The Poor Man Surrounded by Questions
A man’s life is a cycle of questions—“Did you eat?”, “How’s the job?”, “Do you love me?”—and no answer ever sets him free.
A man’s life is a cycle of questions—“Did you eat?”, “How’s the job?”, “Do you love me?”—and no answer ever sets him free.
गुरु अब ज्ञान के प्रतीक नहीं, शॉर्टकट और टिप्स देने वाले बाज़ारू ब्रांड बन चुके हैं। चेला बनना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि हर चेला गुरु बनने की फिराक में है। गुरु-शिष्य परंपरा अब कोर्ट-कचहरी, दलाली, और सट्टे की दुनिया में ‘गुरु मंत्र’ से ज़्यादा ‘टिप्स मंत्र’ में बदल चुकी है।
जब देव सोते हैं तो देश की नींव भी ऊंघने लगती है। जनता, बाबू, साहब और चपरासी सब अपनी-अपनी तरह से नींद का महिमामंडन करते हैं। जागने की ज़िम्मेदारी बस सेना और कुछ अदृश्य प्रहरी निभाते हैं। इस नींद में सत्ता फलती है, और जनहित सो जाता है।
ए.आई. अब सिर्फ इंटेलिजेंस नहीं, अब वह 'आई' भी है! तकनीक की इस नई छलांग में अब प्रेम, गर्भ और पालन-पोषण भी कोडिंग से संभव है। रोबोट अब लैब में पालना झुला रहे हैं और इंसान हैरत से देख रहे हैं — यह भविष्य है या व्यंग्य! इस लेख में तकनीक और परवरिश का अद्भुत संगम दिखाई देता है — मानो ‘माँ’ अब मशीन बन गई हो।
यह रचना आज के 'व्हाट्सएप्प ज्ञानियों' पर करारा व्यंग्य है, जो ब्रह्म मुहूर्त में ही टॉयलेट से लेकर तहज़ीब तक ज्ञान बाँटने निकल पड़ते हैं। फॉरवर्ड्स, वीडियो लिंक, भक्ति संदेश और कविताओं से समाज की चेतना बढ़ाने का ज़िम्मा इन्हीं सज्जनों पर है — चाहे फ़ोन हैंग हो जाए या दिमाग।
इस व्यंग्य चित्रण में एक हाई-फाई कॉलोनी की किट्टी पार्टी में एक अधिकारी की पत्नी, बाढ़ प्रभावित गांवों की त्रासदी को पर्यटन अनुभव की तरह प्रस्तुत करती है। महिलाएं फोटो देखकर वाह-वाह करती हैं — किसी के डूबते मवेशी, किसी माँ का छत पर रोता चेहरा भी ‘सीन’ बन जाता है। यह रचना सामाजिक संवेदनहीनता और आधुनिक तमाशाई मानसिकता पर करारा कटाक्ष है।
बाढ़ सिर्फ पानी नहीं लाती, संवेदनहीनता की परतें भी उघाड़ती है। "बाढ़ पर्यटन" एक ऐसी ही कड़वी सच्चाई को उजागर करती है जहाँ किट्टी पार्टी की महिलाएं बाढ़ को तमाशा मान बैठती हैं। अफसरशाही, मीडिया, सोशल मीडिया फॉलोअर्स और सजी-धजी संवेदनहीनता — सब मिलकर बना रहे हैं एक अमानवीय हास्यप्रद दृश्य। हँसी की आड़ में छुपी करुणा की चीख यहाँ साफ सुनाई देती है।
आज की डिजिटल दुनिया में अधजल गगरी का छलकना नए ट्रेंड का प्रतीक बन गया है। सोशल मीडिया पर ज्ञान कम और आत्मविश्वास ज़्यादा दिखाई देता है। व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी, ट्विटर वॉरियर्स और इंस्टाग्राम फिलॉसफर — सभी अधूरे ज्ञान से ज़ोरदार शोर करते हैं, जबकि असल ज्ञानी मौन रहते हैं।
हर मोहल्ले में एक ‘भविष्यवक्ता अंकल’ होते हैं—जो हर शुभ कार्य में अमंगल ढूँढने को व्याकुल रहते हैं। उनकी ज़ुबान पर एक ही ब्रह्मवाक्य रहता है—“लिख के ले लो!” ये आत्ममुग्ध, आशंकित और नकारात्मकता के सर्टिफाइड वितरक होते हैं, जो खुशखबरी को अपशकुन मानते हैं।
श्रीकृष्ण अर्जुन को कलियुग की विभीषिका 'रिश्वत' के स्वरूप से अवगत करा रहे हैं। पार्श्व में छिपा राक्षसी रूप और धनराशि की पोटलियाँ इस भ्रष्टाचार के मायावी विस्तार का प्रतीक हैं। यह संवाद धर्म, विवेक और युगबोध का अद्भुत मिश्रण है।