Login    |    Register
Menu Close

मेरे बाप की सड़क है -एक व्यंग रचना

मेरे अस्पताल में एक न्यूरोलॉजिस्ट के मासिक परामर्श के लिए अनुबंध करने हेतु दूरभाष पर बातचीत हो रही थी था। फोन पर बातचीत के दौरान, उन्होंने बताया कि हमारा शहर कितना सुंदर है, सब कुछ कितना सही है, फिर कुछ झिझकते हुए बोला -लेकिन वहां की सड़कें इतनी खराब क्यों हैं। सड़कों पर चलने वाले लोगों का भी यही हाल था। लोग थोड़े अडीयाल स्वभाव के है , उनका दुःखद अनुभव दस साल पुराना था और वह आज भी उसी धारणा को लेकर चल रहे थे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया कि सड़कें अब बहुत सुधर गई हैं, हाईवे जैसी चिकनी हो गई हैं। लोग अच्छे है बस उनकी भाषा में गालियाँ हमारे पड़ोसी राज्यों की संस्कृति के मिश्रण की देंन है ,वैसे उन गालियों को वैसे ही नजरअंदाज करे जैसे हम किसी सॉफ्टवेर को खरीदते वक्त उसके टर्म्स एंड कंडीशन को करते है | लेकिन दिल ही दिल में सोचता रहा, क्या सड़कों के साथ-साथ लोग भी बदल गए हैं? शायद नहीं।हालिया एक यात्रा का वृतांत समिति में आता है , मैं जयपुर से गंगापुर आ रहा था। बारिश का मौसम था, शाम होने लगी थी। सड़क पर गायों और भैंसों का झुंड पूरी सड़क को रोक कर बैठा हुआ था। अपने सामुदायिक भाईचारे का परिचय देते हुए जानवर एक दुसरे के ऊपर अपने सर को रखकर इस प्रकार से बैठे थे की बीच में से एक परिंदा भी पर नहीं मार सके |बारिश में जानवर सूखी जगह पर ही बैठ सकते हैं और इनके लिए सड़क से बढ़िया आरामगाह कोई और नहीं होता। ये तो भला हो इनकी आँखों के केराटिन का, जो हेडलाइट की रोशनी में चमककर एक इंडिकेटर की तरह वाहन के ड्राईवर को उनकी उपस्थिति का आभास करा देती है । वरना कोई फॉस्फोरस लगा लाइट इंडिकेटर तो कभी पंचायत या नगर पालिका ने सोचा नहीं लगाने का।खैर ड्राईवर ने अपने गाडी के हॉर्न को बजाकर ये सुनिश्चित किया की हॉर्न सही कम कर रहा है और जानवरों के झुण्ड में एक गया ने अपना सर उठाकर इस का अनुमोदन भी कर दिया की हां हॉर्न की आवाज सही है लेकिन वहा से हटने का तो कोई प्रश्न ही नहीं था. ड्राईवर ने गाडी सड़क से उतारकर किसी तरह पार की और एक रहत की सांस ली.ड्राईवर मेरे चेहरे पर परेशानी की सलवटें देख कर माहोल को थोडा खुशनुमा बनाने के लिए कुछ संगीत सा चला दिया था खुद गाने के बोल पे लगभग डोलते हुए स्टारिंग को लापरवाही से घुमाते हुए उसे भी संगीत की धुन में लयबद्ध कर रहा था अभी अपनी धुन में मस्त था ही की एक गाडी तेजी से लगभग बोनुट से रगडती हुई निकली,ड्राईवर मन में कुछ बडबडाया और अपी गाडी की स्पीड तेज कर दी पास में जाकर दोनों ही अपनी गालियों के अलंकरान से सुसज्जित मात्रभाषा में एक दूसर एको ललकारने लगे,अपनी अपनी गाडियों के हॉर्न को बजाकर एक कम्पटीशन सा होने लगा की किसकी गाडी का हॉर्न ज्यादा अछे से काम कर रहा है इस स्थिति से एक दम भोचक्का सा में किसी तरह अपनी कोहनी को ड्राईवर की साइड में चुभाकर उसे शांत रहने और इस संकट से निकल जाने की विनती करने लगा. आगे बिलकुल बीच सड़क में अपनी धुन में भेड़ों का झुंड जा रहा था, एक अधेड़ उम्र का पगड़ी धारी लम्बी मूंछो वाला आदमी जिसकी मूंछे साइड में करीने से जलेबी की तरह लिपटी हुई शोभाय्मान हो रही थी जो कि भेषभूषा से जोधपुर साइड के पहनावे सा लग रहा था, लाठी बगल में दबाए गड़रिया जो अपनी लाठी से सड़क की सीमा का निर्धारण कर चूका था और भेड़ें उसी सीमा में बंधी सड़क को अपने विशाल विस्तार से अनाधिकृत करती हुई साथ ही अपने पद चिन्हों के निशान सड़क पर विसर्जित किये मल मूत्र से छोड़े भी जा रही थी , , गडरिये ये बहुत दूर से अपने जानवरों को लेकर आते हैं। खास एक खेत में उन जानवरों को चराने के लिए खेत मालिक के साथ अनुबंध करते हैं। घास चरने के बदले मालिक के खेत में इन जानवरों की लीद गोबर वाली नेचुरल खाद मिलती है। एक म्यूचुअल बेनेफिट सहजीविता का सबसे अच्छा उदाहरण।मेरी गाड़ी का ड्राइवर हॉर्न बजाए जा रहा था, लेकिन वो निश्चिंत और उसके जानवरों का झुंड भी निश्चिंत सड़क पर चल रहा था। हार के ड्राइवर ने सड़क से नीचे वाहन उतारकर किसी प्रकार से झुंड को पार किया। एक गांव में घुसे तो देखा सड़क गायब ही हो गई। ऐसा नहीं कि सड़क खुद गई, गांव की सड़क पक्की सीमेंटेड थी, लेकिन उस पर दुकानें बीच सड़क तक दोनों तरफ से बढ़ गई। सड़क पर दुकानों के तख्ते और उस पर रखा सामान, उसके आगे पार्किंग शैली में आड़ी तिरछी लगी मोटरसाइकिलें। दुकानों को गौर से देखो तो जितना सामान दूकान में है, वो सभी आगे लगे तख्ते में प्रदस्र्श्नी रूप में समा गया था और अंदर की असली दुकान बिलकुल खाली नजर आ रही थी।मेरी निगाह इन्ही दुकानों की कतार में एक दूकान पर ठहर गयी ,हलवाई की दूकान ,दुकानदार एक हलवाई, जिसने करीने से खीरमोहन और जलेबियों का ढेर परात में सजाकर रखा हुआ था, जिस पर सड़क की रेलमपेल की कारस्तानी के चलते धूल की परते जैम गयी थी ,धुल की परते इन के निर्माण के काल खंड से बिक्री के कालखंड के लम्बे काल चक्र के गुजरे युगों की दास्तान साफ़ व्यक्त कर रही थी. । उपर से मक्खियां भिनभिनाकर एक मधुर संगीत पैदा कर रही थीं। हलवाई एक हाथ से मक्खियों को उ ड़ाकर उन्हें डरा रहा था, लेकिन अंततः हार मानकर मक्खियों का शिकार करना शुरू कर दिया। वह मक्खी को हथेली में मसल देता, ताकि मक्खी के दोबारा जिंदा होने की संभावना शून्य बन जाए। शायद, किसी हिंदी फिल्म से उसने यह सबक सीखा था कि लगभग मृत विलेन अंतिम दृश्य में भी जीवित होकर पुनः प्रहार कर सकता है। मक्खियों के जीवाश्म भी दुकानदार के हाथों सृजित होकर मिठाइयों के ऊपर ही गिर रहे थे। कुछ ग्राहक खड़े थे जो चाव से एक-एक पीस उठाकर, टेस्ट करने के नाम पर, अपनी जीभ की लालसा को संतुष्ट कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से गाड़ी से उतरकर, उन आड़ी-तिरछी रखी मोटरसाइकिलों से रास्ता बनाकर निकला। अभी थोड़ा और आगे बढ़ा कि एक महाशय, थोड़े से लम्बे-पतले, आँखों पर काला चश्मा लगाए, मुंह पे तुलसी विमल के मिश्रण का बीड़ा दबाए, एक दूसरे साथी से बीच सड़क पर बतिया रहा था। दूसरा आदमी भी उसी की कद-काठी और विचारधारा का, उसके हर थूक से लबालब बातों के छींटों को अपने सीने में सजाए, अपनी ओर से भी इसी प्रकार की गुटखा-छाप बातों का आदान-प्रदान कर रहा था। मोटरसाइकिल बिल्कुल आड़े लगाकर, एक हाथ से कान रुपी हैंडल को स्टाइल से पकड़ के ऐंठा हुआ था। बात करते वक्त बार-बार अपना मुँह भी मोटरसाइकिल के शीशे में देख रहा था। मेरे ड्राइवर ने गाड़ी रोक ली, बार-बार हॉर्न बजाने लगा, लेकिन वो दोनों ही इस बात से अनभिज्ञ अपनी चिचोरेपन की हद को पार करते हुए अपनी बातों में मशगूल थे।मुझसे रहा नहीं गया, गाड़ी से उतरकर उन्हें अपनी मोटरसाइकिल हटाने का निवेदन करने ही वाला था कि उससे पहले ही वह बोल पड़ा- “भाई, इससे पहले कि तू बोले ये सड़क तेरे बाप की है क्या? तो मैं बता दूँ, ये सड़क मेरे बाप की ही है। फिर अपनी मोटरसाइकिल का हॉर्न जोर जोर से बजाकर बताने लगा मेरी गाडी में भी हॉर्न है भाई तेरे हवाई जहाज के ओरन को बजाकर मुझे मत बता,तुझे तेरी ये गाड़ी निकालनी है तो सड़क से नीचे उतार ले, खूब जगह पड़ी है। भेजा मत खा मेरा।” मैंने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए ड्राइवर को गाड़ी नीचे सड़क से उतारकर किसी प्रकार से उनको बचाते हुए निकल लिया। रास्ते में सोच रहा था, आप सड़कों के अपग्रेडेशन करवा सकते हैं, लेकिन लोगों के मानसिक विकृति और स्थिति का अपग्रेडेशन कैसे करेंगे?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *