नेशनल बुक रीड डे : किताबों के साथ एक दिन
आज का समय स्क्रीन का समय है—मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट और टीवी ने हमारे जीवन पर इतना कब्ज़ा जमा लिया है कि किताबें कहीं कोनों में रखी-रखी सी रह गई हैं। शायद इसी दूरी को पाटने के लिए किताबों से जुड़े अलग-अलग दिन तय किए गए। 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है, जो वर्ल्ड बुक कॉपीराइट डे भी है। 9 अगस्त को आता है राष्ट्रीय पुस्तक प्रेमी दिवस, जो पुस्तकों के प्रति हमारे लगाव को उत्सव का रूप देता है।
राष्ट्रीय पुस्तक प्रेमी दिवस
इस दिन किताब-प्रेमी अपने पसंदीदा कोने में बैठकर कोई उपन्यास, संस्मरण, जीवनी या विज्ञान की किताब पढ़ते हैं। यह किताबों की खुशबू को महसूस करने और उनकी संगति का आनंद लेने का दिन है। किताब प्रेमियों के लिए यह दिन मानो किसी जश्न से कम नहीं—क्योंकि किताबों का स्वाद वही जानता है जिसने रातें उनके साथ गुजारी हों।
फिर क्यों ज़रूरी हुआ “पढ़ो दिवस”?
सवाल उठता है कि जब पुस्तक प्रेमी दिवस मौजूद है, तो राष्ट्रीय पुस्तक पठन दिवस (National Read a Book Day) की आवश्यकता क्यों पड़ी? जवाब सरल है। प्रेम एक भावना है, लेकिन पढ़ना एक अभ्यास है।
9 अगस्त को हमने किताबों के प्रति अपने प्रेम का इज़हार किया। लेकिन बुक रीड डे हमें आमंत्रित करता है कि हम केवल भावनाओं तक सीमित न रहें—बल्कि सचमुच किताब उठाएँ, उसका पहला पन्ना पलटें और पूरी तन्मयता से उसमें डूब जाएँ।
आज का दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक बहाना है—किताबों की ओर लौटने का, किताबों के साथ बैठने का, और किताबों से दोस्ती निभाने का। नेशनल बुक रीड डे हमें यह याद दिलाता है कि चाहे जीवन कितना भी व्यस्त क्यों न हो, एक अच्छी किताब के लिए समय निकालना आत्मा को सुकून देने जैसा है।
पढ़ना क्यों ज़रूरी है?
किताब पढ़ना केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य की दवा भी है।
- यह तनाव कम करता है।
- याददाश्त और एकाग्रता बढ़ाता है।
- वृद्धावस्था में संज्ञानात्मक क्षमताओं की गिरावट को धीमा करता है।
- और सबसे बढ़कर, यह हमें कल्पनाओं की ऐसी उड़ान देता है, जिसकी टिकट हमें बहुत सस्ते में मिल जाती है।
एक किताब आपको समय की मशीन पर बैठा देती है—कभी 14वीं सदी की गलियों में पहुँचा देती है, तो कभी भविष्य के किसी अनजाने ग्रह पर।
पढ़ने की साझेदारी
किताब पढ़ना केवल व्यक्तिगत आनंद तक सीमित न रहे। अपने बच्चों, बुजुर्गों या दोस्तों को ज़ोर से पढ़कर सुनाएँ। कभी अपने पालतू कुत्ते-बिल्ली या पौधों को भी शब्दों का संगीत सुनाएँ। पढ़ने का असली आनंद साझा करने में है।
किताबें: थकी आत्मा का विश्राम स्थल
कुछ लोगों के लिए किताब पढ़ना चाय की प्याली संग बरामदे में बैठने जैसा सुख है। वहीं, कुछ के लिए यह होमवर्क का बोझ। पर सच यह है कि किताबें कभी थकाती नहीं, उलटे थकान चुराती हैं। विज्ञान भी कहता है कि पढ़ना तनाव कम करता है, एकाग्रता और स्मृति को बेहतर बनाता है। आप चाहे उपन्यास पढ़ें, संस्मरण, कविता या विज्ञान—हर किताब आपके मन का कोई न कोई कोना रोशन कर देती है।
“अच्छी किताब वही है, जिसके आख़िरी पन्ने पर पहुँचकर लगे कि एक दोस्त खो गया।”
यह कथन किताबों की आत्मीयता को बखूबी बयान करता है। किताबें दोस्त भी हैं, शिक्षक भी और कभी-कभी आईना भी—जो हमारी कमजोरियों और ताकतों को उजागर कर देती हैं।
किताब और सिनेमा का रिश्ता
आज हम फिल्मों और वेब सीरीज़ में कहानियों को देखते हैं। पर ज़रा ठहरकर सोचिए—कितनी ही मशहूर फिल्में किताबों से जन्मी हैं। टॉम सॉयर से लेकर हैरी पॉटर तक, किताब का विस्तार और गहराई फिल्म के दो-ढाई घंटे में कहाँ समा सकता है? किताब आपको पात्रों की सोच, उनके दर्द, उनकी यात्रा का वह हिस्सा दिखाती है, जिसे पर्दा अक्सर छू भी नहीं पाता।
किताबें: दृष्टिकोण बदलने का माध्यम
किताबें केवल कहानी सुनाती नहीं, बल्कि सोच बदल देती हैं। कई बार एक किताब जीवन का रास्ता मोड़ देती है। तुलसीदास की रामचरितमानस, गांधी की हिंद स्वराज, प्रेमचंद के उपन्यास, या फिर समकालीन लेखकों के व्यंग्य—सब हमें समाज और जीवन को देखने की नई दृष्टि देते हैं।
किताबों का इतिहास और नेशनल रीड अ बुक डे
यह दिवस अपेक्षाकृत नया है। माना जाता है कि 2000 के दशक के अंत में किसी पुस्तकालयाध्यक्ष ने इसकी शुरुआत की, ताकि बच्चों और युवाओं को फिर से पढ़ने की आदत डाली जा सके। पर किताबों के इतिहास में इससे कहीं पुराने पड़ाव हैं।
- 1455 में गुटेनबर्ग बाइबिल छपी और पहली बार किताबें जनसाधारण की पहुँच में आईं।
- 1473 में विलियम कैक्सटन ने अंग्रेज़ी की पहली मुद्रित किताब The Recuyell of the Historyes of Troye प्रकाशित की।
- और टाइपराइटर पर लिखी जाने वाली पहली किताब थी मार्क ट्वेन की टॉम सॉयर।
इन सब मील-पत्थरों ने पढ़ने की संस्कृति को बदल दिया।
किताबों का सफ़र
किताबों का इतिहास भी उतना ही रोचक है जितना उनकी कहानियाँ।
- शुरुआती दौर में किताबों के पन्ने वेल्लम यानी बछड़े की खाल से बनाए जाते थे।
- उनके कवर लकड़ी के होते थे और ऊपर चमड़ा चढ़ाया जाता था।
- उन्हें क्लैप्स या पट्टियों से बंद रखा जाता था ताकि नमी और धूल से सुरक्षित रहें।
- मध्य युग में जब सार्वजनिक पुस्तकालय अस्तित्व में आए, तो चोरी रोकने के लिए किताबों को शेल्फ से जंजीरों से बाँध दिया जाता था।
आज सोचिए—वो किताबें जो कभी ताले-चाबी में बंद रखी जाती थीं, वही अब ई-बुक्स के रूप में एक क्लिक पर उपलब्ध हैं।
जश्न मनाने का तरीका
आज के दिन आप अपने घर की अलमारी से कोई पुरानी किताब निकाल सकते हैं, जिसे अधूरा छोड़ दिया था। या फिर किसी पुस्तकालय की ओर रुख कीजिए। बच्चों को किताब उपहार में दीजिए। दोस्तों के साथ बुक-रीडिंग ग्रुप बनाईए। या फिर बस अपने कोने में बैठकर उस किताब को पढ़िए, जो लंबे समय से आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
निष्कर्ष
तो आज का नेशनल बुक रीड डे केवल एक और “डे” नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि किताबों के पन्नों में जीवन का असली संगीत छिपा है। किताबें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं, कल्पनाओं के पंख देती हैं और सोच को नई दिशा देती हैं।
नेशनल बुक रीड डे केवल पन्नों को पलटने की रस्म नहीं है, यह मन और आत्मा को समृद्ध करने का पर्व है। किताबें हमें इतिहास से जोड़ती हैं, भविष्य की कल्पना कराती हैं और वर्तमान को समझने की ताक़त देती हैं। इस शोरगुल भरी दुनिया में किताबें वह शांति हैं, जो हमें खुद से मिलाती हैं।
तो आइए, आज एक किताब उठाइए। हो सकता है, उसके आख़िरी पन्ने तक पहुँचते-पहुँचते आप सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि खुद का नया रूप खोज लें।
और हाँ इस लेख को पढ़कर भी आप आज का बुक रीड डे मना सकते हैं—क्योंकि किताब पढ़ना केवल आंखों से शब्द देखना नहीं, बल्कि आत्मा से अनुभव करना है।

✍ लेखक, 📷 फ़ोटोग्राफ़र, 🩺 चिकित्सक
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