वाह भाई वाह –
सड़कों पर गड्ढे ,दारु के अड्डे , बैठे निठल्ले ,सन्डे हो या मंडे
जेबें खाली, सपने खयाली ,महंगाई डायन खाये जाये साली ,
गली के छोरे ,निरे छिछोरे , मारें सीटी निकले आह
फिर भी दिल बोले , ‘वाह भाई वाह’।
ट्रैफिक जाम में फंसा आवाम , महंगाई की मार ,बहरी सरकार ,
चाय भी भी नसीब नहीं, कोई तो करीब नहीं ,
ऑफिस की रेलमपेल ,घर बनी जेल,जीने की नहीं रही चाह,
फिर भी दिल बोले , ‘वाह भाई वाह’।
स्कूल की महंगी फीस ,पेरेंट्स की निकली टीस ,
खेलों में नबाब इनके रिजल्ट खराब
पढ़ाई का बोझ,होमवर्क रोज , बच्चों पर संकट अथाह
फिर भी दिल बोले , ‘वाह भाई वाह’।
खोखली बातें , बेचैनी में कटी रातें ,
उजड़ते गाँव,उजड़ी पीपल की छाँव ,
फूटी नहीं कोडी,भूख निगोड़ी ,कठिन पनघट की राह ।
फिर भी दिल बोले , ‘वाह भाई वाह’।
रिश्ते हुए दूर,सब अपने में मगरूर
सीमित राहें , ‘असीमित’ चाहें ,
रोटी के जुगाड़ में,रिश्तों की आड़ में सब कुछ हुआ तबाह
फिर भी दिल बोले , ‘वाह भाई वाह’।
रचनाकार -डॉ मुकेश असीमित
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