर कह रहा हूँ कि दोनों सीटों पर जीत पक्की।
टिकट की गारंटी आपकी हो तो सीट जीतने की मेरी”, यह कहते हुए टेबल पर रखी थैली को उलट दिया। “अभी तो ये रिजर्व बैंक के गुलाबी कागज़ थोड़े बहुत ले जाइए, आगे तिवारी जी जो आदेश करेंगे सिर माथे पर, हाज़िर कर दूंगा।”
उठते उठते युवा नेता ने टेढ़ा मुंह बनाते कहा कि विपक्षी पार्टियां भी ऑफर कर रही है पर इस पार्टी की बनी सरकार का आटा खाया है तो चुकाना मेरा धर्म है। आगे आपको निभाना है. मैं तो साफ़ कहता हूँ और सुखी रहता हूँ।
“कैसी बहकी बहकी बातें करते हो यार। शाम की पार्टी का इन्तजाम करो,अपनी पार्टी में आप जैसे युवाओं की दरकार है। भविष्य तभी उज्जवल रहेगा और हाँ, कल रात में जो महिलाऐं आयी थी उनको भी आगे लाओ, पार्टियों में उनके बिना रौनक नही होती।” यह कहते हुए बर्फ से ठंडा हुआ गिलास उठा चियर्स कहते हुए तिवारी जी ने इन्टरव्यू समाप्ति की घोषणा कर दी। कक्ष में बैठे सब जने प्रसन्न चित्त मुद्रा के साथ रिलेक्स महसूस कर रहे थे।
युवा नेता के इन्टरव्यू कक्ष में लम्बे ठहराव से बाहर मैदान में नये नये कयास उत्पन्न हो रहे थे। युवा नेता जैसे ही बाहर आये कि नारों की तीव्रता व पिच लगातार बढता गया। चेले चपाटों का आपसी विरोधियों से घूसों का आदान प्रदान भी खूब हुआ। गांधी वादी कमज़ोर निकलें। सत्य व अहिंसा की दुहाई देते हुए पीछे हट गये।
अहिंसा की मार से अंग्रेज भले ही भाग गये पर आज टिकटार्थियों की लड़ाई में गांधीजी की अहिंसा,भोथरा हथियार ही साबित हुई।
शाम को नगर की नामी गरामी होटल के प्रांगण में पत्रकारों समेत हजार से अधिक कार्यकर्ताओं की बैठक हुई। भीतर से सब जानते थे कि आज के लजीज वेज -नानवेज भोजन की व्यवस्था कौन कर रहा है?
होटल में बार और बार बालाएं भी थी। कई तो अंत तक वही जमें रहे। बाहर क्या हो रहा था इससे कोई ताल्लुक ही नही था। अधिक द्रव सेवन के कारण बाद में तो वे मधुशाला से बाहर आने के काबिल ही नही रहे। वही बार में ही लुढक गये। बार सेवकों के लिए उन्हें बाहर धकेलना रुटिन मैटर था सो बिना किसी अखबार की न्यूज के मदिरा घटनाक्रम वही समाप्त हो गया।
उधर बाहर लाॅन में बुजुर्ग नेता जी को बड़ी सी माला पहना तिवारी जी के साथ मंच पर बिठाया गया। युवा नेता श्रोताओं के बीच कार्यकर्ताओं के साथ ही बैठे। बुद्धिजीवी लोग इशारे में समझ गये थे कि आज हमारे गांधीवादी नेता का राजनीतिक क्षेत्र से विदाई समारोह हो रहा है।
महिलाओं का उत्साह प्रशंसनीय स्तर को पार कर रहा था। कई सेल्फियां ली गई। साड़ियों के पल्लू गजब ही ढा रहे थे। कुछ तो ऐसा व्यवहार कर रही थी कि तिवारी जी का ध्यान उनकी तरफ़ ही बना रहे। वे जानती थी कि राज आने पर कई पदों की रेवड़ियां ऐसे करने से ही तो मिलती है,बंटती है।
अंत में तिवारी जी का भाषण हुआ। उच्च कोटि की हिन्दी में दिया भाषण किसी साधु- संत के प्रवचन से कम नही था। सत्य, अहिंसा, गांधी वाद, व पार्टी के भीतर के लोकतंत्र की बड़ी सुन्दर व्याख्या से आम कार्यकर्ताओं में विश्वास बैठ गया कि जब तक तिवारीजी जैसे मूर्धन्य चिन्तकों के हाथों में पार्टी की बागडोर है, पार्टी को कोई हरा नही सकता और देश का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।
तिवारी जी ने लोकतंत्र की दुहाई देते हुए घोषणा की कि आज हमारा देश बहुत बड़ी करवट ले रहा है। हमारे युवा प्रधानमंत्री जी व पार्टी अध्यक्ष जी का आह्वान है कि नई पीढ़ी को उसके जुझारूपन का उचित सम्मान मिले। यदि आप और हम उनको नकारते रहे तो देश की कुल आबादी का चालीस प्रतिशत युवा हमसे दूर हो जायेगा। यह पार्टी के लिए आत्महत्या जैसा कृत्य होगा।
आप सभी के विचारों से अवगत होने का हमने पूरा प्रयास किया है, अतः आपसे सहमत होते हुए युवा नेता का नाम पैनल में सबसे उपर रखने की घोषणा करता हूँ और आगामी चुनावों में सहयोग हेतु सभी बुजुर्ग कार्यकर्ता अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है।
घोषणा होते ही कुछ खुसपुसाहट व विरोध स्वरूप हाय हाय की मरीयल सी आवाज हुई पर तुरंत कुछ मुस्टंडों ने बल का प्रयोग करते हुए उसे वही दफना दी।
तिवारी जी ने युवा नेता को मंच पर आमंत्रित कर वैसी ही बड़ी माला पहनाई जैसी बुजुर्ग नेता पहने बैठे थे।
युवा नेता ने मंच पर साष्टांग दंडवत कर सभी को नमस्कार किया व वीआईपी आदि को सम्बोधित करते हुए कहा कि आपने जो सम्मान दिया है इसकी लाज रखूंगा। आप सब लोग मेरे निमंत्रण पर मीटिंग में पधारे, इसके लिए आभार प्रकट करता हूँ। मैं जानता हूँ कि पार्टी में सभी को राजी नही रखा जा सकता। लेकिन पार्टी यदि मजबूत हाथों में होगी तो आगे भी जीतती रहेगी। मुझे मालूम है कि भीतरघात होगी पर मैं उसके लिए भी तैयार हूँ। चुनावों में सहयोग की अपेक्षा तो हमेशा से रहती रही है।
अंत में सबसे हाथ जोड़ निवेदन है कि भोजन जरूर करके जावे। बुजुर्ग महोदय की ओर देखते हुए कहा कि ठीकरे तो आपस में टकराते रहते है। आपस में भले लड़े ,कटे पर रहेंगे अपने ही। बड़े बूढ़े कह गये है कि अन्न देवता का अपमान करना उचित नही होता है। भोजन करके ही जावे।
तब तक कार्यकर्ताओं ने जिंदाबाद के नारों से आसमान गुंजा दिया और बड़ी संख्या में युवा कार्यकर्ता मंच पर बधाई देने के लिए चढ गये। धक्का मुक्की में बुजुर्ग नेता जी की गांधी टोपी गिर गयी और कार्यकर्ताओं के पांवों तले इस हद तक कुचलती व ठोकरें खाती रही कि वह बदरंग हो हमेशा के लिए मंच के कालीन में दफन हो गयी.. …
