चंदागिरी –चौथ वसूली
चंदागिरी आजकल शहर में खूब फल-फूल रही है, ये बहुत कुछ हफ्तावसूली का ही सभ्य रूप है। हां, चंदागिरी में लोग वही होते हैं जो पार्ट टाइम दादागिरी का धंधा भी करते हैं। शहर के लोग भी न बड़े ढीठ हैं, चंदे के नाम से भागते हैं..।अब चन्दा नहीं देंगे तो कुछ लोगों का तो धंदा ही बंद हो जाएगा.. ।जैसे ही शहर में किसी आयोजन का पता लगता है,ये ही गिने-चुने लोग जिनसे चंदागिरी वाले लोग चन्दा वसूलने की आशा रखते हैं, दुबके फिरते हैं।
अरे भाई, दान-पुण्य तो शास्त्रों में वर्णित है । सरकार जो टैक्स वसूलती है ,उसमें तो कोई ना-नुकुर नहीं ,वो भी तो चन्दा है ,सरकारी चन्दा ।कई लोगों की रोजी-रोटी तो चंदे से ही चलती है।देवी भक्त मंडल,राम भक्त मंडल,गणेश भक्त मंडल,हनुमान भक्त मंडल ,गौ भक्त मंडल ,सभी ने अपनी अपनी दुकाने खोल रखी है । अब क्या करें साहब धंदा भी तो मौसमी है न ,बारहमास तो चलता नहीं ,इसलिए सब 15 दिन में बारह महीने की रोटी का जुगाड़ करते हैं । संस्थाएँ बनती हैं चंदे के लिए। किसी ने पूछा’ संस्थाएँ क्या हैं ?’ मैंने कहा ‘जो चंदा लेकर चांदी काटे वो संस्था है।‘ वो कह रहे थे –‘आपके शहर में तो चंद ही संस्थाएँ हैं।‘ मैंने कहा ‘नहीं, संस्थाएं तो बहुत हैं , लेकिन बस चंदे के लिए हैं।‘ अभी तो हम इस गाने के बोल भी कुछ बदल सकते हैं ‘चंदू के चाचा ने चांदनी रात में चांदी के चम्मच से चटनी नहीं चंदा ही चटाया होगा।‘
हम तो कहें गणेश-चौथ के नाम से ही चौथ वसूली का अवसर ढूढने वाले लोग हैं ये !
रतजगा , गणेश स्थापना, नवरात्र, राम रथ यात्रा, देवी का जागरण, सत्संग, माता की चौकी, शोभा यात्रा, न जाने कितने ही आयोजन हैं ,सब चंदा की चांदी चाटने से ही उज्ज्वल होते हैं। चंदा खोरी कोई चिंदी चोरी नहीं है जी, ये सिर्फ धुरंधर चंदावीरों का काम ही हो सकता है । नयी संस्थाएं बनते ही सबसे पहले उन चंदावीरों को ढूंढती हैं जो चंदावृत्ति के अपने हुनर से संस्था की जीवनदायनी चंदा-मृत का इंतजाम कर सकें ,ताकि संस्था के चांद की चमक फीकी न पड़े। इस चंदा-मृत का पान कर ही ये चंदा-जीवी संस्थाएं जीवित हैं।
राजनीतिक पार्टियां की प्राणवायु सिर्फ वोट नहीं, चंदा भी है । आम जनता के पास देने के लिए सिर्फ वोट है, चन्दा का टुकडा भी नहीं है और रईसों, बिजनेसमैनों के पास चंदा है फुल-मून की तरह पूरनमासी का चन्दा । दोनों की बराबर आपूर्ति से ही राजनीतिक पार्टियों का अस्तित्व चिरंजीवी है। ये संस्थाएं भी अपने चंदावीरों को बदलती रहती हैं, जैसे नेता जी अपने चुनाव क्षेत्र बदलते रहते हैं। इन्हें पता है एक बार किसी की शक्ल चंदावीर नाम से चंदा दानवीर के मन मस्तिष्क पर अंकित हो जाए फिर वो उसके फोन नंबर को ब्लॉक कर देगा, शहर से बाहर होने का बहाना करेगा । इसलिए ये चंदावीर हर साल बदल दिए जाते हैं । बड़ा ही कौशल और सूझबूझ का काम है जी चंदा वसूलना भी । साम दाम दंड भेद की सनातनी तकनीक में महारत होना पड़ता है । ये लोग छापामार तकनीक से घर में प्रवेश करते हैं । एक साथ 4 या 5 लोग आते हैं, ताकि चंदा हलाल होने वाले बकरे की चारों टांगे पकड़ सकें ,उसे भागने का मौका नहीं मिले । हम भी हर बार इस चंगुल में फंस ही जाते हैं।
एक गौ रक्षक चंदावीर की गाथा सुनाएँ आपको ।बिलकुल सांड जैसी शक्ल , गले में गौ रक्षक का लाल पट्टा ,एक हाथ में ६ फूटीया डंडा धारण किये हुए ,दिन भर मरखने सांड की तरह इधर उधर मुहँ मारते फिरते है । गौचारे के नाम पर खुद के चारे का इंतज़ाम करने के लिए । गाय खुद ने नहीं पाल रखी है ,लगता नहीं कभी 1 पूली चारा भी किसी गाय को खिलाया हो लेकिन गौ रक्षक का काम जी जान लड़ाकर करते हैं । उनका काम महीने दो महीने में किसी गौकशी के गिरोह का भंडाफोड़ करना, दो-चार लाठी जमाना, पुलिस और गौकशी वालों के साथ फोटो खिंचवाकर सुर्खियों में छाए रहना होता है। गौ-रक्षक के नाम पर नियमित चंदा वसूली इनका मुख्य रोजगार है। अब सिर्फ अखबार में नाम छपने से तो रोटी नहीं मिल जाएगी ना, सरकार ने भी अभी कोई गौ-रक्षक संस्था नहीं खोल रखी। नहीं तो जाड़-जुगाड़ लगाकर इन्हें परमानेंट रोजगार मिल ही जाता ।
एक बार मेरे क्लिनिक पर आ गए, मेरे से खफा हो गए । लगे हाथों उन्होंने मुझे गौ द्रोही करार दे दिया था। मेरे हिन्दू धर्म में जन्म लेने को इस संसार के निर्माता की सबसे बड़ी गलती मानते थे ।कारण वही था- मैंने चंदा देने से साफ इनकार कर दिया। इशारे से बाहर सड़क का उनको रास्ता दिखाया, अरे भगाया नहीं दिखाया कि ‘देखो इतनी सारी गायें, सांड, बैल बाहर घूम रहे हैं, कई इनमें से बिलकुल मरणासन्न स्थिति में हैं, इन्हें गौशालाओं में क्यूँ नहीं ले जाया जाता, नगर परिषद से कहकर इनका क्यूँ नहीं इंतजाम करते, आप लोग गाय गाय में फर्क करते हो । ये दूध नहीं देती इसलिए इन्हें गौशाला में रखने का हक नहीं है क्या ? जीव जीव में ये फर्क क्यूँ, फिर इन सांडों का क्या होगा ? जब गाय माता है तो इन्हें भी छोटा मोटा पिता मान कर इनकी भी तो सेवा करो भाई।‘
मेरी बातें सुनकर उसका चेहरा जो चंदा मांगते वक्त गाय की तरह दयनीय और दयालुता की मूरत बना हुआ था, धीरे धीरे मरखने सांड के रूप में परिवर्तित होने लगा। मुझे लगा थोड़ी देर में ये मरखनी देने वाला है बस , खैर बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया।

✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक
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