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Tag: पर्यावरण

“एक अमूर्त चित्र जिसमें ध्यानमग्न मानव आकृति के भीतर से निकलती सुनहरी किरणें बाहरी ब्रह्मांड में विलीन हो रही हैं — जो आत्म से विश्व तक की चेतना यात्रा का प्रतीक हैं।”

आत्मबोध से विश्वबोध तक — चेतना की वह यात्रा जो मनुष्य को ‘मैं’ से ‘हम’ बनाती है

“मनुष्य की सबसे लंबी यात्रा कोई भौगोलिक नहीं होती — वह भीतर जाती है। आत्मबोध से विश्वबोध तक की यह यात्रा ‘मैं’ से ‘हम’ बनने…

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एक ग्रामीण भारतीय आँगन में गोपाष्टमी के दिन का दृश्य — हरे ताजे गोबर से लीपा गया चौक, बीच में गोमाता पर फूल और दीप जल रहे हैं। पास में किसान अपने बैलों को सजा रहा है, बच्चे गाय की सेवा में लगे हैं और सूरज की स्वर्णिम किरणें पूरे वातावरण को पवित्र बना रही हैं।

गोपाष्टमी : गो, गृह और गंगा की तरह पवित्र — हमारी सभ्यता का अदृश्य आधार

गोपाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की जड़ों का उत्सव है — वह दिन जब हम यह स्मरण करते हैं कि हमारी…

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नदी के घाट पर सूर्योदय के समय महिलाएँ साड़ी पहने जल में खड़ी होकर अर्घ्य देती हुईं, बांस की सूप में ठेकुआ, केले और गन्ना सजे हुए, पीछे दीयों की पंक्तियाँ और सुनहरी रोशनी में नहाया हुआ वातावरण।

छट पर्व –जहाँ अस्त हुए सूरज को भी पूजा जाता है

छठ पर्व अब बिहार की सीमाओं से निकलकर विश्वभर में भारतीय आस्था का प्रतीक बन चुका है। यह केवल सूर्य उपासना नहीं, बल्कि मनुष्य और…

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त के दृश्य में बारिश के बीच एक मंच पर झींगुर नेता भाषण दे रहे हैं, उनके सामने झींगुरों की भीड़ समर्थन में नारे लगा रही है। पीछे बैनर 'झींगुर अधिकार सम्मेलन' टंगा है, माहौल व्यंग्यात्मक और हास्यपूर्ण है।

बरसात में झीगुरों की आमसभा-हास्य-व्यंग्य

बारिश की रात झींगुरों की आवाज़ को कभी ध्यान से सुनिए – वो बस टर्राहट नहीं, एक आंदोलन की गूंज है। वे मंच पर अधिकारों…

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एक घना हरा-भरा जंगल जिसमें सामने एक हिरण खड़ा है, ऊपर एक पक्षी उड़ रहा है और एक कौआ झाड़ी पर बैठा है; पृष्ठभूमि में धुंध से ढकी पहाड़ियाँ और ऊँचे-ऊँचे पेड़ दिख रहे हैं।

जंगल की पुकार: हरियाली, जीवन और संरक्षण की कविता

जंगल केवल पेड़ों और जानवरों का घर नहीं, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यह हरियाली, शांति, और जैव विविधता का प्रतीक हैं, जो…

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