मोगली आज़म (लघु नाटिका)
डा राम कुमार जोशी
(बादशाह अकबर के जीवन पर आधारित फिल्म मुगल-ए-आजम के आधुनिकीकरण के रुप में लघु नाटिका प्रस्तुत है।)
प्रथम सीन
मोगली सल्तनत का राजसी ठाठ के साथ दरबार सजा हुआ है। बादशाह सलामत के दोनों ओर दो कच्ची कली सी कन्याएं मोतियों के झालर वाले न्यून वस्त्रों से सजी, चंवर डुला रही है। एक तरफ ठेठ सोलहवीं सदी के दरबारी बैठे हैं तो दूसरी तरफ माडर्न इक्कीसवीं शताब्दी के दरबारी जींस शर्ट और कुछ तो शाॅर्ट पहने गद्दीदार कुर्सियों पर बैठे, हंसी ठिठोली कर रहे हैं । इनमें कुछ तंग वस्त्र धारण किए महिलाएं भी है जो बार-बार दरबार के बाहरी गेट की ओर देखती हुई लंबी लंबी सांसे भरने का उपक्रम कर ऐसे शो कर रही है कि दुनिया का सारा इंतज़ार इन्हीं के हिस्से पड़ा हो।
सोलहवीं सदी के दरबारियों को कुछ दासियें लंबी लंबी सुराहियों से दारु के प्याले भर के पिला रही है ,कई तो उनकी गोद में बैठ के जेब से सोने-चांदी के सिक्के भी पार कर रही थी। अमीर उमराव लोग जानते हुए भी वे दासियों को मना नही कर रहे थे। ऐसा स्पर्शी आनंद फिर कभी मिले इसकी गारंटी कहीं नही लिखीं होती है।
उधर दरबार के गेट के पास गवैयों का झुंड “दारू दांखा रो” गा रहा है पर भीतर से जानता था कि दारू जो सर्व की जा रही है वो ढोरों के गुड़ से बनाई देशी ठर्रे से भी ज्यादा बदबूदार है पर मांगसी के आदेशों का पालन करना ही गवैयों के जीवित रहने का प्रमाण है।
दूसरी तरफ दरबार के बायीं तरफ माॅडर्न शहजादे सलीम का इंतजार करती आधुनिक टीम को बार बालाएं बीयर व कोल्ड ड्रिंक सर्व किये जा रही है। एक तो गुनगुना रही थी
“दो बोतल वोदका काम मेरा रोज का”।
बादशाह सलामत ने गले से जोर खंखारा करते हुए मंत्री रुपी साले मांगसी से पूछा – आज हमारे दरबार में खेशु नजर नही आ रहा है! क्या बात है? आजकल वह शाही कामकाज में कोई दिलचस्पी नही ले रहा है।
मांगसी (खड़े होकर) – हुजूर! सल्लू शहजादा साहब आजकल के नौजवान है। जबतक आप शाहंशाह की गद्दी को संभाल रहे है तब तक उन्हें मौज करने दे, आपके बाद तो शहजादे साहब को ही सब कुछ करना है। हमारे यहां कहते है जो जितना फिरेगा उतना ही चरेगा। आपकी जवानी में आपके अब्बा हुजूर भी मुझसे यही शिकायत करते थे। कई बार मुझे आपको लड़खड़ाते हुए नशे के हालात में नाचघर से लाना पड़ा था। याद है ना!
(धीरे से) आपने भी अपनी जवानी में इसी तरह के कई तजुर्बे हासिल कर लिए थे।
बादशाह – वो बीती बातें थीं, ज़माना बहुत तेजी से बदल रहा है। वो पुराना खान-पान नही रहा। आजकल खाने में पिज्जा और हॉट डॉग्स हो गये।
मांगसी – हुजूर! क्या कहा, पीने के लिए पीज़ा, ये कौनसी दारू है! क्या अब लोग कुत्तों को गर्म करके खाने लग गये? कैसा जमाना आया है। तौबा-तौबा!
बादशाह – मूरख कहीं के, पीज़ा नही, पिज्जा है,इसको खाते हैं। पीते नही। हमारा खेशु आजकल यही खाता है। हम तो उसे ठीक तरह से चबा भी नही सकते।
मोटी रोटियों से ऐसे ही कुछ बने को शायद हॉट डॉग कहते हैं। (कुछ ठहर कर) हमारे जमाने की बातें ही कुछ और थी।
खाने-पीने से लेकर सब कुछ बदल रहा है। ये इन्टरनेट बर्बाद कर छोड़ेगा। ज्यादा पूछने की जुर्रत नही कि ये आन्तरिक जाली क्या होती है। इसी से तो आजकल रैयत अपना हक़ मांगने लग गयी है। अब जूते के राज का जमाना नहीं रहा। ये सब हमने अखबार से सुना था ।
मांगसी- हुजूर! ये अखबार क्या होते है?
बादशाह – अरे बेवकूफ, तुम हिन्दुओं में जैसे सोमवार, मंगलवार, बुधवार होते हैं वैसे ही अख़बार भी होते है।
मांगसी ! कुछ तो जनरल नाॅलेज रखो।
(फिर हंसते हुए) तुमने भी हमारे साथ बहुत मज़े लिए है। लो उधर देखो, खेशु आ गया। सुबह मैंने उसके जिम जाने से पहले दरबार में आने के लिए कहा था।
मांगसी – हुजूर! नाचीज़ को “जिन” की तो खबर है पर जिम क्या होता है ये क्या जिन्नों से भी ज्यादा……?
बादशाह – खामोश! तुम हमेशा ज़ाहिल और गंवार ही रहोगे। (खुशी जाहिर करते हुए, कुछ रुककर) मुझे ख्याल था कि खेशु हमारी बात टालेगा नही, देर हो सकती है पर अंधेर नही।
(शहजादा सलीम एक माडर्न शहजादा है जो पेंट-कोट, टाइ-हैट पहने है।) दरबार में आने के बाद, हाथ में स्टिक को घुमाते हुए शहंशाह को कोर्निश करने की बजाय हैलो डैड कह, पीछे मुड़कर अपने महिला दोस्तों से हाथ मिलाते हुए उनको गले लगाता है। कुछेक से हल्का चुम्बन भी करता है।
(चारों ओर से फ्लाइंगकिस की बौछार सी होती है)
शहंशाह – खेशुऽऽ। तुम आ गये। हमें मालूम था कि तुम शाही दरबार में आज जरूर आओगे।
हमारे साथ तुम्हारे कुछेक दोस्त भी इंतजार कर रहे हैं।
खेशु – अब्बा हुजूर! हम आज आपसे खास गुफ्तगू करने के लिए हाजिर हुए है। अब हम बालिग भी है और हर तरह का हक़ भी रखते हैं। हमारा संविधान भी यही कहता है।
(चेहरे पर शर्म के भाव प्रदर्शित करते हुए) अब्बा हुजूर! हम शादी करना चाहते है।
बादशाह – खेशु, तुमने हमारे मुंह की बात छीन ली। तुम्हारे मामू से अभी यहीं गुफ्तगू कर रहे थे। जवानी में हमारे भी क़दम लड़खड़ाये थे तो हमारे अब्बा हुजूर ने हमें ठिकाने लगाने के लिए नाबालगी में हमारी पहली शादी करा दी थी। शादी के बाद भले भले होश में आ जाते है। जैसे तेरा मामा। (ठहाका लगाते हुए)
अपने मामू मांगसी को बता दो वह खुशनसीब खातून कौन है जो होने वाले शहंशाह के मुल्क की मल्लिका बनेगी। (ख़ुशी से उछलते हुए)- दरबार में दारू की नदियां बहा दी जाय।
खेशु (इठला कर मामू से मुखातिब हो, जोर से बोलते हुए) – मेरे हुस्न की मल्लिका घासमंडी की तरानो बाई है, क्या शानदार हरियाणवी से लेकर बालरुम डांस करती है भली भली डांसर इसके सामने पानी भरती है। उसकी कमर भले भरी हुई है पर हमारे लिए अपना दिल खाली रखें हुए है।
मैंने उसे वचन दिया है एक दिन उसे मल्लिकाएं शहंशाह बनायेंगे।
बादशाह (चिल्लाते हुए) – नही, यह नहीं हो सकता। चंद सोने के सिक्कों को देख ठुमके लगाने वाली लोंडियाएं इस तखतेताउस पर नहीं बैठ सकतीं। एक अदना लोंडियां की खातिर तुमने शहंशाह के जंगी अरमानों पर लात लगा दी है।
तब तक कुर्सियों पर बैठे माडर्न लोग खड़े होकर बादशाह हाय हाय के नारे लगाने लगते है। हमारा नेता कैसा हो सल्लू बादशाह जैसा हो। तब तक एक मोटी लड़की जो शॉर्ट और बनियान पहने, अपने हाथ से बीयर के गिलास को सिर पर रखकर दरबार के बीच में आ ठुमके लगाने लगती है।
“प्यार किया तो डरना क्या” गाने की जगह अंग्रेजी में आइ हेट एण्ड लव माई गाय्ज गाते हुए हरियाणवी स्टाइल में उछल कूद करती हुई ऊंचे सिंहासन पर बैठे ठेठ बादशाह के पास पहुंच जाती है। फिर अपनी बीयर भरी गिलास को बादशाह के होंठों से लगा देती है। बादशाह तो एकबारगी तो चौंकते है पर उसकी पिलाने की स्टाइल से खुश हो, गले का हार उतार उसे पहना देते है और कहते है वाह क्या स्वाद है! ऐसी दारू पहली बार चखी है।
इधर बादशाह सलामत द्वारा नर्तकी को दिये हार को मांगसी छीन लेता है तो माडर्न मंडली का झबरे बालों वाला एक छोरा रामपुरिया चाकू को हवा में लहराते हुए मांगसी से हार झपट के नर्तकी को वापस लौटा देने की बजाय अपनी जेब के हवाले करता है और उसे फ्लाइंग किस देता है।
(हंगामा होते देख दरबार को तखलिया कर दिया जाता है और बादशाह सलामत लोंडियों के कमर में हाथ डाल, सहारा लेते हुए हरम में भाग जाता है।)
दूसरा सीन
(उधर शाहजादा सल्लू ने शहंशाह की पोस्टल सेवाओं का बहिष्कार करते हुए विदेशी कूरियर द्वारा चिठ्ठी भेजकर बादशाह सलामत के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी है। )
इस बार बादशाह ने दरबार में सभी को वीर वेष में आने का आह्वान किया तो आधे से भी कम संख्या में दरबारी हुजूर हुजूर कहते हाजिर हुए। लगभग सभी सलवार नुमा ढीला पजामा- कुर्ता पहने हाजिर हुए है।
मांगसी समेत कई दरबारी हाथ-पांवों में प्लास्टर चढ़ायें हुए हैं। रिश्वतखोर हकीमों की मेडिकल रिपोर्टों के अनुसार सभी गुसलखाने से लेकर सड़कों पर गिर गये थे सो हड्डियां टूट गई और प्लास्टर चढ़ाना पड़ा। तलवार चलाने तक काबिल नहीं रहे। एक अजूबा और सुना गया कि सिपहसालार को घोड़े के बजाय लद्दू घोड़ी ने लात मारी थी।
बादशाह ने दरबार में बा बुलंद घोषणा की कि शहजादे सल्लू ने विद्रोह कर दिया है उसका जवाब देने के लिए अपने खास ऊंटों और घोड़ों की सेना को तैयार रखा जावे मैं अपने खास हाथी गजराज पर सबसे पीछे रहुंगा। ताकि सेना पीछे न हटे और घरों की ओर भाग न जावे। जंग होगी।
सेनापति का अर्दली – हुजूर! माफ़ करें, अपनी खास ऊंटों व घोड़ों की सेना तो पिछले उन्नीस सौ पैंसठ व इकत्तर की दो लड़ाईयों में खत्म हो चुकी हैं। रख रखाव के बिना तोप और तलवारें जंग खा चुकी है। छावनी में रखा बारूद तो पिछली बाढ़ की जद में आने से राबडा़ हो गया सो सुखाने के लिए बाहर बाड़ों में रखा था। जैसे ही पब्लिक को पता लगा तो चौकीदारों के देखते देखते लोग तसले भर-भर के ले गये। हुजूर माफ़ करें, शहजादे साहब ने बंदूकें बेच, बीयर बनाने की फैक्ट्री लगा दी है। आर्डीनेंस फैक्ट्रीयों में सस्ती बाल्टियां और चमचे- करछुल बन रहे है। (मुस्कराते हुए) इसके लिए बाजार में बेइन्तहा आपकी तारीफ हो रही हैं हुजूर।
बादशाह – लड़ाइयां तो हमारे अब्बा हुजूर ने ही लड़ी थी। वे लड़ाका थे। हम तो हमेशा शांतिदूत की तरह ही रहे है।
फिर भी सेना के लिए हमने हमेशा बजट को भरपूर खर्च किया गया है। हम कभी सुरक्षा के मामले में कंजूस नहीं रहे। हमने हथियारों की खरीद फरोख्त भी ख़ूब की है। ये सब जांच के काबिल है। हमारे लौटते ही जिम्मेदार लोग सज़ा के लिए तैयार रहें।
कोई बात नही, शहर के सारे गधे पकड़ कर लाओ। हम गधों पर बैठ जंग लड़ेंगे।
वजीरे ढोर डांगर – हुजूर! सारे गधे तो पाकिस्तान भाग गए है। हमारे यहां से भागे हुए गधे आजकल पाकिस्तान की इकॉनोमी में बड़ा योगदान दे रहे है।
यह सुनते ही बादशाह सलामत चक्कर खाकर वही गिर गये।
फ़ौज में बगावत हो गयी और सभी ने उगते सितारे को सलाम किया। सल्लू शहजादे ने अपने बाप को क़ैद कर दिया। मांगसी ने बादशाह की बुराई के साथ सल्लू के गीत गाने शुरू कर दिए।
सल्लू जी हो सल्लू जी
जग रो प्यारों सल्लू जी, के पोस्टर स्कूल कॉलेज आदि सभी जगहों पर लगा दिये गये।
सल्लू शहजादे ने वादा निभाते हुए तरानों बाई को मुल्क की मल्लिका बनायी। दरबार के बीचोंबीच डांस बालाओं केलिए स्टेज़ बना दिया जिसपर विदेशी नृत्य ही अनुमत था।
सल्तनत में मोटी कमर वाली लड़कियों की डिमांड बढ़ गयी। पतली लड़कियों के लिए पानी पूरी व पिज्जा हट की मुफ्त सेवाएं प्रारंभ की गई। दारु का सेवन ऑफिस टाइम में कर सकने का फरमान जारी होगया ताकि इकॉनमी में तरलता बढ़े। सारे मुल्क में कला संस्कृति विभाग के साथ आबकारी के कार्यालय घर घर में खुल गये। ‘दारु दांखा रो’ के बजाय “थोड़ी सी जो पी ली है” के गाने को सम्मान मिलने लग गया था।
नगर में तलवारों की खनक के बजाय घूंघरुओं की रुणझुण बढ़ गई। आजकल सब लोग नृत्य और गीत के माध्यम से आपसी वार्ता करते हैं। फ़ौज से लेकर स्कूलों तक में डांस डांस के नारे लगाना कम्पल्सरी हो गया है।

डा राम कुमार जोशी
ललित कुंज, जोशी प्रोल
सरदार पटेल मार्ग, बाड़मेर
रचना अप्रकाशित व मौलिक है।
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