“सैर पहाडों की”
कुण्डली 6चरण
सैर पहाडों की अभी,मैंने की एक बार,
झर झर कर झरने वहे,शोभा बड़ी अपार,
शोभा बड़ी अपार,पहाड़ी ऊंची नीची,
बर्फीली चट्टान,कहीं पर लगी बगीची,
“प्रेमी”कभी सुनाई दे,आवाज़ नगाडों की,
याद गार बन गयी,कि वो सैर पहाडों की।
रचियता -महादेव प्रेमी

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