अंगूठे का दर्द,अंगुली नहीं जानती Pradeep Audichya September 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “अंगूठा डिजिटल युग का असली मुखिया है—स्याही वाले निशान से पहचान तक और मोबाइल की स्क्रीन पर टाइपिंग तक। लेकिन दुख यह है कि अंगूठे… Spread the love
मैं और मेरी हिंदी-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' September 13, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments मैं, अंग्रेज़ी दवा लिखने वाला डॉक्टर, अब हिंदी में लिखने लगा तो शहर के ‘हिंदी प्रहरी’ गुरुजी मेरी हर पोस्ट में बिंदी-अनुस्वार ढूंढते फिरते हैं।… Spread the love
जमाई राजा—कलियुग के कौवे डॉ मुकेश 'असीमित' September 12, 2025 हास्य रचनाएं 1 Comment श्राद्ध पक्ष में कौवों की कमी ने परम्पराओं को भी स्टार्टअप बना दिया। अब्दुल चाचा दो कौवे पालकर खीर चखवाने का 101 रुपये वाला ‘डिलीवरी… Spread the love
क्या पापा – लोल – “लोल हो गया संवाद” डॉ मुकेश 'असीमित' September 2, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments डिजिटल युग की हंसी अब मुँह से नहीं, मोबाइल से निकलती है। पिता ‘LOL’ सुनकर असली हंसी देखना चाहते हैं, जबकि बेटा ‘BRB’, ‘ROFL’, ‘IDK’… Spread the love
अफ़सर अवकाश पर है-हास्य-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments सरकारी दफ़्तरों की असलियत पर यह व्यंग्य कटाक्ष करता है—जहाँ अफ़सर तनख़्वाह तो छुट्टियों की लेते हैं, पर काम के नाम पर बहानेबाज़ी ही उनका… Spread the love
लोकतंत्र का रक्षा बंधन पर्व-व्यंग्य रचना डॉ मुकेश 'असीमित' August 9, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments रक्षा बंधन पर्व का नया संस्करण—भ्रष्टाचार और रिश्वत का भाई-बहन का पवित्र रिश्ता। सत्ता और विपक्ष दोनों पंडाल में, ₹2000 की नोटों की साड़ी पहने… Spread the love