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काव्य संग्रह समीक्षा-तुम मेरे अज़ीज़ हो-डॉ मुकेश असीमित द्वारा

पंकज त्रिवेदी के काव्य संग्रह "तुम मेरे अज़ीज़ हो" की समीक्षा, जिसमें आत्मीय प्रेम, विरह, और स्मृतियों का गहन चित्रण किया गया है।

काव्य संग्रह समीक्षा

तुम मेरे अज़ीज़ हो

(लेखक: पंकज त्रिवेदी)

प्रकाशक: विप्रवाणी प्रकाशन, सूरत, गुजरात

संस्करण: 2024

समीक्षक: डॉ. मुकेश असीमित

प्रेम की परतों में भीगता हुआ एक आत्मीय संग्रह

जब मैंने पंकज त्रिवेदी जी का काव्य संग्रह “तुम मेरे अज़ीज़ हो” पढ़ना शुरू किया, तो यह मात्र प्रेम की कविताओं का संग्रह नहीं लगा – यह एक यात्रा बन गई। आत्मीयता, विरह, स्मृति और मौन संवादों की ऐसी परतें खुलीं जिन्हें केवल महसूस किया जा सकता है, समझाया नहीं जा सकता।

145 कविताओं का यह संग्रह प्रथम दृष्टि में सरल लग सकता है, परंतु भीतर उतरते ही यह जटिल अनुभवों की बुनावट जैसा प्रतीत होता है। पंकज त्रिवेदी ने प्रेम को दर्शन, पीड़ा, स्मृति और आत्मस्वीकृति के इतने भिन्न कोणों से देखा है कि हर कविता मानो किसी पुराने खत की तरह खुलती है – जिसमें नमी भी है, स्याही भी और अधूरी कहानियाँ भी।

 ज्ञान से परे अनुभव का प्रेम

यह संग्रह बताता है कि प्रेम केवल भाव नहीं, बल्कि बोध भी है – जो अनुभूति के मार्ग से होकर गुजरता है, न कि तर्क या जानकारी से। संग्रह की कई कविताएँ जैसे – “पुनः वही”, “तुम्हारी याद”, “कुछ नहीं बदला है”, इस बात की पुष्टि करती हैं कि प्रेम में बार-बार लौटना भी एक नवाचार होता है।

त्रिवेदी जी की पंक्तियाँ जैसे –

“तुम्हारे जाने के बाद भी / सब कुछ वहीं है / सिवाय उस ‘तुम’ के जो सब कुछ था”

– एक सन्नाटे में डूबे प्रेमी की अंतरात्मा से निकली पुकार जैसी प्रतीत होती हैं।

 स्मृति की गंध में भी प्रेम

प्रेम को केवल साथ होने में नहीं, उसकी अनुपस्थिति में भी देखा गया है – यह संग्रह इसी द्वंद्व को सहेजता है। कविताएं किसी बीते मौसम की तरह लौटती हैं – एक नम हवाओं की तरह जो पुरानी पीड़ा को फिर से जगा देती हैं, पर यह पीड़ा मीठी होती है।

“तुम्हारी याद में / तुमसे ज़्यादा तुम याद आते हो”

– जैसी पंक्तियाँ, स्मृति और उपस्थिति के बीच की महीन रेखा को रेखांकित करती हैं।

 सहज भाषा, गहन अनुभूति

भाषा अत्यंत सरल है – रोज़मर्रा की, बिना किसी बोझिलता के। पर उसके भीतर जो भावनाएँ हैं, वे असाधारण हैं। यह कविता संग्रह ‘शब्दों’ से अधिक ‘मौन’ से बोलता है।

 सांस्कृतिक चेतना और समकालीन जीवन

कई रचनाओं में ‘राधा’, ‘मीरा’, ‘पत्नी’, ‘प्रियतम’ जैसे भारतीय प्रतीकों के माध्यम से प्रेम को लोक संस्कृति से जोड़ा गया है। वहीं दूसरी ओर संग्रह में समकालीन संवेदनाओं, जैसे एकाकीपन, व्यस्त जीवन, टूटते संबंधों को भी स्थान मिला है। यह समन्वय संग्रह की विविधता और व्यापकता को दर्शाता है।

 निष्कर्ष: एक चुप संवाद, जो भीतर तक गूंजता है

“तुम मेरे अज़ीज़ हो” केवल पढ़ने के लिए नहीं, भीतर तक महसूस करने के लिए लिखा गया संग्रह है। यह उन पाठकों के लिए है जो प्रेम को केवल संबंधों में नहीं, स्मृतियों में भी जीते हैं। यह संग्रह कहता है कि प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति शायद ‘कह देना’ नहीं, बल्कि ‘न कह पाने’ में होती है।

पंकज त्रिवेदी को इस आत्मीय, संवेदनशील और गहराई से भरे संग्रह के लिए हार्दिक बधाई और भविष्य की रचनात्मक यात्राओं के लिए शुभकामनाएं।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)

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2 Comments

  1. Pankaj Trivedi

    प्रिय डॉ मुकेश जी,
    आपने अभ्यासपूर्ण एवं भावसभर समीक्षा लिखकर मुझे उपकृत किया है। आपका धन्यवाद।
    पंकज त्रिवेदी

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