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Tag: व्यंग्य

“लाइन कैरिकेचर जिसमें एक मोटा-सा रिटायर्ड सज्जन रंगीन ट्रैक सूट पहनकर जिम में भारी डम्बल उठाने की कोशिश कर रहे हैं, पास में उनकी पत्नी बाँहें बाँधे देख रही हैं, जिम में बाकी नौजवान हँसते हुए एक्सरसाइज़ कर रहे हैं — सेवानिवृत्ति के बाद ‘यौवन पुनर्जागरण’ पर व्यंग्यात्मक दृश्य।”

गालों की लाली- हो गई गाली

“कभी सूर्योदय से पहले नहीं उठने वाले अब मुंह-अंधेरे ‘हेलो हाय’ करते जॉगिंग पर हैं। ट्रैक सूट, डियोडरेंट और महिला ट्रेनर ने जैसे रिटायरमेंट में…

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“कार्टून चित्र जिसमें एक युवा इमोजी और संक्षिप्त चैट शब्दों (‘LOL’, ‘BRB’, ‘TTYL’) से घिरा मोबाइल चला रहा है, और पास ही एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हैरान होकर उस चैट को देख रहा है — दो पीढ़ियों के बीच भाषा की खाई का व्यंग्यात्मक चित्रण।”

जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा

“जेन ज़ी की ‘लोल भाषा’ ने व्याकरण के सिंहासन को हिला दिया है। अब भाषा नहीं, भावना प्राथमिक है। अक्षरों का वजन घट रहा है,…

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एक कार्टून चित्र जिसमें एक उल्लू सोने की परात थामे अमीरों के महलों की LED रोशनी में उड़ता हुआ दिख रहा है, नीचे एक आम आदमी खाली वॉलेट लिए दीये के पास बैठा है। दृश्य में दिवाली की रोशनी, पर व्यंग्य का अंधकार झलक रहा है।

जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा

धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके…

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कार्टून चित्र में एक व्यंग्यात्मक दृश्य: मंच पर नेता लोग बयानों के बम फोड़ रहे हैं, न्यायाधीश आत्मावलोकन का दीप जलाए बैठे हैं, और नागरिक कानों में रुई डालकर प्रदूषण से बच रहे हैं। ऊपर पटाखों की जगह “लोकतंत्र ज़िंदाबाद” और “सेवा का उजाला” लिखे बैनर लहराते हैं।

शुभ लाभ-फटूकड़ियां – 2025

दीपावली की यह व्यंग्यात्मक ‘फटूकड़ियां 2025’ केवल रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, राजनीति, न्याय और समाज की मानसिकता पर तीखा हास्य है। लेखक…

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एक हास्य व्यंग्य कार्टून जिसमें एक आधुनिक दंपत्ति अपने कुत्ते टॉमी को गोद में लेकर सेल्फी ले रहा है, पीछे घर का ए.सी. चल रहा है, डॉग-स्पा के पोस्टर लगे हैं, और टेबल पर डॉग केक रखा है। मजदूर खिड़की के बाहर पसीने में तर हैं — दृश्य में वर्गीय और भावनात्मक विडंबना झलकती है।

पालतू कुत्ता — इंसान का आख़िरी विकास चरण

अब मनुष्य “सामाजिक प्राणी” से “पालतू प्राणी” में विकसित हो चुका है। पट्टा अब कुत्ते के गले में नहीं, बल्कि उसकी ईएमआई और सोशल मीडिया…

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कार्टून चित्र जिसमें एक चिंतित लेखक लैपटॉप पर मेल इनबॉक्स देख रहा है; स्क्रीन पर लिखा है – “हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन!” पास में कॉफी का कप, मेज पर बिखरे अधूरे लेख और कोने में “यथासमय” लिखा हुआ कैलेंडर। लेखक के चेहरे पर उम्मीद और थकान दोनों झलक रहे हैं।

हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन

लेखन भेजना आसान है, लेकिन उसके बाद की प्रतीक्षा ही असली ‘कहानी’ बन जाती है। संपादक का “यथासमय” जवाब लेखकों के जीवन का सबसे रहस्यमय…

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सर्किट हाउस के पोर्च पर लक्ज़री कार से उतरते काले चश्मे और सफेद कुर्ते-पायजाम में बड़े नेता; पीछे सफेद टोपी और खादी पहने कार्यकर्ता माला-पहनाने, सेल्फी और टॉवेल से मुंह पोंछने की होड़ में; मैदान में पट्टे-बैनरों और नारेबाज़ी के बीच बूढ़े गांधीवादी नेता की टोपी गिरकर कालीन पर पड़ी है — सत्ता, दिखावा और रस्मों की विडम्बना का कार्टूनैरिक दृश्य।

चुनावी टिकट की बिक्री-हास्य व्यंग्य रचना

“सर्किट हाउस की दीवारों में लोकतंत्र की गूँज नहीं — सिर्फ फ़ोटोग्राफ़ और आरक्षण की गंध है।” “माला पहनी, सेल्फी ली — और गांधी टोपी…

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संसद में उड़ता हुआ जूता, मंत्री के भाषण के दौरान मीडिया कैमरे से कवर करते हुए — व्यंग्यात्मक कार्टून दृश्य।

जूता पुराण : शो-टाइम से शू-टाइम तक

इन दिनों जूते बोल रहे हैं — संसद से लेकर सेमिनार तक, हर मंच पर चप्पलें संवाद कर रही हैं। कभी प्रेमचंद के फटे जूतों…

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“मध्यमवर्गीय शादी में ‘शोभा’ के नाम पर पंडाल, डीजे और ड्रोन कैमरा के बीच नाचते रिश्तेदारों का व्यंग्य चित्र।”

मध्यमवर्गीय शादियाँ : परंपरा, शोभा और तकनीक का तड़का

हमारे इलाक़े की मध्यमवर्गीय शादियाँ किसी भूले-बिसरे लोकगीत के रीमिक्स जैसी होती हैं — धुन परंपरा की, बोल नए ज़माने के। रिश्ता तय होने की…

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