व्यंग्य की दुनिया में एक जागरूक आमद –
(डॉ मुकेश गर्ग असीमित के व्यंग्य संग्रह – गिरने में क्या हर्ज़ है की समीक्षा )
डॉ मुकेश गर्ग असीमित का पहला व्यंग्य संग्रह गिरने में क्या हर्ज़ है भावना प्रकाशन , दिल्ली से प्रकाशित हुआ है । इस व्यंग्य संकलन का प्रथम संस्करण है यह जो 2025 ही आया है । ब्लर्ब प्रख्यात व्यंग्य आलोचक सुभाष चंदर जी ने लिखा है और उसमें उन्होंने डॉ मुकेश जी के व्यंग्य लेखन की कुछ विशेषताओं पर बात की है जैसे की सीधी सहज सरल भाषा , वक्रोक्ति आदि का प्रयोग और रचनाओं में उद्देश्यपरकता और कहीं कहीं हास्य का प्रयोग । व्यंग्य के सरोकारों को लेकर और जनोन्मुखता की भी चर्चा उन्होंने की । व्यंग्य अपने भाषिक चमत्कार और व्यंजना और लक्षणा शब्द शक्ति के लिए जाना जाता है ।
हाँ , कभी कभी यथार्थ वर्णन में अभिधा का प्रयोग करना पड़ता है ऐसे में सीधी सरल भाषा व्यंग्य को कमज़ोर ही करती है और सपाट बयानी की ओर ले जाती है । लेकिन बच्चे के जन्म पर बन्ने और सोहर गीत गाने का रिवाज है इसलिए सुभाष जी जैसे आलोचक ने भी परंपरा निर्वहन किया होगा ऐसा मानने में कोई हर्ज़ नहीं है ।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने संग्रह की भूमिका लिखी है । उन्होंने डॉ मुकेश असीमित की ईमानदारी की प्रशंसा की है क्योंकि वे स्वयं को भी नहीं बख्शते और आत्म व्यंग्य से भी बाज नहीं आते । उनकी यह ईमानदारी सच में प्रशंसनीय है । आलोक जी ने उनके कुछ व्यंग्यों का उल्लेख किया है और अंत में कहा है कि डॉक्टर का काम है डिटेल्स पकड़ना और व्यंग्यकार का काम भी यही है । व्यंग्य में डॉक्टर की तरकीबें लगाकर उम्मीद है कि मुकेश असीमित जी व्यंग्य पकड़ते रहेंगे और यह कहने में कोई संशय नहीं कि डॉ मुकेश खूब डिटेल्स पकड़ रहे हैं और तेज़ी से व्यंग्य ही नहीं कविता , ग़ज़ल , फोटोग्राफी आदि कई विधाओं में एकसाथ मशगूल हैं । वो पाठक को असली मूल्यांकनकर्ता मानते हैं उसे ग्राहक का दर्जा देते हैं ।
अपने इस पहले व्यंग्य संग्रह में डॉ मुकेश ने यह बता दिया है कि वो पूरी तैयारी के साथ व्यंग्य के अखाड़े में आए हैं उनके पास दांव पेंच के ज्ञान का अभाव भले ही हो जज़्बा और विसंगतियों को पकड़ने की दृष्टि पूरी है , तैयारी और औजारों का ज्ञान भरपूर है । यह अलग बात है कि मुकेश असीमित थोड़ा जल्दबाज़ी में कहीं कहीं दिखते हैं और व्यंग्य को आँखों देखा हाल सा विवरण प्रस्तुत करते चलते हैं लेकिन ब्यौरा मात्र व्यंग्य नहीं होता वहाँ भाषा की कलाकारी और अभिव्यक्ति कौशल भी मायने रखता है ।
लगभग 53 व्यंग्य इस व्यंग्य संग्रह गिरने में क्या हर्ज़ है में सम्मिलित हैं और कुल 199 पृष्ठों का यह अच्छा खासा मोटा व्यंग्य संग्रह है । जिसका कवर पृष्ठ और मुद्रण , पुट्ठे की क्वालिटी सब उत्कृष्ट है । विगत कुछ वर्षों में भावना प्रकाशन के नीरज जी ने अपने प्रकाशन के गुणात्मक स्तर में निरंतर उन्नति की है और उसे एक ऊँचाई प्रदान की है । डॉ मुकेश ने किसी क्षेत्र को नहीं छोड़ा है राजनीति , शिक्षा , समाज , साहित्य और स्वयं का पेशा चिकित्सा , भ्रष्टाचार आदि सब पर उनकी पैनी कलम चली है ।
तुम मायके कब जाओगे प्रिये, गर्मी के तेवर , पड़ोसियों को प्यार करो , छपास की बीमारी , चमचा पुराण , शिक्षक दिवस जैसे कुछ रूटीन के विषयों के अतिरिक्त उन्होंने कुछ सर्वथा नवीन विषयों को अपनी लेखन प्रतिभा से अंजाम दिया है और ये व्यंग्य काफ़ी प्रभावी बन पड़े हैं । जैसे चूहामुखी विकास , ग़लत इंजेक्शन , कूटन संस्कार , इवेंट मैनेजमेंट विवाह से विसर्जन तक , गिरने में क्या हर्ज है , लंगड़ी टाँग का खेल , चूरन की राजनीति , आजादी के लड्डू आदि ।
एक जगह मुकेश असीमित लिखते हैं जैसे धूप में सुखाई गई चुनरी का गुलाबी रंग , हर धुलाई के साथ अपनी चमक खोता जा रहा है । आज़ादी का रंग जो कभी गहरा नीला था , बिल्कुल खुले आसमान की तरह , अब वही रंग फीका पड़ गया है …। आगे वो कहते हैं – आज़ादी अब वो पुरानी कहानियों के पात्र उस राजा की तरह हो गई है , जिसके हाथों में सोने की चाबियाँ होती हैं पर महल के दरवाज़े हमेशा बंद । इस तरह अनेक उपमानों और रूपक के द्वारा मुकेश असीमित अपनी व्यंग्य की धार को पैना बनाते हैं ।कई स्थानों पर मुकेश गंभीर , वैचारिक सवालों को उठाते हैं और व्यंग्य का ताना बाना बुनते हैं ।
हास्य का पुट मुकेश जी खासियत है लेकिन यहाँ हास्य सहज है सायास नहीं जैसे – पिछले कोरोना काल में वर्क फ़्रॉम होम का कांसेप्ट क्या आया सभी को दो दो बास को झेलना पड़ गया । आदमी ऑफ़िस जाता है किसलिए भला ! दो पल सुकून के बिताने को , थोड़ी सी कामचोरी के लिए , मटरगश्ती के लिए …। इसी तरह गीता के माध्यम से कृष्ण अर्जुन संवाद के द्वारा उन्होंने चमचा पुराण का रूपक गढ़ा है और एक अच्छा व्यंग्य तैयार हो गया है । व्यंजना का एक उदाहरण देखें – जैसे भगवान को चरणामृत पीने से पहले चढ़ावा चढ़ाया जाता है , यहाँ भी आपको तलवे चाटने से पहले कुछ चढ़ाना होता है वत्स !
नेताजी का पालतू कुत्ता विकास में डॉ मुकेश लिखते हैं – नेताजी का पालतू कुत्ता विकास को नेताजी ख़ुद नहीं खिलाते । उसे मध्यवर्गीय टैक्सपेयर के घर छोड़ आते हैं , जहाँ टैक्स के रूप में अच्छी ख़ासी खुराक इस कुत्ते को खिलानी पड़ती है । इस तरह फ़ैंटेसी और यथार्थ का रोचक मिश्रण उनका व्यंग्यकार रचता है । मुकेश असीमित के पास व्यंग्य को पकड़ने की दृष्टि है , समर्थ भाषा भी है लेकिन थोड़ी जल्दबाज़ी अवश्य दिखायी देती है इस कारण कई व्यंग्य विषय दोहराव की समस्या से पीड़ित हैं जिससे उनको बचना चाहिए । कुछ व्यंग्य विवरण देने के चक्कर में अभिधात्मक और सपाट भी हो गए हैं ।
अंत में लेखक उपदेश प्रधान हो जाता है जबकि व्यंग्य का अंत किसी करुणा या संवेदना की लकीर छोड़ते होना चाहिए लेकिन यह सब बातें क्षम्य हैं क्योंकि मुकेश असीमित का यह प्रथम व्यंग्य संग्रह है और इस नजरिये से देखें तो उनसे भविष्य में काफ़ी उम्मीदें हैं , वे विनम्र हैं , लगातार सीख रहे हैं उनकी गति क्षिप्र है बस यही उनको ध्यान देने की आवश्यकता है ।
गिरने में क्या हर्ज़ है एक रोचक , पठनीय और अच्छा व्यंग्य संग्रह है आधी से अधिक व्यंग्य रचनाएं सशक्त हैं । व्यंग्य की दुनिया में एक जागरूक आमद है यह । मतलब की पैसा वसूल ऑफ़र है । उनको हार्दिक बधाई !
पुस्तक – गिरने में क्या हर्ज़ है ( व्यंग्य संग्रह )
प्रकाशक – भावना प्रकाशन
पृष्ठ – 199
मूल्य – 450₹
मेरी व्यंग्यात्मक पुस्तकें खरीदने के लिए लिंक पर क्लिक करें – “Girne Mein Kya Harz Hai” और “Roses and Thorns”
Notion Press –Roses and Thorns
संपर्क: [email protected]
YouTube Channel: Dr Mukesh Aseemit – Vyangya Vatika
📲 WhatsApp Channel – डॉ मुकेश असीमित 🔔
📘 Facebook Page – Dr Mukesh Aseemit 👍
📸 Instagram Page – Mukesh Garg | The Focus Unlimited 🌟
💼 LinkedIn – Dr Mukesh Garg 🧑⚕️
🐦 X (Twitter) – Dr Mukesh Aseemit 🗣️Here is the Amazon link to your book “Roses and Thorns “