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हम उस ज़माने के थे -हास्य व्यंग्य रचना

ग्राम्य यादों का कोलाज: बच्चे मिट्टी में खेलते, तालाब में तैरते, थैलों में बाजरे-ज्वार के खेत, आँगन में खाट पर बैठे चाँद-तारों से बातें करते लोग; दादी हाथ में चटाई लेकर चिड़ियों की कहानी सुना रही है; बैकग्राउंड में खादी टोपी, पारम्परिक स्नैक्स और बाग़ की हरियाली — सेफ़िया-नॉस्टैल्जिया, प्रकृति-कनेक्शन और ग्रामीण जीवन की गर्माहट का दृश्य।

हम उस ज़माने के थे…

ग्राम्य यादों का कोलाज: बच्चे मिट्टी में खेलते, तालाब में तैरते, थैलों में बाजरे-ज्वार के खेत, आँगन में खाट पर बैठे चाँद-तारों से बातें करते लोग; दादी हाथ में चटाई लेकर चिड़ियों की कहानी सुना रही है; बैकग्राउंड में खादी टोपी, पारम्परिक स्नैक्स और बाग़ की हरियाली — सेफ़िया-नॉस्टैल्जिया, प्रकृति-कनेक्शन और ग्रामीण जीवन की गर्माहट का दृश्य।

अब तुम बस दीवारों में घिरे रह गए हो…

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

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