आश्वासन की खेती
लोकतंत्र की उपजाऊ जमीन में जो सबसे अच्छी पैदावार हो सकती है, वह हो सकती है आश्वासनों की!
या यूँ कहिए कि आश्वासन की धुरी पर ही लोकतंत्र टिका है।
राजनीति में आश्वासन ऐसे होते हैं जैसे बिरयानी में मसाले। बिना मसाले के बिरयानी कैसी? हर पार्टी का घोषणा-पत्र आश्वासनों का कठपुतली शो होता है। जनता को खेल पसंद है, जनता को ताली बजाना पसंद है। वैसे भी चुनावी रंगमंच जिंदगी के रंगमंच जैसा ही तो है। कुछ किरदार आएंगे, अपना कठपुतली शो दिखाएँगे। चुनावी कठपुतली शो खत्म होगा, पर्दा गिरेगा, और अगली बार किरदार बदलेंगे या यही किरदार भेष बदलकर आएंगे।
बस वोट रूपी टिकट में यह खेल जनता देखती है। वोट की भी कोई कीमत होती है। कम से कम कुछ तो उसके पास ऐसा है जिसकी किसी को जरूरत है। उसकी गरीबी, भुखमरी, उसके पसीने की क्या कीमत है? मुश्किल से दो सूखी रोटी तो बाजार से नहीं खरीद सकता।
आम जनता को भी पाँच साल में एक बार खास सी फीलिंग नेता लोग करा रहे हैं। यह क्या कम है?
सरकारें भी तो आश्वासनों से बनती हैं। पहले चुनावी उम्मीदवार जनता से किए गए आश्वासनों के बल पर चुनकर आता है, फिर गठबंधन पार्टियों के आश्वासनों से सरकार बनती है। कई उम्मीदवार तो इन आश्वासनों की जमा-पूँजी अर्जित करने ही निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, ताकि अपने आश्वासन किसी पार्टी को बेचकर उन्हें सरकार बनाने में मदद कर सकें। लोकतंत्र निर्माण में इससे बड़ी भूमिका क्या हो सकती है?
अब आश्वासन बाहर से मिले या अंदर से, यह पार्टियाँ तय करती हैं। जो बाहर से करते हैं, उन्हें भी बैकअप प्लान के तहत दूसरी पार्टी से आश्वासन मिला हुआ है। आश्वासनों की गणित का जोड़-तोड़ ही सरकार के राइट-लेफ्ट विंग में बैठने का आधार बनता है।
जनता भी आश्वासन की घुट्टी ही चाहती है—किसी से भी मिले, नेताओं से या बाबाओं से!
सब जगह आश्वासन की गंगा की बारिश हो रही है। जनता तरबतर है। यही तो है “अच्छे दिन” का आश्वासन।
बाबाओं के आश्वासन तो माया नगरी से भी परे, परलोक दर्शन कराते हैं। स्वर्ग का टिकट बेच रहे हैं! तुम चंद्रलोक में प्लॉट लेने की बात कर रहे हो, और औकात घर के फूटे दरवाजे की मरम्मत की भी नहीं है। अरे बाबा का एंट्री टिकट लो, सीधा परलोक गमन करो! आत्मा को परमात्मा से मिलाने का आश्वासन, इस संसार की मोह-माया से दूर करने का आश्वासन।
बाबा लोग ही हैं जो आश्वासन देते भी हैं और पूरा भी करते हैं। लेकिन फिर भी जनता है न, एहसान फरामोश! बाबा का धन्यवाद न सही, उल्टा उन्हें गालियाँ देती है।
प्रेम की फलती-फूलती फसल भी तो आश्वासन की खाद और पानी से हरी होती है। चाँद-तारे तोड़ लाने का आश्वासन, ताजमहल बना देने का आश्वासन, ज़माने भर की खुशियाँ दामन में बिछा देने का आश्वासन।
कंपनियाँ और विज्ञापन उद्योग भी तो आश्वासनों पर चल रहे हैं। गोरा होने का आश्वासन, स्लिम-ट्रिम ज़ीरो फिगर बनाने का आश्वासन। अखबार भी तो अंदर-बाहर आश्वासनों के ढेर से अटे पड़े हैं। सुबह-सुबह जैसे ही अखबार उठाते हैं, दो-चार आश्वासनों से भरे पर्चे जमीन पर औंधे मुँह गिरे मिलते हैं।
कोई 5 रुपये की लॉटरी में करोड़पति बनाना चाहता है, कोई झूठा प्यार पाने का आश्वासन दे रहा है, कोई नशा छुड़ाने का, तो कोई मर्दाना ताकत वापस लाने का।
आश्वासन कोई सच्चे या झूठे नहीं होते। जहाँ आश्वासन होते हैं, वहाँ सच और झूठ के मायने ही खत्म हो जाते हैं। आश्वासन, आश्वासन होते हैं—सच और झूठ से परे। विरोधी पार्टियां उन्हें खोखला बताने पर तुली रहती हैं। आश्वासन कभी पूरा करने के लिए नहीं होते; आश्वासन केवल स्थिति को टालने के लिए होते हैं।
सरकारी विभागों की दीवारें तो आश्वासन के प्लास्टर से ही चमकीली नजर आती हैं। जिस दिन आश्वासन का प्लास्टर उखड़ने लगता है, खंडहर दीवारों की हकीकत सामने आने लगती है। फाइलें इतनी हल्की होती हैं कि उन पर आश्वासनों का पेपर वेट रखना जरूरी हो जाता है।
नेताजी भी क्या करें, जैसे ही कुर्सी मिलती है और आश्वासन पूरे करने का वक्त आता है, खजाने खाली मिलते हैं। सरकार बेचारी जनता के आश्वासनों को पूरा करे या अपने घर के आश्वासनों की खीर पकाए। उसमें अच्छे दिनों के वादे का तड़का लगाकर फिर से परोसा जाता है।
आश्वासनों का पत्र ऐसी स्याही से लिखा जाता है, जो चुनावी बरसात में घुल जाती है। घोषणाएँ और वादे साफ हो जाते हैं। जनता देखती है कि सरकार बिल्कुल साफ है—कोई भी आश्वासन दिख नहीं रहा, जिस पर कोई उंगली उठाई जा सके।
आश्वासन इस लोकतंत्र की मजबूत नींव हैं। यह वह चाशनी है, जो हर चुनावी पकवान को मीठा बनाती है, चाहे उसमें मिठास हो या न हो। आश्वासन विश्वास की वह डोर है, जो चुनावी मौसम में हर बार जनता और नेताओं को बाँधे रखती है, और यही डोर सत्ता की कुर्सी का आधार बनती है।
आश्वासन एक कला है—फाइन आर्ट। इसे सिखाने के लिए विश्वविद्यालयों में कोर्स शुरू हो जाना चाहिए। राजनीति शास्त्र में एक नया पाठ्यक्रम हो, ‘आश्वासन शास्त्र’, जहाँ छात्रों को सिखाया जाए कि वादों का जाल कैसे बुनना है और कैसे उन वादों को हवा में उड़ाना है।
लोकतंत्र में आश्वासन वह सुनहरी चाबी है, जो हर दरवाजा खोल सकती है—चाहे वह संसद का दरवाजा हो या जनता के दिल का। आश्वासन वह सपना है, जिसे दिखाने में कोई खर्चा नहीं होता, पर देखने वाले उसकी कीमत चुकाते हैं—कभी उम्मीदों से, तो कभी वोटों से।
रचनाकार –डॉ मुकेश असीमित संपर्क: [email protected]
YouTube Channel: Dr Mukesh Aseemit – Vyangya Vatika
📲 WhatsApp Channel – डॉ मुकेश असीमित 🔔
📘 Facebook Page – Dr Mukesh Aseemit 👍
📸 Instagram Page – Mukesh Garg | The Focus Unlimited 🌟
💼 LinkedIn – Dr Mukesh Garg 🧑⚕️
🐦 X (Twitter) – Dr Mukesh Aseemit

मेरी व्यंग्यात्मक पुस्तकें खरीदने के लिए लिंक पर क्लिक करें – “Girne Mein Kya Harz Hai” और “Roses and Thorns”
Notion Press –Roses and Thorns