काम वाली बाई — एक व्यंग्य रचना
“काम वाली बाई” — नाम सुनते ही भारतीय गृहस्थी की परंपरा की एक अतुलनीय, अद्भुत सूत्रधार की छवि उभर आती है। यह भारतीय गृहस्थी की एक अनूठी, सनातनी परंपरा है। भारतीय परिवार के हर सदस्य के मन में इसका चेहरा देखकर एक विशेष भावना का संचार होता है — वह है ‘काम वाली बाई’।
आप उन्हें ‘मेड’ कहिए या कोई और नाम दीजिए, लेकिन जो भावनात्मक मिश्रण ‘काम वाली बाई’ के नाम से जुड़ा है, वह किसी और नाम से नहीं जुड़ता। किसी को इस नाम में चुड़ैल दिखती है, किसी को पालनहार, किसी को विध्न निवारक ‘सकटमोचक’, किसी को ‘ग्राहकलेशकारिणी’, तो किसी को ‘कमसिन कली’ — इठलाती, बलखाती, मनचली का भाव नजर आता है।
यह एक ऐसा पेशा है जो अपनाया तो मजबूरी में जाता है — मजबूरी यह कि मरद पियक्कड़ और कामचोर है, लेकिन मर्दानगी के सबूत के तौर पर चार बच्चे गोद में दे दिए हैं, जिन्हें अब उसी को पालना है। अब वो क्या करे बेचारी — चार घरों में काम करते-करते थक जाती है, फिर अपने घर का भी देखना पड़ता है। उसका मर्द कुछ करता नहीं, बच्चे वो खुद पालती है। ज्यादातर मामलों में काम वाली के पैसों से मर्द ऐश उड़ाता है, दारू पीता है, मारपीट करता है — यह आम बात है।
पर एक बार यह पेशा अपनाने के बाद इसकी चकाचौंध में वह इतनी खो जाती है कि उसे लगता है, इस गृहस्थी रूपी भवसागर की तारक अगर भगवान ने किसी को भेजा है, तो वह वही है।
शादी होते ही लड़की के घर वाले सबसे पहले यह देखते हैं कि जिस घर में बेटी जा रही है, वहाँ काम वाली बाई है या नहीं। आजकल घर में धन-दौलत हो या न हो, अगर काम वाली बाई है तो मानो लड़के को इंडियाज़ मोस्ट वांटेड वर की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया।
लड़की की माँ गर्व से कहेगी — “जी, बड़े नाज़ों से पाला है बेटी को, गाय है बिलकुल गाय — बिना सींग वाली — पर कोई काम नहीं करने दिया इसे। वैसे भी आजकल काम करता कौन है जी! हमारे घर में तो बर्तन के लिए अलग, झाड़ू–पोंछे के लिए अलग और खाना बनाने के लिए अलग बाई रखी है।”
बस, आप काम वाली बाई के लिए “हाँ” कह दीजिए, तो आपके लड़के को कन्या मिलने के पूरे चांस हैं।
कई लड़के जो सुयोग्य कन्या पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं, उन्हें अपने रेज़्युम के बजाय काम वाली बाई का रेज़्युम भेजना चाहिए।
काम वाली बाई भी जानती है कि घर में उसकी अहमियत क्या है, इसलिए खूब नखरे दिखाती है। मजबूरी है, सब झेलना पड़ेगा। लेकिन उसकी पहली शर्त होती है — “घर में सासू माँ और मर्द की ज़्यादा मच-मच पसंद नहीं।”
वह पहले ही समझा देती है — “काम करेंगी, पर अगर अम्मा और आपका मर्द ज़्यादा खिचखिच करेंगे तो काम छोड़ दूँगी।” फिर वो नाम गिनाएगी — “शुक्लानी, मिश्रानी, गुप्तैन — सब मेरे पीछे पड़ी हैं।”
महीनों की वेटिंग लिस्ट का प्रमाण वह अपने स्मार्टफ़ोन में दिखा देगी।
अब आप यह न समझिए कि वो अनपढ़ है — आजकल की काम वाली वक्त के साथ ‘हाईटेक’ हो गई है। इंस्टा पर उसका आईडी है, जहाँ वह हर घर की कहानी सचित्र अपलोड करती रहती है।
कई जलनखोर मोहल्ले की महिलाएँ इसी के ज़रिए शर्मा जी और मिश्रा जी के काले कारनामे जानकर चटखारे लेती हैं और आगे सुनाती हैं। वैसे, मानो तो काम बाली बाई आज के ज़माने की डाकिया, संदेश वाहक या छोटे-मोटे नारद मुनि से कम नहीं। जब तक चार घरों की बातें एक-दूसरे को नहीं बता दें, इन्हें लगता ही नहीं कि दिन का काम पूरा हुआ है।
बड़े शहरों में तो अब काम वालियों के लिए ऑनलाइन ऐप और कॉन्ट्रैक्टर तक बन गए हैं, पर छोटे शहरों में बड़ी मुश्किल होती है।
यहाँ काम वाली बाई ढूँढना पूरे परिवार का ‘मिशन’ बन जाता है।
और अगर किसी घर से काम वाली बाई चली जाए तो वहाँ जो मातम का माहौल बनता है, वैसा दृश्य किसी सदस्य के गुजर जाने पर भी नहीं दिखता। पूरा घर अस्त-व्यस्त, पत्नी असीम शोक में — अपने से ज़्यादा अपनी किस्मत और पूरे परिवार को कोसती हुई।
पति एकदम साइलेंट मोड में इस तूफान के गुजर जाने की प्रतीक्षा करता है, और अब घर के सारे काम-काज का बोझ अपने कंधों पर उठाता है।
काम वालियों की शर्तें ऐसी होती हैं जिन्हें स्वीकार करना वैसा ही होता है जैसे हम सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करते वक्त उसकी शर्तें बिना पढ़े ‘एक्सेप्ट’ कर लेते हैं।
पगार एडवांस, महीने की छुट्टियाँ, टीए–डीए, सब मिलता है इन्हें।
बीमार पड़ने पर दवाई, जाँच, डॉक्टर को दिखाना — सब मालिक की तरफ से।
कभी देवी-दर्शन जाना हो तो मालिक की गाड़ी फ्री। हर साल इन्क्रीमेंट तो तय ही है।
अगर आप खुशकिस्मत हैं और आपकी काम वाली बाई आप पर दया करके एक साल तक टिक गई, तो इसका जश्न आप पूरे मोहल्ले को दावत देकर मना सकती हैं।
पहले आम आदमी अपनी कुंडली देखकर तय करता था कि आज दिन कैसा रहेगा; अब उसे सिर्फ यह देखना होता है कि काम वाली बाई आ रही है या नहीं।
अगर नहीं आ रही तो समझ लीजिए — आज का दिन अच्छा नहीं है!
और अगर गलती से उसी दिन आपने घर में मेहमान बुला लिए, तो आपकी खैर नहीं। जो सुनने को मिलेगा, वह सात जन्मों तक भूल नहीं पाएँगे।
गृहणियों की कमर भी आजकल भगवान कुछ ऐसे प्रोडक्ट कर रहे हैं कि फर्श पर झाड़ू लगाते ही तीन दिन तक बिस्तर में विश्राम करती हैं। फिर साहब के हाथ में झाड़ू और पोंछा शोभायमान हो जाता है।
आप क्या समझते नहीं हैं? सब जानते हैं कि आजकल घरों में सास–बहू के कलह की मुख्य जड़ यही ‘काम वाली बाई’ होती है।
सासू माँ को काम पसंद नहीं आता, और बहू को भी नहीं l सासू माँ से रहा नहीं जाता — बोल ही देती हैं।
बस फिर क्या! काम वाली बाई काम छोड़ने की धमकी देती है, और इस पर घर में महाभारत छिड़ जाती है।
बहू के मोटे-मोटे आँसू देखकर द्रवित और दबा हुआ पति भी बेचारा माँ को समझाता है और मामले को शांत करने के लिए काम वाली बाई के हाथ जोड़ता नजर आता है।
किट्टी पार्टी में देखो तो चर्चा काम बाली बाइयों की ही होती है। कॉलोनी में किसी के घर नई बाई आई नहीं कि खुसर-पुसर शुरू —
“अरे, पहले वाली क्यों छोड़ गई?”
“बहुत मच-मच करती थी फलां गुप्तायन।”
“लड़ाकू है फलानी, जीने नहीं देती थी!”
नई काम बाली बाई भी कम नहीं होती। वह जिस घर में काम लेने आती है, उसके बारे में पूरी तहकीकात करती है। जल्द ही उसे पता चल जाता है कि सबसे नकारा लोग तो इसी घर में रहते हैं। पर फिर खुद ही सोचती है — “मेरे से ज़्यादा नकारा कौन हो सकता है! अब मैं आई हूँ ना, सबको ठिकाने लगा दूँगी।”
और इसी आत्मविश्वास से प्रवेश करती है गृहस्थी के रणक्षेत्र में।
पति बेचारा काम बाली के आते ही सतर्क हो जाता है — गीला तौलिया बेड से हटा लिया, जूते बाहर कर दिए, कुर्सी के नीचे से मैट सरका दी, और अपने बदन में तौलिया लपेट लिया।
क्योंकि ये वही कारण हैं जिनकी शिकायत काम बाली बाई रोज़ उसकी पत्नी से करती है — “भौजी, आपका मर्द बहुत गंदा है, देखो कहाँ-कहाँ कपड़े फैला देता है!”
अब जनाब तुरंत बाथरूम में घुस जाते हैं, क्योंकि बाई का टाइम फिक्स है — उसे वॉशरूम भी साफ़ करना है।
पत्नी इनके आगे-पीछे ‘अनुनय-विनय मोड’ में रहती है, ताकि किसी तरह काम सही से हो जाए।
पति सोचता है — “यार! ये जो इज्जत काम वाली बाई को मिल रही है, उसमें से अगर थोड़ी सी मुझे मिल जाती, तो शादी करने का भी कोई फायदा महसूस होता!”
खैर, मेरा तो मानना है — किसी भी गृहस्थी की पालनहार, विध्न-निवारक इस ‘काम बाली बाई’ को गणेश जी के समान प्रथम पूज्य का दर्जा मिलना चाहिए।
और शादी–समारोह या मांगलिक अवसरों पर यह ध्यान रखना चाहिए कि महीने भर पहले से बाई का मूड ठीक रखा जाए।
क्योंकि वह भी इसी फिराक में रहती है — अपना इन्क्रीमेंट बढ़वाने और पिछली “मच-मच” का बदला लेने की।
अक्सर ऐसे मौके पर उसकी या उसके घरवालों की तबीयत खराब हो जाती है, और फिर आप हाथ मलते रह जाते हैं।
इसलिए भगवान से प्रार्थना करें — सबसे पहले निमंत्रण उसे ही दें, सवा रुपए और नारियल के साथ! उसके बाद ही शादी या फंक्शन की तैयारी शुरू करें।
(ओह! दरवाज़े की कॉल बेल बजी है। निश्चित ही काम बाली बाई आ गई है। मुझे जल्दी से वॉशरूम में नहाना है… नहीं तो आप समझदार हैं ही — ये लेख प्रकाशित हो जाए, इसकी गारंटी नहीं है।)
इतिश्री — काम बाली बाई पुराण।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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