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तीन चकवा चकवी का जोड़ा नाजिम तालाब में वन्य जीव प्रेमी और पक्षी प्रेमियों का खींच रहे हैं ध्यान -Dr Mukesh Garg

तीन चकवा चकवी का जोड़ा नाजिम तालाब में वन्य जीव प्रेमी और पक्षी प्रेमियों का खींच रहे हैं ध्यान

चकवा चकवी के नाम से मशहूर चक्रवाक पक्षी गंगापुर शहर के नाजिम तालाब पर अपना ठिकाना बनाकर रह रहे हैं यहां 3 जोड़े अक्सर दिखाई दे रहे हैं मैं पिछले 1 महीने से इन्हें यहां पर लगभग हर रोज वॉच कर रहा हूं बर्ड्स एक्सपर्ट की माने तो लद्दाख उत्तरी यूरोप में पाई जाने वाला यह पक्षी जून-जुलाई में ब्रीडिंग करता है अक्टूबर माह तक प्रवासी पक्षी बनकर हमारे देश में कम ठंड होने वाले क्षेत्रों में आ जाता है बर्ड्स एक्सपर्ट का यह भी कहना है कि है प्रवास पर आए पक्षियों में पहला पक्षी होता है इसके बाद विभिन्न प्रकार के पक्षी यहां आने लगते हैं इन दिनों नाजिम तालाब पर विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षी दर्जनों की संख्या में सुबह-शाम नदी किनारे धूप सेकते या तालाब में जलीय वनस्पति घास फूस को अपना भोजन खाते दिखाई दे रहे हैं चकवा चकवी के बारे में कबीर कहते हैं सांझ पड़े, बीतबै, चकवी दीन्ही रोय। चल चकवा व देश को जहां रैन नहिं होय

इन पक्षियों के अरे में कई किवदंतिया अंधविश्वास मशहूर है ,जैसे अक्सर कहा जता है की चकवी की विशेषता है सूरज उगने से शाम को सूरज ढलने तक यह जोड़े में रहता है सुर्य्स्त ही यह अलग हो जाते हैं देखा गया कि सूरज ढलने के बाद आधे पक्षी तालाब के किनारे पर और आधे पक्षी उसके किनारे पर चले जाते हैं रात्रि में कई बार अपने साथी को आवाज निकालकर उस साथी के सकुशल होने का संकेत लेते रहते हैं

चकवा चकवी जिसे चक्रवाक और ब्राह्मणी बतख भी कहा जाता है बतख के तेडोरना वंश की एक जाती है जो गर्मियों में यूरोप और एशिया के उत्तरी भाग में प्रजनन करती है और फिर सर्दियों में प्रवास कर दक्षिणी क्षेत्रों में जाती है जिनमें भारतीय उपमहाद्वीप मुख्यतः शामिल है

एक सुनहरी नारंगी रंग का पक्षी है जो भारतीय साहित्य में विशेषता से उल्लेखित है इसका उल्लेख कालिदास ने भी किया था और चकवा चक्की पर जुड़े के बारे में भारत में कई किवदंती हैं

चक्रवात का रंग गाढ़ा नारंगी या हल्का कतरी होता है लेकिन इसकी गर्दन और सिर बादामी होते हैं गर्दन के चारों ओर एक काला कंठ रहता है लेकिन मादा पक्षी इस से रहित होती है डैनी और पैर के कुछ रंग काले और सफेद रहते हैं और dene का चित्र स्पैकुलम हरा होता है चकवा से मिलती-जुलती एक अन्य जाति भी है शाह चकवा जो काले और सफेद रंग का बहुत ही सुंदर चितकबरा पक्षी है जिसका कई आदत है चक्रवात जैसी ही होती है चक्रवात 2 फुट लंबा पक्षी है जिसके नर मादा करीब एक जैसे ही होते हैं मादा नर से कुछ छोटी होती है उसका रंग भी नर से कुछ हल्का रहता है चक्रवाक सारे दक्षिणी पूर्वी यूरोप मध्य एशिया और उत्तरी अफ्रीका के प्रदेशों में फैले हुए हैं जहां झीलों बड़ी नदियों तथा समुद्री किनारों पर अपना अधिक समय बिताते हैं ढीठ पक्षी है इसके कर्कश आवाज की आबादी के निकटवर्ती जलाशय में सुनाई पड़ती रहती हैहमारे कवियों ने इसी कारण शायद इनके बारे में यह कल्पना कीहै कि रात में नर पक्षी मादा से विलग हो जाता है जाता है और उसका मिलन सूर्योदय के पूर्व नहीं होता है लेकिन केवल साहित्यिक मान्यता के अलावा इसमेंउसमें कोई तथ्य नहीं है

चक्रवाक जोड़े में रहते हैं लेकिन कभी-कभी सैकड़ों का झुंड बना लेते हैं यह अंडा देने के लिए घोंसला नहीं बनाते इनकी मादा पहाड़ के अन्दर होल में अथवा जमीन पर भी थोड़ा घास फूस रखकर अपने अंडे देती है इनकी मादा पहाड़ के सूराखों में अथवा जमीन पर ही थोड़ा घास फूस रखकर अपने अंडे देती है। इनका मुख्य भोजन घास पात, सेवर तथा अन्न के दाने आदि हैं,

चक्रवात का नाम चकवा उसके बोलने के ढंग पर हुआ इस पक्षी का प्राचीनतम उल्लेख प्राचीन समय के अंतर्गत बल जीवो की सूची में ऋग्वेद में तथा यजुर्वेद में हुआ इसका सबसे पुराना प्रयोग अर्थ वेद में दंपत्ति की परस्पर निष्ठा और प्रेम जैसे चारित्रिक विशेषता के संदर्भ में हुआ है यह किवदंती जुडी हुई है की दिन में तो ये जोड़े में प्रेम पूर्वक रहते है जैसे शाम होती है इसके बाद बिछड़ जाते हैं और रात भर अलग रहते हैं अत्यंत प्राचीन काल से कवियों की संयोग तथा वियोगसंबंधी कोमल व्यंजनाएँ इस प्रसिद्धि से संबद्ध हैं। यह पक्षी मिलन की असमर्थता के प्रतीक रूप में अनेक उक्तियों का विषय रहा है। अंधविश्वास, किंवदंती और काल्पनिक मान्यता से युक्त इस पक्षी की तथाकतित उपर्युक्त विशेषता ने इसे कविसमय तथा रूढ़ उपमान के रूप में प्रसिद्ध कर दिया है।

उपरोक्त संलग्न छायांकन मेरे द्वारा गंगापुर शहर के पास में स्थित नाजिम तालाब से लिए गए हैं जहां पर इसके अतिरिक्त 50 से भी अधिक प्रकार के प्रवासी पक्षियों के झुंड नाजिम तालाब पर आबाद हो रहे हैं हालांकि अब धीरे-धीरे इनका जाने का समय हो गया है तो संख्या घटने लगी है और आप भी अगर पर्यावरण प्रेमी और पक्षी प्रेमी है और इस स्थान को विजिट करना चाहते हैं तो मुझे मैसेंजर में संदेश दें मैं आपको इस स्थान का पूरा पता और आपके ठहर रहने की व्यवस्था के बारे में आपकी सहायता करूंगा मैं खुद हर रविवार को सुबह 7:30 से 9:00 बजे एक बर्ड वाक का प्रोग्राम रखता हूं जिसमें आप भी शामिल होकर प्रकृति के इस अप्रतिम सौंदर्य का मजा ले सकते हैं

फोटोग्राफर- डॉ मुकेश गर्ग

बर्ड एंड वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर

सीनियर कंसलटेंट गर्ग हॉस्पिटल गंगापुर सिटी

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