सिस्टम, सिस्टमैटिकली बच निकला है —व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' July 26, 2025 व्यंग रचनाएं 7 Comments एक और सरकारी छत गिरी, मासूम मरे, सिस्टम फिर बच निकला — जैसे संविधान में इसके लिए छूट हो। सरकार की संवेदना ट्विटर और प्रेस… Spread the love
वाह भाई वाह -कविता -हास्य व्यंग्य डॉ मुकेश 'असीमित' July 7, 2025 हिंदी कविता 0 Comments सामाजिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करती ये कविता ‘वाह भाई वाह’ हमें उन विसंगतियों का एहसास कराती है जहाँ ज़िंदगी त्रासदी बन चुकी है, फिर… Spread the love