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Author: डॉ मुकेश ‘असीमित’

लेखक का नाम: डॉ. मुकेश गर्ग निवास स्थान: गंगापुर सिटी, राजस्थान पिन कोड -३२२२०१ मेल आई डी -thefocusunlimited€@gmail.com पेशा: अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ लेखन रुचि: कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से ) काव्य कुम्भ (साझा संकलन ) नीलम पब्लिकेशन से  काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन से  अंग्रेजी भाषा में-रोजेज एंड थोर्न्स -(एक व्यंग्य  संग्रह ) नोशन प्रेस से  –गिरने में क्या हर्ज है   -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह ) भावना प्रकाशन से  प्रकाशनाधीन -व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन  से  देश विदेश के जाने माने दैनिकी,साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित  सम्मान एवं पुरस्कार -स्टेट आई एम ए द्वारा प्रेसिडेंशियल एप्रिसिएशन  अवार्ड  ”
“Rigveda’s Nasadiya Sukta — mystical depiction of universe emerging from cosmic darkness with a meditating sage symbolizing creation and consciousness.”

नासदीय सूक्त की दार्शनिक व्याख्या

ऋग्वेद का नासदीय सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर विश्व के सबसे प्राचीन दार्शनिक चिंतन में से एक है। यह कहता है कि जब न अस्तित्व…

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In the infinite cosmic darkness, a glowing seed of light rests in shadowed hands — symbolizing the birth of dawn within night; the Divine Feminine form subtly emerging from the void, bathing half the Earth in golden radiance.

सावित्री: कथा से परे, चेतना का महागान

श्री अरविन्द का ‘सावित्री’ महज़ किसी पुराणकथा का काव्यात्मक पुनर्सृजन नहीं है; यह मनुष्य-चेतना की सीमाओं को लाँघने वाली आध्यात्मिक यात्रा का मंत्रमय महाकाव्य है—ऐसा…

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नदी के घाट पर सूर्योदय के समय महिलाएँ साड़ी पहने जल में खड़ी होकर अर्घ्य देती हुईं, बांस की सूप में ठेकुआ, केले और गन्ना सजे हुए, पीछे दीयों की पंक्तियाँ और सुनहरी रोशनी में नहाया हुआ वातावरण।

छट पर्व –जहाँ अस्त हुए सूरज को भी पूजा जाता है

छठ पर्व अब बिहार की सीमाओं से निकलकर विश्वभर में भारतीय आस्था का प्रतीक बन चुका है। यह केवल सूर्य उपासना नहीं, बल्कि मनुष्य और…

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“बूंदी के बड़ौदिया गाँव में घास भैरू महोत्सव के दौरान कांच पर खड़ा ट्रैक्टर, सजे हुए बैल और भीड़ से घिरी बावड़ी का दृश्य।”

घास भैरू महोत्सव — लोक आस्था का रहस्यमय उत्सव

भाईदूज के दिन बूंदी के गांव जादुई नगरी में बदल जाते हैं — जहां पत्थर तैरते हैं, ट्रैक्टर कांच पर खड़े होते हैं, और देवता…

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“एक भावात्मक चित्र जिसमें भारत के नक्शे के भीतर दीप, तुलसी-विवाह, गोवर्धन की गोबर-आकृति, झूले, अलाव और शंख के अमूर्त प्रतीक तैरते हैं—बीच में ‘देव उठान’ का चंद्राकार चिह्न, जो स्मृति और उत्सव के पुनर्जागरण का संकेत देता है।”

उत्सवों का देश: स्मृति से पुनर्जागरण तक

“कभी ‘यंतु, नजिक, चियां-चुक’—स्वर्ग के केंद्र—कहलाने वाली धरती आज अपने ही लोक-उत्सव भूल रही है। देव उठान एकादशी हमें याद दिलाती है कि रोशनी बिजली…

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“डिजिटल युग के भाईदूज का प्रतीकात्मक चित्र — बहिन और भाई ऑनलाइन रूप में, वर्चुअल तिलक करते हुए, बीच में रोशनी की वाई-फाई डोर।”

भाईदूज — तिलक की रेखा में स्नेह, उत्तरदायित्व और रोशनी

“भाईदूज सिर्फ़ माथे का तिलक नहीं, रिश्ते की आत्मा में बसे भरोसे का पुनर्स्मरण है।” “जब बहन तिलक लगाती है, वह केवल दीर्घायु नहीं मांगती—वह…

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मंदिर के आँगन में गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट प्रसाद का आयोजन। लोग पत्तलों में बैठकर बाजरे की कूड़ी और कढ़ी का प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। चारों ओर दीपक जल रहे हैं, महिलाएँ सजावट में व्यस्त हैं, और पंडित जी गोवर्धन गिरिराज को भोग लगा रहे हैं। वातावरण में भक्ति और सादगी का सामूहिक सौंदर्य झलकता है।

अन्नकूट महाप्रसाद — स्वाद, परंपरा और साझेपन की कथा

दीवाली और गोवर्धन के बीच का दिन केवल त्योहार का अंतराल नहीं, बल्कि साझेपन की परंपरा का उत्सव है। पहले अन्नकूट में हर घर का…

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"कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाए जाने की लीला का दार्शनिक और सांस्कृतिक विश्लेषण — इंद्र के अहंकार, भक्तिभाव और सामूहिक शरणागति का प्रतीकात्मक चित्रण"

गोवर्धन पूजा — धरती, धारण और धारणा का उत्सव

गोवर्धन लीला केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं, बल्कि मानव चेतना की यात्रा है—जहाँ कृष्ण भक्त के रक्षक, गुरु और प्रेमस्वरूप हैं। इंद्र का गर्व, ब्रजवासियों…

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स्वामी विवेकानंद ध्यानमग्न मुद्रा में खड़े हैं — एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में उठी हुई उँगली जैसे वेदान्त का उपदेश दे रहे हों। पृष्ठभूमि में उगता सूर्य भारतीय समाज, शिक्षा, और आधुनिक जीवन में “प्रायोगिक वेदान्त” के पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर चमक रहा है। दृश्य में युवा, शिक्षक, और किसान जैसे पात्र भी हैं जो कर्म, सेवा, और आत्मविश्वास से प्रेरित दिखाई दे रहे हैं।

विवेकानंद और आधुनिक प्रायोगिक वेदान्त की प्रासंगिकता

स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त को ग्रंथों से निकालकर जीवन के प्रत्येक कर्म में उतारा — उन्होंने कहा, “यदि वेदान्त सत्य है, तो उसे प्रयोग में…

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“गहन अमावस्या के आकाश में भारत का मानचित्र दीपों से आलोकित है — दीयों की ज्योति से लक्ष्मी, महावीर, शिव और राम के प्रतीक उभर रहे हैं, एक ध्यानमग्न मानव आकृति दीप के भीतर बैठी आत्मज्योति का प्रतीक है — अंधकार से प्रकाश की ओर मानव चेतना की यात्रा का सांकेतिक चित्र।”

दीपावली — अंधकार के गर्भ से ज्योति का जन्म

“दीपावली अमावस्या की निस्तब्धता से जन्मी वह ज्योति है जो केवल घर नहीं, हृदय की गुफाओं को आलोकित करती है। यह बाह्य उत्सव से अधिक…

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