Login    |    Register
Menu Close

Kalyug (कलयुग) हिंदी कविता by Mahadev Premi

kalyug hindi poem

कलयुग की उल्टी लीला से सभी सामना कर रहे है. कलयुग के रूप में जो उल्टी गंगा बह रही है उसका सटीक वर्णन करती हुई यह कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है

“कलयुग”

कलयुग झूठ अधार है,कलयुग बेईमान,
कपट, द्वेष ,पाखंड सब, हैं अवगुण की खान,

है अवगुण की खान ,कि भोगी योगी बन गये,
चोर लुटेरे साधु ,बन बच्चों को ले गये,

मांसाहारी पंडित, भये मुल्ला जाम पिये,
रक्षक ही भक्षक होगा,जब कैसे लोग जिये,

“प्रेमी”तरसे दाने,कोई भोग रहा धन युग,
सगे भाई दुश्मन,बने ऐसा ये कलयुग।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *