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यजुर्वेद: कर्म, यज्ञ और जीवन संतुलन का शाश्वत वेद

“अग्नि के यज्ञकुण्ड से उठते स्वर्णिम मंत्र, आकाश में तारामंडल देवताओं की उपस्थिति, एक ऋषि यजुर्वेद का पाठ करते हुए, नदीयां आहुति की धाराओं में बदलती हुईं, और धरती-आकाश के बीच संतुलन का दिव्य चक्र।”

“बरगद के नीचे ध्यानस्थ ऋषि, आकाश में स्वर्णिम धर्मचक्र, बहती नदी जीवन-चक्र का प्रतीक, एक ओर आधुनिक नगर और दूसरी ओर पर्वत व तारामंडल का संतुलन, प्रकाशमान वैदिक मंत्र।”

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

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