Login    |    Register
Menu Close
हाथ में अपनी पुस्तक गिरने में क्या हर्ज़ है पकड़े हुए डॉ. मुकेश असीमित की मुस्कुराती हुई तस्वीर। पुस्तक का आवरण चित्रात्मक शैली में व्यंग्य भाव के साथ सजी है जिसमें एक राजनेता सीढ़ियों से गिरते हुए दिखाया गया है।

व्यंग्य की दुनिया में एक जागरूक आमद -पुस्तक समीक्षा -डॉ अतुल चतुर्वेदी

‘गिरने में क्या हर्ज़ है’ एक बहुआयामी व्यंग्य संग्रह है जिसमें डॉ. मुकेश असीमित ने समाज, राजनीति, शिक्षा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों की विसंगतियों को…

Spread the love
A satirical cartoon showing a loud influencer with an overflowing half pot on social media, surrounded by amused and clueless audiences, while wise people stay silent in the background with full pots.

अधगल गगरी छलकत जाए-हास्य-व्यंग्य

आज की डिजिटल दुनिया में अधजल गगरी का छलकना नए ट्रेंड का प्रतीक बन गया है। सोशल मीडिया पर ज्ञान कम और आत्मविश्वास ज़्यादा दिखाई…

Spread the love
A cartoon of two middle-aged men at a table—one cheerfully pointing upward while holding a paper, the other looking bored and annoyed with his head on his hand.

लिख के ले लो यार ..हास्य व्यंग्य रचना

हर मोहल्ले में एक ‘भविष्यवक्ता अंकल’ होते हैं—जो हर शुभ कार्य में अमंगल ढूँढने को व्याकुल रहते हैं। उनकी ज़ुबान पर एक ही ब्रह्मवाक्य रहता…

Spread the love
श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद दर्शाता पारंपरिक चित्र, जिसमें पार्श्व में भयावह रिश्वत रूपी राक्षस और धन की गठरियाँ दिखाई गई हैं।

रिश्वतोपाख्यान — श्रीकृष्णार्जुन संवाद

श्रीकृष्ण अर्जुन को कलियुग की विभीषिका ‘रिश्वत’ के स्वरूप से अवगत करा रहे हैं। पार्श्व में छिपा राक्षसी रूप और धनराशि की पोटलियाँ इस भ्रष्टाचार…

Spread the love
हिंदी भाषा के विकास की यात्रा दर्शाने वाला एक चित्र, जिसमें संस्कृत से लेकर डिजिटल हिंदी तक का क्रमबद्ध ग्राफिकल प्रस्तुतीकरण हो। चित्र में देवनागरी लिपि, स्वतंत्रता संग्राम, संविधान सभा, कंप्यूटर-डिजिटल यंत्र और विश्व मानचित्र पर हिंदी की उपस्थिति के प्रतीक शामिल हों।

भाषा एवं राजभाषा के रूप में हिंदी की विकास यात्रा

यह आलेख हिंदी भाषा की ऐतिहासिक जड़ों, संवैधानिक स्थिति, डिजिटल युग में इसकी भूमिका और वैश्विक पहचान की गहराई से पड़ताल करता है। हिंदी के…

Spread the love
एक प्राइवेट अस्पताल को लालफीताशाही, नियम-कानून, टैक्स और सामाजिक अपेक्षाओं के बोझ से दबते हुए दर्शाया गया है, जबकि जनता निशुल्क सेवा की मांग करती नजर आ रही है।

प्राइवेट अस्पतालों का एनकाउंटर

प्राइवेट अस्पतालों पर लूट के आरोप लगाने से पहले समाज को याद रखना चाहिए कि हमने ही इन्हें ‘उपभोक्ता वस्तु’ बना दिया। जिस प्रोफेशन पर…

Spread the love