यलगार हिंदी कविता

दुनिया के लिए बेकार हूँ या
अपनों के लिये बेगार हूँ मैं
पर अपनों का ना बेगानों का
उस खुदा का ही तलबगार हूँ मैं।

ना धन दौलत का मैं मालिक हूँ
ना गाडी़ कोठी है पास मेरे
फिर भी गाहे बेगाहे बस यूं हीं
किसी ना किसी का मददगार हूँ मैं।

चाहे पेट कमर से है चिपका
पसलियां गिन लो सारी तुम
फिर भी हर बुराई की खातिर
अभी भी तलवार हूँ मैं।

चाहे न देना कब्र को मिट्टी कोई
इसकी मुझे परवाह नहीं
जब तक है रुह ए बदन मेरे
जालिमों के लिये यलगार हूँ मैं ।

लेखक- सुनीता शर्मा

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Sunita Sharma

Content Writer at Baat Apne Desh Ki

Sunita Sharma is a passionate writer who shares insights and knowledge about various topics on Baat Apne Desh Ki.

Comments ( 1)

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Dr. Garima Jain

6 years ago

Vow !!!! Lovely lines . ....