WhatsApp के ग्यानी और बहस का जाल
कभी-कभी लगता है कि किसी “व्हाट्सऐप फॉरवर्डीये ज्ञानी” से बहस करना ऐसा है जैसे पानी में रेत की मुठ्ठी बांधना—जितना कसोगे, उतना हाथ खाली। यह बहस आपके बौद्धिक स्तर को ऊपर नहीं उठाती; उल्टा उसे न्यूनतम तल तक खींच ले जाती है।
ऐसे ज्ञानी प्रायः हर विषय में विशेषज्ञ होते हैं—चिकित्सा से लेकर खगोल विज्ञान और राजनीति से लेकर भजन संध्या तक। उन्हें तर्क की ज़रूरत नहीं, क्योंकि उनके पास “फॉरवर्ड” है। आप पुराना मुहावरा याद करिए—
“जितनी चादर हो उतना ही पैर पसारो।”
लेकिन व्हाट्सऐप विद्वान का नियम है—चादर चाहे पॉकेट रुमाल जितनी हो, पैर फिर भी पचास किलोमीटर दूर फैलाओ।
ग़ालिब ने कहा था:
“हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।”
यही हाल इन बहसों का है—आप चाहे जितनी विनम्रता से तर्क दें, अंत में वही “गूगल बाबा” या “फॉरवर्ड अंकल” के हवाले कर देंगे।
असल में, मूर्खों की भीड़ में चुप रहना कहीं अधिक श्रेयस्कर है। कबीर का दोहा याद आता है—
“मूक रहे तो साधु कहावे, बोले तो कहा जावे मूर्ख।”
इसलिए, ऐसे ज्ञानी की सभा में बुद्धिमान वही है जो हंसकर विषय बदल दे। बहस की जीत साबित करने में नहीं, बल्कि साबित न करने में है।
अंततः, जीवन छोटा है और डेटा पैक महंगा—इसे अनावश्यक बहस में क्यों गँवाया जाए? बेहतर है कि चाय का कप उठाइए, मुस्कुराइए और कह दीजिए—“वाह! क्या ज्ञान दिया आपने!”