वाह भाई वाह -कविता -हास्य व्यंग्य
सामाजिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करती ये कविता ‘वाह भाई वाह’ हमें उन विसंगतियों का एहसास कराती है जहाँ ज़िंदगी त्रासदी बन चुकी है, फिर भी आमजन तमाशबीन बना बैठा है। गड्ढों, महंगाई, रिश्तों की दूरी और शिक्षा की मार के बीच भी मुस्कुराता देश – ‘वाह भाई वाह’!