जड़बुद्धि जीनियस – विक्लांग विद्वान

किसी विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति को अंग्रेजी में सेवान्ट कहते है। लेकिन क्या मानसिक रूप से विक्लांग भी सेवांट – जीनियस – हो सकता है? ईडियट (मंदबुद्धि, बोड़म) भी सेवांट (जीनियस, विलक्षण प्रतिभाशाली) हो सकता है?

सेवांट सिन्ड्रोम के अंतरगत अमूमन वे केस आते हैं जिनमें मानसिक विकलांगता, जैसे आटिज्म (स्वलीन), वाला व्यक्ति कोई अप्रत्याशित विलक्षण क्षमता, दक्षता या प्रतिभा दिखाये। जन्मजात विकलांगता के अतिरिक्त मस्तिष्क में चोट लगने के बाद भी ऐसा हो सकता है। आटिज्म, क्षतिग्रस्त मस्तिष्क, मंदबुद्धिन्यूनतम आई क्यू (इन्टेलिजेन्स कोशेंट) स्कोर वाला व्यक्ति, जब किसी विशिष्ट क्षेत्र, जैसे चित्रकला, संगीत, मानसिक गणना, स्मरणशक्ति में, अदभुत दक्षता, कौशल या प्रवीणता दिखाये। अधिकांशतया ऐसी प्रतिभा जन्मजात मानसिक विकलागों में ही प्रतिलक्षित होती है, मस्तिष्क की चोट के बाद होने वाले केस तो बहुत कम होते है। वैसे मानसिक और शारीरिक रूप से सामान्य व्यक्ति भी विशिष्ट क्षेत्र में विलक्षण प्रतिभा के धनी हो सकते हैं जैसे गणित जीनियस श्रीनिवास रामानुजन और स्मरणशक्ति हयूमन कम्प्यूटर के नाम से विख्यात शकुन्तला देवी।

मनसिक कमी के रहते हुए किसी विशेष क्षेत्र में कौशल या प्रतिभा कैसे संभव होती है इसके लिए अवधारणा है कि उनकी मानसिक प्रतिक्रिया विशिष्ट क्षेत्र में घनीभूत होकर अति-सक्रिय हो जाती है।

किम पीक का जन्म 1951 में गभीर क्षतिग्रस्त मस्तिष्क के साथ ही हुआ था। जन्मजात मानसिक विकलांगता के साथ। डाक्टर की किम के पिता को सलाह थी कि बच्चे के मस्तिष्क की गंभीर स्थिति के कारण उसका शारीरिक विकास नहीं होगा, वह चल-फिर नहीं पायेगा, न कुछ सीख पायेगा, अतः वे उसे किसी विकलांग होम मे भर्ती करा दें। पिता को यह मंजूर नहीं था। और सचमुच ही बड़ा होने पर वह हाथ पांव से कुछ भी करने में गंभीर रूप से अक्षम था। अपनी कमीज के बटन भी नहीं बंद कर सकता था। बौधिक विकास की कहें तो आई क्यू न्यूनतम। लेकिन इस लुंजपुंज, मन्दबुद्दि व्यक्ति की विलक्षण प्रतिभा कताबें पढने और पढे हुए को अक्षरशः याद रखने में हुई। विश्वास नहीं होता कि ऐसे व्यक्ति ने 12000 किताबें पढ ली। वह खुली किताब के दोनो पन्ने एक साथ पढता था, बांई आंख से बांया पेज और दाईं से दायां और वह भी मात्र कुछ सेकेन्डस में। फोटोग्राफिक मेमोरी – देखा और उसकी छवि मस्तिष्क में छप गई, स्मृति में संकलित हो गई। किसी किताब के किसी विषय के बारे में पूछे जाने पर वह याद कर अक्षरशः बता देता। 15 विषयों के तथ्य जिसमे इतिहास, भूगोल और खेल-कूद शामिल है, वह याद कर बता देता। यही नही,ं आप कोई भी तारीख बतायें और वह तुरंत आपको उस दिन सप्ताह का कौन सा दिन था बता देगा – जैसे हर साल का कलेंडर उसके मानस पटल पर साकार हो। सुने हुए संगीत के बारे में भी उसकी स्मरणशक्ति ऐसी ही विलक्षण थी।

किम पीक को एफ जी नामक जन्मजात मानसिक विकृति थी। एफ जी सिंड्रोम के विशिष्ट लक्षण समूहआनुवंशिक संचारित, जन्मजात मस्तिष्क की विकृतियों के फलस्वरूप होते है। इस सिन्ड्रोम में प्रमुख रूप से मस्तिष्क में सेरीबेलम व मस्तिष्क के गोलार्ध को जोड़ने वाला संपर्कसूत्र, कार्पस केलोसम, विकसित नहीं होते। सेरीबेलम किसी भी शारीरिक क्रिया में प्रायोजित मांसपेशियों के संयोजित व सुचारू संचालन के लिए आवश्यक होता है। सेरिबेलम की कमी के कारण मांसपेशियां शिथिल रहती हैं। वे सुनियोजित ढंग से काम नहीं कर पाती। शारीरिक विकास क्षीण हो जाता है। हाथ पांव की क्रियांये अटक अटक कर होती है। रोगी साधारण शारीरिक क्रियायें भी नही कर पाता। फिर भी अतिशय गतिशील होता है, कुछ न कुछ करता ही रहता है, स्थिर नहीं रह सकता, चुप नहीं बैठ सकता। कार्पस केलोसम के अभाव में बायां गोलार्ध, जो तर्क-प्रधान होता है, और दांया जो कला-प्रधान होता है, आपस में समन्वय नहीं कर पाते। बांये गोलार्ध के वर्जनात्मक संवेदों से मुक्त, दांया गोलार्ध कला उन्मुख हो जाता है। ललाट चोड़ा और सर अपेक्षाकृत बड़ा, छोटे छोटे सपाट कान। चहरे की मांसपेशियों की शिथिलता के कारण पलके झुकी अधमुदी आंखें। लटका हुआ जबड़ा और खुला मुंह, मोटा लटका हुआ निचला होठ। आई क्यू आंकलन में बोद्धिक विकास स्कोर सामान्य से काफी कम।

किम चार साल की उम्र तक पांवों से चल ही नहीं पाया। फिर चला भी तो तिरछा होकर चला। उसे अपने रोज मर्रा के काम करने में भी दिक्कत आती थी। अपनी कमीज के बटन भी बंद नहीं कर पाता था। उसके पिता ही उसका सारा काम करते थे, उसके बड़े होने पर भी।

छः साल की उम्र में उसके हर समय बड़बड़ाते रहने, हर वक्त कुछ न कुछ करते रहने, स्थिर न बैठ पाने और चलते रहने के कारण उसे स्कूल में दाखिले के तुरंत बाद क्लास से निकाल दिया गया। उसकी इस अस्थिरता के लिए तो डाक्टरों ने मस्तिष्क का लोबोटोमी आपरेशन कर उसे शांत करने की सलाह दी थी।

लेकिन उसके पिता को यह मान्य नहीं था। डाक्टरों ने तो उसके जन्म के बाद ही उसे विकलांग होम में डालने की सलाह दी थी। पिता को अपने इस विकलांग बच्चे से अथाह प्यार था। बेहद लगाव और समर्पण। वे उसे त्यागने को तैयार नहीं थे। वे उसे सक्षम बनाने की हर कोशिश करना चाहते थे और की। नित के आवश्यक शारीरिक कर्म में सतत सहायता की, घर पर ही पढाने की व्यवस्था की। पिता, वह जब मात्र दो साल का था तभी उसे किताब पढ कर सुनाते और वह उसे याद कर लेता। बाद में जब वे किताब पढते तब बच्चे की उंगली पकड़ कर लाइन के नीचे चलाते रहते। 14 साल की उम्र में उसने हाईस्कूल की पूरी पढाई कर ली। उसके पिता उसे लाईब्रेरी ले जाते, जहां वह पढता, पुस्तकों के संसार में खो जाता। पुस्तकों को उसने जीवन का संबल बना लिया। पिता उसके लिए घर पर खूब किताबे लाते। वह किताब खोलता, उसके दो पन्नों पर एक के बाद एक पर नजर डालता और 5-10 सेकंड में पृष्ट की फोटो उसके मस्तिष्क में अंकित हो जाती। एक धंटे में पूरी किताब याद हो जाती। जैसे उसकी आंखें और दिमाग स्कैनिंग मशीन हो। इतना ही नहीं स्मरण शक्ति में संकलित किताब और उसकी विषय वस्तु, इन्डेक्सड और केटालाग्ड भी हो जाती। किसी भी किताब के विषय वस्तु के पृष्ट अपने मानस पटल पर पुनः लाने और उसे बांचने की विलक्षण क्षमता उसमें विकसित हो गई थी। विश्वास नहीं होता कि उसने अपने दिमाग में 12000 पुस्तकों का संकलन कर लिया था। इसके अलावा उसके मस्तिष्क की लाईब्रेरी में वर्षों के कलेन्डर और संगीत के रिकार्ड भी सुरक्षित थे। वह किसी भी व्यक्ति से उनकी जन्म तिथि पूछता और तुरंत बता देता कि तब सप्ताह का कौन सा दिन था।

किम 24 साल का था जब मां, पिता से अलग हो गई। उसके बाद तो पिता ही उसका सब काम करते। 37 साल की उम्र में उसके जीवन पर फिल्म बनाने के लिए जब स्क्रिप्ट राईटर उससे और उसके पिता से मिले तो किम का जीवन ही बदल गयां। इसके पहले किम सर्वथा आत्म केद्रित था। कोई मानसिक उलझन होती तो विक्षिप्त सा हो जाता, बड़ी मुश्कितल से पिता संभाल ते। वह किसी से नजर भी नहीं मिलाता था। स्क्रिप्ट राईटर के कहने पर ही वे उसे लोगों से मिलाने लगे। किम का व्यक्तित्व ही बदल गया। आत्मश्विसस जागा, बेझिझक लोगों से मिलने लगा।  बादमें रेन मेन नामक फिल्म बनने के बाद तो अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण वह दुनिया का चहेता हो गया। 2009 में 57 साल की उम्र में हार्ट अटेक से उसकी मृत्यु हुई। किम, जहां विलक्षण स्मरण शक्ति की मिसाल था वही उसके पिता, निश्छल एकनिष्ट प्यार के प्रतीक। किम ने जो अर्जित किया वह पिता के प्यार के बदोलत ही था। उन्ही के अथक प्रयास से वह विकलांग से दिव्यांग बना।

डॉ. श्रीगोपाल काबरा, 15, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर- 302017 मोबाइलः 8003516198

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Dr Shree Gopal Kabra

Content Writer at Baat Apne Desh Ki

Dr Shree Gopal Kabra is a passionate writer who shares insights and knowledge about various topics on Baat Apne Desh Ki.

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