आज की मेरी कविता पतंग और पतंग बाजी को समर्पित. हमारे देश में पतंगबाजी खेल एवं मनोरंजन की ऐसी विधा है जो देश के हर कोने में पायी जाती है. लोग त्यौहार या किसी खुशी के अवसर पर परिवार के साथ इस पतंबाजी का शौक पूरा करते है. देश में कई जगह पतंग महोत्सव भी मनाया जाता है
“पतंग”
पतंग डोर चरखी सहित,लग जाये जव हाथ,
तुरत उड़े आकाश में,होय हवा का साथ,
होय हवा का साथ,संग सह कर्मी आवें,
ऊंची भरे उडान ,और नभ में चढ जावे,
काली पीली लाल,आदि को संग में लावे,
डोरी माझा लेय ,सभी छत पर चढ जावे,
“प्रेमी”कन्नी काट, लड़े एक दूजे के संग,
पेंच लड़ाना आय,वोही काट देय पतंग।
रचियता- महादेव प्रेमी
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